Wednesday, January 15, 2025
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कोठारी आयोग 1964-66

कोठारी आयोग 1964-66

कोठारी आयोग (1964-66) भारतीय शिक्षा प्रणाली में सुधार और उसके पुनर्गठन के उद्देश्य से गठित एक महत्वपूर्ण आयोग था। इसे “राष्ट्रीय शिक्षा आयोग” (National Education Commission) भी कहा जाता है। इसका गठन 1964 में भारत सरकार द्वारा डॉ. दैवत पांडुरंग कोठारी (डी.एस. कोठारी) की अध्यक्षता में किया गया।

इस आयोग का मुख्य उद्देश्य एक राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण करना था, जो देश के सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक विकास के लिए उपयुक्त हो। आयोग ने 1966 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमें कई महत्वपूर्ण सिफारिशें की गईं।

आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास और शिक्षा के क्षेत्र में किया गये महत्वपूर्ण कार्य। READ MORE

 

कोठारी आयोग की पृष्ठभूमि:

  • स्वतंत्रता के बाद भारत में शिक्षा को विकसित करने के लिए अलग-अलग स्तर पर प्रयास किए जा रहे थे।

  • 1961 में भारत ने यूनिवर्सल प्राइमरी एजुकेशन (सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा) की ओर ध्यान देना शुरू किया, लेकिन स्पष्ट दिशा-निर्देश की कमी थी।

  • देश में एक संगठित और वैज्ञानिक शिक्षा प्रणाली की जरूरत थी।


कोठारी आयोग की प्रमुख सिफारिशें:

1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति का निर्माण:

  • शिक्षा को समाजवाद, लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के आधार पर विकसित किया जाए।

  • राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने और समाज में समानता लाने के लिए शिक्षा का उपयोग किया जाए।

2. 10+2+3 शिक्षा प्रणाली:

  • शिक्षा को तीन चरणों में विभाजित करने की सिफारिश की गई:

    • 10 साल का स्कूल स्तर

    • 2 साल का उच्चतर माध्यमिक स्तर

    • 3 साल का स्नातक (डिग्री) स्तर

3. शिक्षा पर जीडीपी का 6% खर्च:

  • शिक्षा के लिए राष्ट्रीय आय का 6% खर्च करने की सिफारिश की गई।

  • यह ध्यान दिलाया गया कि शिक्षा के लिए संसाधनों की कमी देश के विकास को बाधित कर सकती है।

4. सार्वभौमिक और निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा:

  • 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करने पर बल दिया गया।

5. पाठ्यक्रम सुधार:

  • विज्ञान और प्रौद्योगिकी शिक्षा को प्राथमिकता दी गई।

  • तकनीकी और व्यावसायिक शिक्षा का विस्तार करने की सिफारिश की गई।

6. समान शिक्षा का प्रावधान:

  • सभी वर्गों, विशेष रूप से अनुसूचित जाति, जनजाति और महिलाओं को शिक्षा का समान अवसर प्रदान किया जाए।

7. भाषा नीति:

  • “त्रिभाषा सूत्र” लागू करने की सिफारिश:

    • एक क्षेत्रीय भाषा

    • हिंदी

    • अंग्रेजी

8. शिक्षक प्रशिक्षण:

  • शिक्षकों की योग्यता में सुधार लाने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम।

  • शिक्षकों की सेवा शर्तों में सुधार।

9. अनुसंधान और विकास:

  • उच्च शिक्षा में अनुसंधान को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय विकास के लिए इसे उपयोगी बनाने की सिफारिश।

10. सामुदायिक शिक्षा और वयस्क शिक्षा:

  • शिक्षा को समुदाय से जोड़ने और वयस्क साक्षरता कार्यक्रम चलाने की आवश्यकता बताई गई।


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महत्व:

कोठारी आयोग ने भारत में शिक्षा की संरचना और नीतियों को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसकी सिफारिशें 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Policy on Education, 1968) का आधार बनीं।

आयोग का प्रभाव:

  1. शिक्षा को समग्र विकास और राष्ट्रीय एकता का माध्यम बनाने पर जोर दिया गया।

  2. विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ठोस कदम उठाए गए।

  3. शिक्षा की गुणवत्ता और समानता में सुधार के लिए प्रयास किए गए।


निष्कर्ष:
कोठारी आयोग भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सुधार का एक मील का पत्थर साबित हुआ। इसकी सिफारिशों का प्रभाव आज भी भारतीय शिक्षा प्रणाली में देखा जा सकता है।


आधुनिक भारत में शिक्षा विकास और शिक्षा क्षेत्र में हुआ कार्य

 

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