गुरु हरराय की जीवनी।
जन्म:- 16 जनवरी 1630 कीरतपुर साहिब, पंजाब, भारत
मृत्यु:- 6 अक्टूबर, 1661 कीरतपुर साहिब, पंजाब
पिता:- बाबा गुरुदिता
माता:– माता निहाल कौर
पत्नी: माता कृष्णन कौर
प्रारंभिक जीवन
गुरु हरराय जी का प्रारंभिक जीवन बहुत ही सादगी और सरलता में बिता। उनके दादा, गुरु हरगोबिंद साहिब जी, ने उन्हें विशेष रूप से प्रशिक्षित किया था। गुरु हरराय जी का हृदय बहुत दयालु और करुणामय था। वे बहुत कम उम्र से ही गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने लगे थे।
गुरु हरराय जी का जीवन परिचय
गुरु हरराय जी सिख धर्म के सातवें गुरु थे। उनका जन्म 16 जनवरी 1630 को कीरतपुर, पंजाब में हुआ था। वे गुरु हरगोबिंद साहिब जी के पोते थे और बाबा गुरदित्ताजी एवं माता निहाल कौर के पुत्र थे।
आध्यात्मिकता और शिक्षाएं
गुरु हरराय जी का जीवन आध्यात्मिकता से भरा हुआ था। उन्होंने सिख समुदाय को ईश्वर के प्रति अटूट विश्वास रखने, नाम सिमरन करने और सेवा का मार्ग अपनाने के लिए प्रेरित किया। उनकी शिक्षाएं सरल और व्यावहारिक थीं, जो आज भी सिख समुदाय के लिए मार्गदर्शक हैं।
गुरु गद्दी की जिम्मेदारियां
गुरु हरराय जी ने गुरु गद्दी संभालने के बाद सिख समुदाय को एकजुट करने और उन्हें एक दिशा देने का कार्य किया। उन्होंने कीरतपुर साहिब में एक धार्मिक और सांस्कृतिक केंद्र स्थापित किया, जहां सिख अनुयायी एकत्र होकर धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा लेते थे। उन्होंने गुरु का लंगर (सामुदायिक रसोई) को भी बढ़ावा दिया, जिससे सभी जातियों और समुदायों के लोग एक साथ बैठकर भोजन कर सकें।
चिकित्सा और औषधालय
गुरु हरराय जी ने चिकित्सा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने कई औषधालयों की स्थापना की, जहां गरीब और जरूरतमंद लोगों का मुफ्त में इलाज किया जाता था। वे स्वयं भी चिकित्सा के क्षेत्र में निपुण थे और जड़ी-बूटियों का ज्ञान रखते थे।
मुग़ल दरबार और गुरु हरराय जी
गुरु हरराय जी ने मुग़ल सम्राट शाहजहाँ के शासनकाल में अपने धर्म और अनुयायियों की रक्षा की। जब औरंगज़ेब ने सत्ता संभाली, तब भी गुरु हरराय जी ने अपनी नीतियों और सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए सिख धर्म की रक्षा की। उन्होंने कभी भी युद्ध या हिंसा का सहारा नहीं लिया, बल्कि हमेशा अहिंसा और शांति का मार्ग अपनाया।
गुरु हरराय जी के उत्तराधिकारी
गुरु हरराय जी के दो पुत्र थे – बाबा राम राय और गुरु हरकृष्ण। बाबा राम राय को उन्होंने मुग़ल दरबार में भेजा था, लेकिन राम राय ने कुछ विवादास्पद बातें कही, जिससे गुरु हरराय जी असंतुष्ट हो गए। इसलिए उन्होंने अपने छोटे पुत्र, गुरु हरकृष्ण जी, को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। गुरु हरकृष्ण जी ने आठवें गुरु के रूप में सिख समुदाय का नेतृत्व किया।
मृत्यु
गुरु हरराय जी ने 6 अक्टूबर 1661 को कीरतपुर में अंतिम सांस ली। उनकी समाधि कीरतपुर में ही स्थित है।
गुरु हरराय जी के जीवन से हमें शांति, सहनशीलता और सेवा की प्रेरणा मिलती है। उनका जीवन हमें सिखाता है कि किस प्रकार हमें अपने धर्म और समाज की सेवा करनी चाहिए।
गुरु हरराय जी की विरासत
गुरु हरराय जी की शिक्षाएं और उनके जीवन का आदर्श आज भी सिख समुदाय के लिए एक मार्गदर्शक है। उनकी करुणा, दयालुता, और सेवा की भावना ने सिख धर्म को एक नई दिशा दी। उनके द्वारा स्थापित औषधालय और लंगर आज भी सिख समुदाय द्वारा चलाए जाते हैं, जो मानवता की सेवा का सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
गुरु हरराय जी का जीवन हमें सिखाता है कि हमें हमेशा अहिंसा, शांति और सेवा के मार्ग पर चलना चाहिए। उनका जीवन सिख धर्म के मूल सिद्धांतों को जीवंत रखता है और हमें एक बेहतर समाज की ओर प्रेरित करता है।