विस्तृत घटनाक्रम और प्रमुख तत्व
पूर्व की अशांति
- भाषाई संघर्ष: 1952 में, बांग्ला भाषा को आधिकारिक दर्जा देने की मांग ने पूर्वी पाकिस्तान में आंदोलन का रूप ले लिया। यह संघर्ष और बढ़ गया जब पश्चिमी पाकिस्तान की सरकार ने उर्दू को राष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करने की कोशिश की।
- राजनीतिक संघर्ष: 1960 के दशक में, शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग ने “छह-सूत्री आंदोलन” चलाया, जिसमें पूर्वी पाकिस्तान को अधिक स्वायत्तता देने की मांग की गई।
1970 के चुनाव और उनकी प्रतिक्रियाएं
- चुनाव परिणाम: 1970 के चुनावों में अवामी लीग ने 160 में से 160 सीटें जीतीं, जिससे उन्हें पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेंबली में बहुमत मिला। लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान की सरकार और राष्ट्रपति याह्या खान ने सत्ता हस्तांतरण से इनकार कर दिया।
- संकट का बढ़ना: मार्च 1971 में, याह्या खान ने नेशनल असेंबली की बैठक स्थगित कर दी, जिससे पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह शुरू हो गया। 25 मार्च 1971 को पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया, जिसमें हजारों लोग मारे गए और लाखों लोगों ने भारत में शरण ली।
भारत का रणनीतिक हस्तक्षेप
- शरणार्थी संकट: पूर्वी पाकिस्तान से आए लाखों शरणार्थियों ने भारत के लिए आर्थिक और सामाजिक संकट पैदा कर दिया। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से समर्थन मांगा, लेकिन कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं मिली।
- सेना की तैयारी: भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के मुक्ति संग्रामियों को सैन्य प्रशिक्षण और समर्थन देना शुरू किया। ऑपरेशन ट्राइडेंट और ऑपरेशन चक्रव्यूह जैसे सैन्य अभियानों की योजना बनाई गई।
युद्ध के प्रमुख मोर्चे
- पूर्वी मोर्चा: भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में तेजी से प्रगति की। जनरल सैम मानेकशॉ के नेतृत्व में भारतीय सेना और मुक्तिवाहिनी ने मिलकर ढाका की ओर कूच किया।
- पश्चिमी मोर्चा: पाकिस्तान ने पश्चिमी मोर्चे पर भी हमले किए, लेकिन भारतीय सेना ने उनका सफलतापूर्वक प्रतिकार किया। प्रमुख युद्ध स्थल जैसे लोंगेवाला और बसंतर में भारतीय सेना ने महत्वपूर्ण जीत हासिल की।
- नौसेना और वायुसेना की भूमिका: भारतीय नौसेना ने ऑपरेशन ट्राइडेंट और ऑपरेशन पायथन के तहत कराची बंदरगाह पर हमले किए। भारतीय वायुसेना ने भी पाकिस्तान की वायुसेना को निर्णायक रूप से परास्त किया।
आत्मसमर्पण और युद्ध की समाप्ति
- आत्मसमर्पण: 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाजी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। यह इतिहास में सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था, जिसमें 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया।
- स्वतंत्र बांग्लादेश: इस आत्मसमर्पण के साथ ही बांग्लादेश की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो गई और शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले राष्ट्रपति बने।
युद्ध के बाद का परिदृश्य
- भारत-पाकिस्तान संबंध: इस युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध अत्यधिक तनावपूर्ण हो गए। 1972 में शिमला समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों ने कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल करने का संकल्प लिया।
- आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: युद्ध के बाद भारत और बांग्लादेश ने आर्थिक और सामाजिक पुनर्निर्माण की दिशा में कदम उठाए। पाकिस्तान को भी अपने आंतरिक मामलों में स्थिरता लाने की चुनौती का सामना करना पड़ा।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव: इस युद्ध ने वैश्विक मंच पर मानवीय हस्तक्षेप और आत्मनिर्णय के अधिकार के मुद्दों को बल दिया। अमेरिका, चीन और सोवियत संघ के युद्ध के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण थे, जिससे अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में परिवर्तन आया।
निष्कर्ष
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध एक निर्णायक संघर्ष था जिसने दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति को हमेशा के लिए बदल दिया। बांग्लादेश की स्वतंत्रता ने न केवल एक नए राष्ट्र का उदय किया बल्कि क्षेत्र में स्थायित्व और विकास के नए अवसर भी प्रदान किए।