आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास और शिक्षा के क्षेत्र में किया गये महत्वपूर्ण कार्य।
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने शासन के प्रारम्भिक दिनों में भारत में शिक्षा के प्रसार के लिए कोई प्रयास नहीं किया। इन दिनों कुछ उदार अंग्रेजों ईसाई मिशनरियों और उत्साही भारतीयों ने इस दिशा में प्रयास किया।
1780 ई. में वॉरेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में मदरसा की स्थपना की थी. इसके प्रथम प्रमुख (नजिन ) मौलवी मुइज – उद – दींन थे, इस मदरसे में फारसी, अरबी और मुस्लिम कानून पढ़ाया जाता था और इसके स्नातक ब्रिटिशराज में दुभाषिए (Interpreter ) के रूप में सहायक करते थे। 1791 ई. में बनासर के ब्रिटिश रेजिडेंट जोनाथन डंकन के प्रयत्नो के फलस्वरूप बनारस में एक (प्रथम )संस्कृत कॉलेज खोला गया, जिसका उदेश्य ”हिन्दुओं के धर्म,साहित्य और कानून का अध्यन्न करना था ” 1781 में हेस्टिंगस के सहयोग सर विलियम जोंस ने एशियाटिक सोसायटी और बंगाल की स्थापना की जिसने प्राचीन भारतीय इतिहास के संस्कृतिक और अध्यनन हेतु महत्वपूर्ण प्रयास किये। ब्रिटिश रेजीडेण्ट जोनाथन डंकन द्वारा 1791 में वाराणसी में हिन्दू कानून और दर्शन हेतु सस्कृत कॉलेज की स्थापना की।
1800 ईस्वी वेलेजली द्वारा कम्पनी केअसैनिक अधिकारियों की शिक्षा के लिए फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना की गई। अग्रेंज धर्म प्रचारक एवं ईसाई मिशनरियों ने भारत में शिक्षा के प्रसार हेतु सिरामपुर ( कलकत्ता )को अपना क्रेन्द्र बनाया तथा बाइबिल का 26 भाषाओं में अनुवाद किया। राजाराम मोहन राय, राधाकांत देव्, महाराज तेजसेन, चन्द्र राय बहादुर आदि के प्रयासों से भारत में शिक्षा के क्षेत्र में कुछ प्रगति हुई राजा राममोहन राय डेविड हेयर और सर हाइट ने मिल जुलकर कोलकाता में हिंदू कॉलेज की स्थापना की जो कालांतर में प्रेसिडेंसी कॉलेज बना। ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में शिक्षा के क्षेत्र में वास्तविक प्रयास 1813 ईस्वी में किया गया। 1813 का चार्टर एक्ट में गवर्नर जनरल कोअधिकार दिया गया कि बस एक लाख लाख रूपये भारतीयों के शिक्षा पर खर्च करें। लोक शिक्षा की सामान्य के दस सदस्य भारत में शिक्षा के माध्यम के विषय पर दो गुटों में विभाजित थे, जिसमे एक प्राच्य विद्या समर्थक दल था तथा दूसरा आंग्ल शिक्षा समर्थक का था।
प्राच्य शिक्षा समर्थक दल के नेता एच. टी. प्रिंसेप तथा एच. एच. विल्सन थे। प्राच्य विद्या समर्थक का मानना था की भारत में संस्कृत अरबी अध्यन्न को प्रोत्साहन दिया जाये। एक गुट जो बम्बई में सक्रीय था तथा जिसके मुनरो और एलिफिंस्टन थे, वे पाश्चात्य शिक्षा को स्थानीय देशी भाषा में देने के समर्थन थे। दुसरे और आंग्लवादी दल ने भारत में शिक्षाके माध्यम रुप मेंअंग्रेजी की वकालत की। उनका विश्वास था की यदि अंग्रेजी भाषा के माध्यम के रुप में अपनाया गया तो आने वाले वर्षों बंगाल के सभ्य वर्ग में एक भी मूर्तिपूजक नहीं रहेंगे।
