Wednesday, February 12, 2025
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1968) भारत में पहली शिक्षा नीति थी जिसे स्वतंत्रता के बाद लागू किया गया। इसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में तैयार किया गया था। इस नीति का उद्देश्य शिक्षा को देश के सामाजिक और आर्थिक विकास का आधार बनाना था। इसका फोकस शिक्षा की गुणवत्ता, समानता और सर्वव्यापकता पर था।

 

नीति के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:-

 

1. सर्वशिक्षा और समानता का सिद्धांत

  • हर बच्चे को प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराना।
  • लड़कियों और समाज के पिछड़े वर्गों को शिक्षा के समान अवसर प्रदान करना।

2. भाषा नीति

  • त्रिभाषा सूत्र लागू करना:
    • मातृभाषा/स्थानीय भाषा,
    • हिंदी,
    • अंग्रेजी या अन्य कोई आधुनिक भारतीय भाषा।
  • संस्कृत को एक वैकल्पिक भाषा के रूप में प्रोत्साहित करना।

3. शिक्षा का राष्ट्रीयकरण

  • शिक्षा में सांस्कृतिक और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना।
  • भारत के सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखना और आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के साथ संतुलन स्थापित करना।

4. शिक्षा का विस्तार

  • ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूलों का विस्तार।
  • उच्च शिक्षा में विज्ञान और तकनीकी शिक्षा पर विशेष जोर।
  • व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देना।

5. शिक्षकों की स्थिति में सुधार

  • शिक्षकों के प्रशिक्षण और वेतन में सुधार करना।
  • शिक्षकों के लिए न्यूनतम योग्यता निर्धारित करना।

6. पुस्तकालय और शोध को प्रोत्साहन

  • स्कूलों और कॉलेजों में पुस्तकालय सुविधाओं का विस्तार।
  • अनुसंधान और उच्च शिक्षा में नवाचार को बढ़ावा देना।

7. शिक्षा पर व्यय में वृद्धि

  • शिक्षा पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) का 6% खर्च करने का लक्ष्य रखा गया।

प्रभाव

इस नीति ने भारत में शिक्षा प्रणाली को एक नई दिशा दी। यह नीति देश में शिक्षा के सार्वभौमिकरण और उसकी गुणवत्ता में सुधार का पहला कदम मानी जाती है। इसके बाद 1986 और 2020 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीतियां लाई गईं।

यदि आप किसी विशेष बिंदु पर विस्तार से जानकारी चाहते हैं, तो कृपया बताएं।

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