भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) 1942 में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण चरण था। यह आंदोलन महात्मा गांधी के नेतृत्व में हुआ और इसका मुख्य उद्देश्य भारत से ब्रिटिश शासन का समाप्त करना था।
कारण (Cause):
- द्वितीय विश्व युद्ध: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ब्रिटेन को युद्ध में भारत की सहायता की आवश्यकता थी। भारतीय नेता स्वतंत्रता की मांग कर रहे थे, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नज़रअंदाज़ किया और युद्ध में भारत को शामिल किया।
- अंग्रेजों द्वारा असंतोषजनक नीतियाँ: भारतीय नेताओं ने ब्रिटिश शासन की नीतियों को भारतीयों के लिए अत्यधिक दमनकारी और असमान समझा।
- गांधीजी की असहमति: गांधीजी ने ब्रितानी साम्राज्य के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए तैयार किया, और उन्होंने यह महसूस किया कि अब भारत को स्वतंत्रता की दिशा में कदम बढ़ाने का सही समय है।
- भारतीय समाज में असंतोष: भारतीय समाज में ब्रिटिश शासन और उनके द्वारा किए गए आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक दमन के खिलाफ व्यापक असंतोष था।
क्रिया (Action):
- आंदोलन का आरंभ: महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को बम्बई (अब मुम्बई) में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में “भारत छोड़ो” का नारा दिया।
- नारे और घोषणाएँ: आंदोलन का प्रमुख नारा था “भारत छोड़ो”, और इस आंदोलन में “करो या मरो” (Do or Die) जैसे विचार भी सामने आए।
- प्रमुख घटनाएँ: ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन के जवाब में कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार किया और दमनकारी कार्रवाइयाँ शुरू कीं। पूरे देश में व्यापक हड़तालें, प्रदर्शन और असहमति का दौर चला।
प्रभाव (Impact):
- आंदोलन का दमन: ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिए सख्त कदम उठाए, जिसमें भारतीय नेताओं की गिरफ्तारी, सार्वजनिक हड़तालों का दमन, और लोगों के खिलाफ हिंसा शामिल थी।
- देशव्यापी विरोध: आंदोलन ने पूरे देश में व्यापक जनसंगठनों को जन्म दिया। हालांकि यह तत्काल स्वतंत्रता का कारण नहीं बना, परंतु यह ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ असंतोष को और अधिक बढ़ा दिया।
- ब्रिटिश सरकार का दबाव: इस आंदोलन ने ब्रिटिश सरकार पर भारी दबाव डाला, जो अंततः भारतीय स्वतंत्रता की प्रक्रिया को तेज करने के लिए मजबूर हुई।
महत्वपूर्ण व्यक्ति (Important Figures):
- महात्मा गांधी: गांधीजी ने आंदोलन का नेतृत्व किया और “करो या मरो” का नारा दिया। Read More-
- आचार्य नरेंद्र देव: उन्होंने आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- जवाहरलाल नेहरू: कांग्रेस पार्टी के प्रमुख नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी।
- सुबास चंद्र बोस: हालांकि उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग नहीं लिया, लेकिन उनकी सेनाएँ और नेतृत्व भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष के महत्वपूर्ण अंग थे।
नारे (Slogans):
- भारत छोड़ो (Quit India)
- करो या मरो (Do or Die)
- सभी का भारत, सभी के लिए स्वतंत्रता (Freedom for all of India)
भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) का प्रभाव पूरे भारत में था, लेकिन कुछ राज्य और क्षेत्र विशेष रूप से प्रभावित हुए। इस आंदोलन ने व्यापक जन जागरण और विद्रोह का रूप लिया, जिससे ब्रिटिश सरकार को अपने शासन को बनाए रखने में कठिनाई का सामना करना पड़ा।
आइए जानते हैं कि भारत छोड़ो आंदोलन का प्रभाव किन-किन राज्यों में अधिक था:
1. बिहार
- प्रभाव: बिहार में आंदोलन का बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। यहाँ के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर हड़तालें और विरोध प्रदर्शन हुए।
- प्रमुख घटनाएँ: बेतिया, गया, और पटना में आंदोलनकारियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध किया। विशेष रूप से बेतिया में आंदोलन काफी हिंसक रूप ले लिया था।
- महत्वपूर्ण व्यक्ति: कर्पूरी ठाकुर और कन्हैयालाल जैसे नेताओं ने आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। Read More-
2. उत्तर प्रदेश