प्राच्य – पाश्चात्य विवाद जनरल विलियम बैंटिक अपने कौंसिल के विधि सदस्य लॉर्ड मैकाले को लोक शिक्षा समिति का प्रधान नियुक्ति किया। 2 फ़रवरी 1935 को मैकाले ने अपना स्मरणार्थ लेख प्रस्तुत किया मैकाले ने भारतीय भाषा साहित्य तीख़ी आलोचना करते हुए अंग्रेजी शिक्षा की वकालत की। मैकाले के अनुसार – यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की आलमारी का एक तख्ता भारत और अरब के समस्त साहित्य से अधिक मूलयवान है।
मैकाले भारत अंग्रेजी शिक्षा द्वारा एक ऐसी वर्ग तैयार करना चाहता था – जो रक्त और रंग से भारतीय हो परन्तु प्रवृति, विचार, नैतिकता और प्रज्ञा से अंग्रेज हो। गवर्नर जनरल बैंटिक ने मैकाले के सुझाव के आधार पर अंग्रेजी शिक्षा लागू किया।
शिक्षा के क्षेत्र में किये गए कार्य
- चार्ल्स विन्लिकिस ने ‘ भगवदगीता ‘ का प्रथम आंग्ल अनुवाद किया, जिसकी प्रस्तावना स्वयं वॉरेन हेस्टिंग्स ने लिखी।
- विन्लिकिस ने फ़ारसी तथा बंगाल मुद्रण के लिए दलाई के अक्षरों का अविष्कार किया।
- हॉलहेड ने 1778 ई. संस्कृत व्याकरण प्रकाशित किया।
- सर विलियम जोंस वॉरेन हेस्टिंग्स के समय कलकत्ता उच्चतम न्यायलय के न्यायधीश नियुक्ति हुए।
- ‘ एशियाटिक रिसर्चेज ‘ ( Asiatic Researches ) नामक परीका के माध्यम से भारत के अतीत को प्रकाश में लाने का कार्य किया.
- इसी कर्म में इन्होंने 1789 ई. में कालिदास रचित ‘ अभिज्ञानशकुंतलम ‘ का अंग्रेजी में अनुवाद किया एवं इसके पांच संस्करण प्रकाशित किए।
आधुनिक भारत में शिक्षा के विकास का इतिहास औपनिवेशिक काल से लेकर आज़ादी के बाद के वर्षों तक फैला हुआ है। इस दौरान शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सुधार और कार्यक्रम लागू किए गए हैं। आइए इसे विभिन्न चरणों में समझें:
1. औपनिवेशिक काल में शिक्षा का विकास
ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में शिक्षा प्रणाली का आधार तैयार किया गया। इस समय के कुछ मुख्य सुधार और कार्य निम्नलिखित हैं:
प्रारंभिक सुधार (1813-1853)
- चार्टर एक्ट 1813: ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में शिक्षा के लिए खर्च करने का दायित्व सौंपा गया।
- अंग्रेज़ी शिक्षा की शुरुआत (1835): लॉर्ड मैकाले की सिफारिश पर अंग्रेज़ी को शिक्षा का माध्यम बनाया गया।
- विद्यासागर और राजा राममोहन राय का योगदान: महिला शिक्षा और सामाजिक सुधार के लिए प्रयास किए गए।
विकास का दूसरा चरण (1854-1900)
- वुड के डिस्पैच (1854): इसे भारतीय शिक्षा का मैग्ना कार्टा कहा जाता है। इसमें प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के लिए ढांचे का सुझाव दिया गया। – READ MORE
- यूनिवर्सिटी का निर्माण (1857): कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित किए गए।
- महिला शिक्षा: इस काल में महिला शिक्षा को प्रोत्साहित किया गया, और अनी बेसेन्ट व अन्य समाज सुधारकों ने इसका नेतृत्व किया।
तीसरा चरण (1901-1947)
- सैडलर आयोग (1917): माध्यमिक और उच्च शिक्षा के बीच समन्वय की सिफारिशें दी गईं। – READ MORE
- वार्डा योजना (1937): महात्मा गांधी के नेतृत्व में बुनियादी शिक्षा (Basic Education) पर जोर दिया गया। – READ MORE
2. स्वतंत्र भारत में शिक्षा का विकास
आजादी के बाद शिक्षा को सार्वभौमिक, समतामूलक और गुणात्मक बनाने के प्रयास शुरू हुए।
महत्वपूर्ण आयोग और योजनाएं
