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वार्डा योजना 1937

वार्डा योजना 1937 (Wardha Scheme), जिसे बुनियादी शिक्षा योजना (Basic Education Scheme) के नाम से भी जाना जाता है, महात्मा गांधी द्वारा प्रस्तावित एक शिक्षा प्रणाली थी। यह योजना 1937 में भारत के वर्धा (Wardha), महाराष्ट्र में आयोजित एक सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत की गई थी। इसका उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा को व्यावहारिक, सस्ती, और समाजोपयोगी बनाना था।


वार्डा योजना का मुख्य उद्देश्य

महात्मा गांधी ने महसूस किया कि ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली भारतीय समाज की आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर रही थी। उन्होंने ऐसी शिक्षा प्रणाली की आवश्यकता महसूस की, जो:

  1. व्यावहारिक हो और भारतीय समाज के आर्थिक और सांस्कृतिक संदर्भों के अनुरूप हो।
  2. स्वावलंबन (self-reliance) को बढ़ावा दे।
  3. ग्रामीण बच्चों को उनकी भाषा और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि में शिक्षा प्रदान करे।
  4. शिक्षा को आत्मनिर्भर बनाए, यानी शिक्षा की लागत को बच्चों के कार्य से पूरा किया जा सके।

वार्डा योजना के मुख्य बिंदु

  1. मातृभाषा में शिक्षा: प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में दी जानी चाहिए ताकि बच्चे अपनी संस्कृति और भाषा को बेहतर तरीके से समझ सकें।
  2. श्रम आधारित शिक्षा:
    • शिक्षा में हाथ से काम (Handicrafts) और श्रम (Work Education) को अनिवार्य हिस्सा बनाया गया।
    • बच्चों को बुनियादी हस्तशिल्प, जैसे बुनाई, कताई, मिट्टी के काम, आदि सिखाए जाने का सुझाव दिया गया।
    • श्रम आधारित गतिविधियां न केवल शिक्षा की लागत को पूरा करेंगी, बल्कि बच्चों में स्वावलंबन और व्यावसायिक कौशल भी विकसित करेंगी।
  3. सामाजिक और नैतिक मूल्यों का विकास:
    • शिक्षा के माध्यम से बच्चों में नैतिकता, स्वच्छता, सहयोग और समाज सेवा के गुण विकसित करने का उद्देश्य था।
  4. सस्ती शिक्षा: गरीब और ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा को सुलभ और किफायती बनाने का प्रयास किया गया।
  5. राष्ट्रीयता का विकास: शिक्षा का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति, परंपरा, और राष्ट्रीयता को मजबूत करना था।

वार्डा योजना का क्रियान्वयन

  • वार्डा योजना को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के हरिपुरा अधिवेशन (1938) में मंजूरी दी गई।
  • गांधीजी के विचारों के आधार पर इसे कुछ प्रांतों में लागू किया गया, लेकिन इसे व्यापक स्तर पर लागू करने में कई चुनौतियां आईं।
  • अंग्रेज़ी शासन के दौरान इस योजना को अपेक्षित सरकारी समर्थन नहीं मिला।

वार्डा योजना की विशेषताएं

  1. यह बच्चों को स्वावलंबी और रोज़गारोन्मुखी बनाने पर केंद्रित थी।
  2. सिद्धांत और व्यवहार का समन्वय: यह शिक्षा को पुस्तक आधारित बनाने के बजाय कौशल आधारित और व्यावहारिक बनाने पर जोर देती थी।
  3. भारतीय परंपराओं और ग्रामीण जीवन के साथ जुड़ी हुई थी।

वार्डा योजना की सीमाएं

  1. वित्तीय और प्रशासनिक समस्याएं: शिक्षा को आत्मनिर्भर बनाने के विचार को लागू करना व्यावहारिक रूप से मुश्किल था।
  2. व्यावसायिक प्रशिक्षण में असंगतता: सभी बच्चों को एक जैसे हस्तशिल्प और श्रम आधारित कार्यों में समान रुचि नहीं होती।
  3. आधुनिक जरूरतों को पूरा करने में कमी: यह योजना आधुनिक विज्ञान, तकनीकी और अंग्रेजी भाषा के महत्व को कम करती थी।

वार्डा योजना का प्रभाव

हालांकि वार्डा योजना को स्वतंत्रता पूर्व भारत में व्यापक रूप से लागू नहीं किया गया, लेकिन इसके सिद्धांतों ने स्वतंत्रता के बाद भारत की शिक्षा नीति को काफी प्रभावित किया। महात्मा गांधी के “नयी तालीम” (Nai Talim) के विचारों पर आधारित यह योजना आज भी वैकल्पिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत है।

आधुनिक शिक्षा में प्रभाव

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) में व्यावसायिक शिक्षा और मातृभाषा में शिक्षा के महत्व को पुनः अपनाया गया है।
  • कौशल आधारित शिक्षा पर ज़ोर वार्डा योजना की अवधारणा से मेल खाता है।

निष्कर्ष

वार्डा योजना शिक्षा को समाजोपयोगी, स्वावलंबी और भारतीय मूल्यों के साथ जोड़ने का प्रयास था। यह भारतीय शिक्षा प्रणाली में व्यावसायिक और व्यवहारिक शिक्षा की नींव रखने वाला पहला महत्वपूर्ण प्रयास माना जाता है।