- प्रभाव: उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में आंदोलन ने व्यापक रूप से जन जागृति पैदा की। इलाहाबाद, कानपुर, और लखनऊ जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शन और हड़तालें हुईं।
- प्रमुख घटनाएँ: कानपुर में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ बहुत बड़ा आंदोलन हुआ, जिसमें कई लोग गिरफ्तार हुए।
- महत्वपूर्ण व्यक्ति: जवाहरलाल नेहरू और अल्फ्रेड मेयर जैसे नेताओं ने यहाँ आंदोलन का नेतृत्व किया।
3. बंबई (अब मुंबई)
- प्रभाव: मुंबई में भारत छोड़ो आंदोलन का बहुत प्रभाव पड़ा, यहाँ के मजदूरों और छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किए।
- प्रमुख घटनाएँ: मुंबई में ब्रिटिश सरकार द्वारा आंदोलनों को दबाने के लिए हिंसक कार्रवाई की गई। इसके बावजूद यहाँ के लोग आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए थे।
- महत्वपूर्ण व्यक्ति: सुभाष चंद्र बोस की अगुवाई में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने प्रमुख भूमिका निभाई।
4. महाराष्ट्र
- प्रभाव: महाराष्ट्र में भी आंदोलन का बहुत गहरा असर था। पुणे, नागपुर और ठाणे जैसे शहरों में बड़े पैमाने पर हड़तालें और प्रदर्शनों का आयोजन हुआ।
- प्रमुख घटनाएँ: पुणे में आंदोलनकारियों के साथ पुलिस की झड़पें हुईं और कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।
- महत्वपूर्ण व्यक्ति: लक्ष्मीबाई और पं. नेहरू जैसे प्रमुख नेता आंदोलन में शामिल थे।
5. गुजरात
- प्रभाव: गुजरात में भी आंदोलन का व्यापक प्रभाव पड़ा। अहमदाबाद और सूरत जैसे शहरों में जनता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शन किए।
- प्रमुख घटनाएँ: अहमदाबाद में कई व्यापारियों और श्रमिकों ने हड़तालें कीं और ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई।
- महत्वपूर्ण व्यक्ति: महात्मा गांधी का गुजरात से गहरा संबंध था, और उन्होंने आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
6. पंजाब
- प्रभाव: पंजाब में भी आंदोलन का असर था, खासकर जालंधर, लुधियाना और अमृतसर में।
- प्रमुख घटनाएँ: पंजाब में कांग्रेस कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध प्रदर्शन किए गए, लेकिन यहाँ ब्रिटिश सेना द्वारा दमनात्मक कार्रवाई की गई।
- महत्वपूर्ण व्यक्ति: लाला लाजपत राय और भगत सिंह जैसे नेताओं का योगदान था।
7. राजस्थान
- प्रभाव: राजस्थान के कई हिस्सों में भी भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया गया। जोधपुर, जयपुर और अजमेर जैसे शहरों में आंदोलनकारियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध किया।
- प्रमुख घटनाएँ: राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में आंदोलन ने मजबूत पकड़ी, जहाँ ग्रामीणों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई हड़तालें और विरोध प्रदर्शन किए।
- महत्वपूर्ण व्यक्ति: वीर दामोदरन और सूरत सिंह जैसे नेता राजस्थान में आंदोलन के प्रमुख कर्ता-धर्ता थे।
8. तमिलनाडु और दक्षिण भारत
- प्रभाव: दक्षिण भारत, विशेषकर तमिलनाडु, केरल और कर्नाटका में भी आंदोलन ने खासा असर डाला।
- प्रमुख घटनाएँ: चेन्नई, तिरुवरूर और मदुरै जैसे शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। मदुरै में अंग्रेजों ने आंदोलनकारियों पर कड़ी कार्रवाई की थी।
- महत्वपूर्ण व्यक्ति: सी. राजगोपालाचारी, पेरियार और कुट्टी थामीझ जैसे नेता इस आंदोलन के प्रमुख चेहरे थे।
निष्कर्ष:
भारत छोड़ो आंदोलन ने पूरे देश में व्यापक रूप से प्रभाव डाला। हालांकि यह आंदोलन कुछ स्थानों पर अधिक संगठित और हिंसक रूप से फैल गया, लेकिन यह पूरे भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष और विद्रोह का कारण बना। आंदोलन के परिणामस्वरूप, ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ा और स्वतंत्रता संग्राम के अगले चरणों के लिए एक मजबूत आधार तैयार हुआ। 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के करीब आने का एक महत्वपूर्ण चरण था। हालांकि यह आंदोलन तत्काल स्वतंत्रता का कारण नहीं बना, लेकिन इसने भारतीय जनता को संगठित किया और ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ाया, जो अंततः 1947 में भारत को स्वतंत्रता दिलवाने में सहायक सिद्ध हुआ।