- राधाकृष्णन आयोग (1948-49): उच्च शिक्षा के सुधार के लिए सिफारिशें दी गईं। इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) की स्थापना का आधार माना जाता है। READ MORE
- कोठारी आयोग (1964-66): शिक्षा प्रणाली को राष्ट्रीय विकास का माध्यम बनाने की सिफारिश की।
- शिक्षा पर GDP का 6% खर्च करने का सुझाव। READ MORE
- 10+2+3 शिक्षा प्रणाली लागू करने का आधार।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968):
- मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा पर जोर।
- विज्ञान और तकनीकी शिक्षा को प्रोत्साहन। READ MORE
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986):
- शिक्षा का राष्ट्रीयकरण और नवोदय विद्यालयों की स्थापना।
- शिक्षा के क्षेत्र में सूचना तकनीकी (IT) का समावेश। READ MORE
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति (2020):
- स्कूल शिक्षा में 5+3+3+4 संरचना लागू।
- मातृभाषा में शिक्षा को प्राथमिकता।
- व्यावसायिक शिक्षा पर जोर और शोध के लिए राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (NRF) की स्थापना। READ MORE
महत्वपूर्ण सरकारी पहल
- सर्व शिक्षा अभियान (2001): सभी बच्चों को 6-14 वर्ष तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा। READ
- मध्याह्न भोजन योजना (Mid-Day Meal Scheme): बच्चों को स्कूलों में पोषण के लिए प्रोत्साहित करना।
- राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (2009): माध्यमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाना।
- राइट टू एजुकेशन एक्ट (2009): 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाया गया।
- डिजिटल इंडिया और ई-लर्निंग पहल:
- SWAYAM: ऑनलाइन पाठ्यक्रमों की उपलब्धता।
- DIKSHA: शिक्षकों और छात्रों के लिए ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म।
3. आधुनिक शिक्षा में चुनौतियां
- असमानता: शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच शिक्षा की गुणवत्ता में बड़ा अंतर।
- शिक्षा का निजीकरण: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा महंगी होती जा रही है।
- रोज़गारोन्मुख शिक्षा की कमी: डिग्री आधारित शिक्षा के बजाय कौशल आधारित शिक्षा पर कम ध्यान।
- तकनीकी संसाधनों की कमी: ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल शिक्षा तक पहुंच सीमित है।
4. शिक्षा के क्षेत्र में आधुनिक उपलब्धियां
- भारत स्टेम शिक्षा (STEM Education) में अग्रणी बन रहा है।
- IITs, IIMs और AIIMS जैसे संस्थानों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है।
- डिजिटल शिक्षा के माध्यम से ज्ञान को अधिक सुलभ बनाया गया है।
- NEP 2020 के तहत राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों का सहयोग।
निष्कर्ष
आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास अनेक चुनौतियों और उपलब्धियों के बीच हुआ है। सरकार और समाज दोनों की भागीदारी से भारत में शिक्षा की गुणवत्ता और पहुंच में सुधार हुआ है। हालांकि, इसे और समतामूलक और व्यावसायिक बनाने की आवश्यकता है ताकि यह भारत के आर्थिक और सामाजिक विकास का मजबूत आधार बने।