Friday, December 6, 2024
HomeINDIAN HISTORYMODREN HISTORYरौलेट एक्ट:1919

रौलेट एक्ट:1919

रौलेट एक्ट 1919: परिचय और पृष्ठभूमि

रौलेट एक्ट 1919 ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत में पारित एक विवादास्पद कानून था। इसे “अनार्किस्ट और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम, 1919” के नाम से भी जाना जाता है। इसे सर सिडनी रौलेट की अध्यक्षता वाली समिति द्वारा तैयार किया गया और 18 मार्च 1919 को लागू किया गया।

एक्ट का उद्देश्य और कारण

इस एक्ट का उद्देश्य भारतीय समाज में उभर रही क्रांतिकारी और स्वतंत्रता की मांग करने वाली गतिविधियों को कुचलना था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विरोध और क्रांतिकारी गतिविधियों में वृद्धि हुई थी। ब्रिटिश सरकार ने इस असंतोष और क्रांतिकारी गतिविधियों पर नियंत्रण पाने के लिए यह कानून लागू किया।

इस कानून को बिना वकील, बिना अपील, बिना दलील का कानून कहा गया। कारण यह था कि सरकार जिसको चाहे, जब तक चाहे जेल बंद रख सकती थी और वह भी बिना मुकदमा चलाए।  काला कानून कहकर भारतीयों ने इसका विरोध किया।

 

गाँधीजी ने रौलेट सत्याग्रह के लिए तीन राजनितिक मंचो का उपयोग किया था – होमरूल लीग, खिलाफत एवं सत्याग्रह सभा था, काला  कानून को लेकर 6 अप्रैल, 1919 को गाँधीजी के अनुरोध पर देशभर में हड़ताल का आयोजन हुआ। छोटी – मोटी हिंसा के बिच पंजाब और दिल्ली में गाँधी जी के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया गया।

पंजाब के लोकप्रिय नेता डॉo सत्यपाल और डॉसैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में ब्रिटिश का दमन करने के लिए 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर में शांतिपूर्ण जुलुस निकाली गयी, 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर के  जलियावाला बाग़ में दोनों नेताओं के गिरफ्तारी के विरोद्ध एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया था। जिसमें भारी नरसंहार हुआ और इस दिवश को भारत में काले दिन के नाम से जाना जाता  है।

 

मुख्य प्रावधान

  1. बिना मुकदमे के गिरफ्तारी: किसी भी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार किया जा सकता था और उसे दो साल तक बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के जेल में रखा जा सकता था।
  2. प्रेस पर नियंत्रण: प्रेस की स्वतंत्रता पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए। किसी भी अखबार या पत्रिका को सरकार द्वारा बिना अनुमति के बंद किया जा सकता था।
  3. विशेष शक्तियां: अधिकारियों को संदेह के आधार पर गिरफ्तारी करने और बिना मुकदमे के जेल भेजने की विशेष शक्तियां प्रदान की गईं।
  4. सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों पर प्रतिबंध: इस एक्ट के तहत राजनीतिक आंदोलनों और सभाओं पर प्रतिबंध लगाए गए ताकि ब्रिटिश सरकार के खिलाफ किसी भी प्रकार का विरोध न हो सके।

विरोध और प्रमुख नेता

इस कानून के खिलाफ पूरे भारत में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद और अन्य प्रमुख नेताओं ने इस कानून का विरोध किया। महात्मा गांधी ने इसे “काला कानून” कहकर विरोध जताया और इसके खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।

प्रमुख घटनाएँ

  1. जलियांवाला बाग हत्याकांड (13 अप्रैल 1919): इस एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक शांतिपूर्ण सभा हो रही थी। जनरल डायर ने इस सभा पर गोली चलाने का आदेश दिया, जिससे सैकड़ों निहत्थे लोग मारे गए। इस घटना ने पूरे देश को हिला दिया और ब्रिटिश शासन के प्रति आक्रोश बढ़ गया।
  2. असहयोग आंदोलन: रौलेट एक्ट के विरोध में महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन की शुरुआत की, जिसमें लोगों ने ब्रिटिश संस्थानों का बहिष्कार किया और अंग्रेजी शासन के खिलाफ आवाज उठाईRead More –

परिणाम और निष्कर्ष

रौलेट एक्ट ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक गति दी। जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट कर दिया। इस कानून ने भारतीय समाज में ब्रिटिश शासन के खिलाफ गहरा आक्रोश और विरोध उत्पन्न किया, जिसने अंततः स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया।

निष्कर्ष: रौलेट एक्ट 1919 भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। इसने भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया और स्वतंत्रता की मांग को और अधिक मजबूत किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड और असहयोग आंदोलन ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता के विरोध को एक नई दिशा दी और स्वतंत्रता संग्राम को एक निर्णायक मोड़ पर पहुंचाया।

 

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments