Wednesday, March 19, 2025
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राजकुमारी अमृत कौर की जीवनी

राजकुमारी अमृत कौर की जीवनी

राजकुमारी अमृतकौर

जन्म:- 2 फरवरी 1889  (लखनऊ)

मृत्यु 6 फरवरी 1964 (नई दिल्ली)

पिता:- राजा हरनाम सिंह

माता:- रानी हरनाम सिंह

राजकुमारी अमृतकौर का जन्म 2 फरवरी 1889 में नवाबों के शहर लखनऊ में हुआ था। उनके पिता राजा हरनाम सिंह कपूरथला, पंजाब के राजा थे और माता रानी हरनाम सिंह थीं। राजा हरनाम सिंह की आठ संतानें थीं, जिनमें राजकुमारी अमृत कौर अपने सात भाईयों में अकेली बहिन थीं। अमृत कौर के पिता ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। अमृतकौर का सम्बंध कपूरथला, पंजाब, के राजघराने से था। वे महान समाज सुधारक और गांधीवादी भी थीं। देश की आजादी और विकास में उनका योगदाना सराहनीय है। राजकुमारी अमृत कौर की आरम्भ से लेकर आंत तक की शिक्षा इंग्लैण्ड में हुई थी। उनके पिता के गोपाल कृष्ण गोखले से बहुत ही अच्छे मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। इस परिचय का प्रभाव राजकुमारी अमृत कौर पर भी पड़ा था। वे देश के सामाजिक और राजनीतिक जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगी थीं। राजकुमारी अमृत कौर पहली भारतीय महिलाथीं, जिन्हें केंद्रीय मंत्री बनने का मौका मिला ।

था। पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित पहले मंत्रिमंडल में वे शामिल थीं। उन्होंने स्वास्थ्‍य मंत्री के पद का कार्यभार 1957 तक सँभाला। ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान’ (AIIMS) की स्थापना में उनकी मुख्य भूमिका रही थी। वह इसकी पहली अध्यक्ष भी बनायी गयीं। इस संस्थान की स्थापना के लिए उन्होंने न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम जर्मनी, स्वीडन और अमरीका से भी मदद हासिल की थी। उन्होंने और उनके एक भाई ने शिमला में अपनी पैतृक सम्पत्ति और मकान को संस्थान के कर्मचारियों और नर्सों के लिए “होलिडे होम” के रूप में दान कर दिया था।

1950 में उन्हें ‘विश्वस्वास्थ्य संगठन’ का अध्यक्ष बनाया गया। यह सम्मान हासिल करने वाली वह पहली महिला और एशियायी थीं। डब्ल्यूएचओ के पहले पच्चीस वर्षों में सिर्फ दो महिलाएँ इस पद पर नियुक्त की गई थीं। राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं और हरिजनों के उद्धार के लिए भी कई कल्याणकारी कार्य किए। वे बाल विवाह और पर्दा प्रथा के सख्त ख़िलाफ़ थीं और  लड़कियों की शिक्षा में इन्हे बडी बाधा मानती थीं। उनका कहना था कि शिक्षा को नि:शुल्क और अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। राजकुमारी अमृत कौर ने महिलाओं की दयनीय स्थिति को देखकर ही 1927 में ‘अखिल भारतीय महिला सम्मेलन’ की स्थापना की। वह 1930 में इसकी सचिव और 1933 में अध्यक्ष बनीं। उन्होंने ‘ऑल इंडिया वूमेन्स एजुकेशन फंड एसोसिएशन’ के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया और नई दिल्ली के ‘लेडी इर्विन कॉलेज’ की कार्यकारी समिति की सदस्य भी रहीं। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें ‘शिक्षा सलाहकार बोर्ड’ का सदस्य भी बनाया था , जिससे उन्होंने ‘भारत छोडो आंदोलन’ के दौरान इस्तीफादे दिया था। उन्हें 1945 में लंदन और 1946 में पेरिस के यूनेस्को सम्मेलन में भारतीय सदस्य के रूप में भेजा गया था। वह ‘अखिल भारतीय बुनकर संघ’ के न्यासी बोर्ड की सदस्य भी रउन्होंने 16 वर्षों तक गाँधीजी के सचिव के रूप में भी काम किया। गाँधीजी के नेतृत्व में  1930 में जब ‘दांडी मार्च’ की शुरुआत हुई, तब राजकुमारी अमृतकौर ने उनके साथ यात्रा की और जेल की सजा भी काटी। 1934 से वह गाँधीजी के आश्रम में ही रहने लगीं। और उन्हें ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के दौरान भी जेल हुई।

अमृत कौर ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की प्रतिनिधि के तौर पर 1937 में पश्चिमोत्तर सीमांत प्रांत के बन्नू गई। ब्रिटिश सरकार को यह बात नागवार गुजरी और उसने राजद्रोह का आरोप लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया। उन्होंने सभी को मताधिकार दिए जाने की भी वकालत की और भारतीय मताधिकार और संवैधानिक सुधार के लिए गठित ‘लोथियन समिति’ तथा ब्रिटिश पार्लियामेंट की संवैधानिक सुधारों के लिए बनी संयुक्त चयन समिति के सामने भी अपना पक्ष रखा था । जब देश आज़ाद हुआ, तब उन्होंने यूनाइटेड प्रोविंस के मंडी से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लडि और जीतीं ये सीट आज हिमाचल प्रदेश में पड़ती है. सिर्फ चुनाव ही नहीं जीतीं, बल्कि आज़ाद भारत की पहली कैबिनेट में हेल्थ मिनिस्टर भी बनीं. लगातार दस सालों तक इस पद पर बनी रहीं, वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की प्रेसिडेंट भी बनीं। इनसे पहले कोई भी महिला इस पद तक नहीं पहुंची थी यही नहीं इस पद पर पहुंचने वाली वो एशिया से पहली व्यक्ति थीं। स्वास्थ्य मंत्री बनने के बाद उन्होंने कई संस्थान शुरू किए, जैसे – इंडियन काउंसिल ऑफ चाइल्ड\ वेलफेयर  –  ट्यूबरक्लोसिस एसोसियेशन ऑफ इंडिया, –  कॉलेज ऑफ नर्सिंग, और –   सेन्ट्रल लेप्रोसी एंड रीसर्च इंस्टिट्यूट

इन सभी के अलावा उन्होंने एक ऐसा संस्थान भी स्थापित करवाया, जो आज देश के सबसे महत्वपूर्ण अस्पतालों में से एक है. ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज. यानी aiims. 75 साल की उम्र में 6 फरवरी, 1964 कोराजकुमारी अमृत कौर गुज़र गईं. लेकिन आज़ाद भारत के बनने, और उसके स्वस्थ बने रहने में उनका योगदान अहम हैं ।

ए॰ आर॰ रहमान जीवन परिचय/ Biography A. R. Rahman

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