भारत में 1975 से 1977 के दौरान लगाया गया आपातकाल, जिसे “सार्वजनिक आपातकाल” कहा जाता है, भारतीय राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। इस अवधि के दौरान कई महत्वपूर्ण नेता और घटनाएँ उभरीं, जिनका गहरा प्रभाव भारतीय राजनीति और समाज पर पड़ा।
आपातकाल के कारण:
- राजनैतिक अस्थिरता: 1971 के लोकसभा चुनावों में इंदिरा गांधी की जीत को इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अवैध घोषित किया गया था। इस फैसले ने इंदिरा गांधी की राजनीतिक स्थिति को खतरे में डाल दिया।
- सामाजिक अशांति: जयप्रकाश नारायण और अन्य विपक्षी नेताओं द्वारा चलाए जा रहे विरोध प्रदर्शनों और जन आंदोलनों ने सरकार पर दबाव बढ़ा दिया था।
- आर्थिक समस्याएं: देश में बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और खाद्य संकट ने भी राजनीतिक असंतोष को बढ़ावा दिया।
परिणाम:
- मौलिक अधिकारों का हनन: आपातकाल के दौरान नागरिक स्वतंत्रताओं को सीमित कर दिया गया था, प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई और विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया।
- नागरिक आंदोलन: आपातकाल के विरोध में जनता और विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन किए।
- जनता पार्टी का उदय: आपातकाल की समाप्ति के बाद 1977 में हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी हार का सामना करना पड़ा और जनता पार्टी सत्ता में आई।
- राजनीतिक जागरूकता: इस अवधि ने भारतीय जनता को अपनी राजनीतिक शक्ति और अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक किया।
महत्वपूर्ण नेता और उनके कार्य:
- जयप्रकाश नारायण: उन्होंने “संपूर्ण क्रांति” का आह्वान किया और आपातकाल के खिलाफ व्यापक जन आंदोलन का नेतृत्व किया।
- मोरारजी देसाई: जनता पार्टी के प्रमुख नेता, जो आपातकाल के बाद प्रधानमंत्री बने।
- अटल बिहारी वाजपेयी: भारतीय जनसंघ के प्रमुख नेता, जो आपातकाल के विरोध में सक्रिय रहे।
- लाल कृष्ण आडवाणी: भारतीय जनसंघ के एक और प्रमुख नेता, जिन्होंने आपातकाल के खिलाफ संघर्ष किया।
आपातकाल का प्रभाव भारतीय लोकतंत्र और राजनीतिक संरचना पर गहरा था। इसने भारतीय नागरिकों को उनके लोकतांत्रिक अधिकारों और स्वतंत्रता के महत्व का एहसास कराया और राजनीतिक जागरूकता में वृद्धि की।
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