इसमें इजराईल का गठन , युद्ध , क्षेत्रीय विस्तार ,1948 इजराईल तथा मिस्र के बिच संघर्ष। , यरूसलम आदि महत्वपूर्ण जानकारी
इजराईल का गठन(Formation of Israel)
प्रथम विश्वयुद के संदर्भ में विश्व का यदि हम अध्ययन करते है। तो यह देखते है की प्रथम विश्व युद्ध के बाद यहूदियों की समस्या एक बहोत बड़ी समस्या के रूप में विश्व के सामने परिलक्षित हुई। प्रथम विश्व युद्द के कारण जर्मनी काफी कमजोर हो गया था। जिसके कारण यहूदियों ने पैलेस्टाइन में अपनी राष्ट्रिय राज्य का सूत्रपात क्र दिया। यहूदियों ने यह समझ लिया था की द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो चूका है तथा यही सही समय है जब वे अपने राष्ट्रिय आकांक्षा को वास्तविकता रूप दे सकते है।
ब्रिटिश पार्लियामेंट 1945 ईस्वी में एक नाये चुनाव से गुजरा तथा इस पार्लियामेंट के चुनाव में जिस दल को बहुमत मिला वह दाल था मजदुर दाल। महदूर दाल के विजय से यहुदी काफी अधिक प्रोत्साहित हुए उन्होंने यह समझ लिया की अब उनके प्रथक राज्य क विचारधारा को मजदुर दाल के द्वारा सहानुभूति पूर्वक विचारोपरान्त स्वभाविक रूप से समर्थन दिया जाएगा। किन्तु ऐसा नहीं हुआ। इसके बाद यहूदी लोग आतंकवाद मारकात और तोड़फोड़ जैसे उग्र आंदोलन में शस्त्रों का खुलकर प्रयोग संभव हो गया। जिसके अंतर्गत उन्होंने इजराइल समस्या को सुलझाने के संदर्भ में अपने विचारो को रखा। इस स्वेत पर में यह कोशिश की गई की यहूदियों के उग्र प्रदर्शन पर रोक लगाई जा सके किन्तु यहूदी इससे संतुष्ट हो हुए क्योकि लगभग 75,000 से अधिक यहूदियों के समक्ष उपस्थित थी और यही कारन है की उन्होंने अंग्रेजी सरकार के विरुध्द आंदोलन के रस्ते पर चलने का निर्णय लिया। यहाँ पर यह स्पष्ट कहना आवश्यक होगा किना सिर्फ जर्मनी और इटली बल्कि अर्ब भी यहूदियों के विरोधी के रूप में कार्य कर रहे थे। इन सभी परिस्तिथियों ने यहूदी आंदोलन को अत्यधिक उग्र बना दिया और जिसके परिणाम स्वरुप 1 अक्टूबर 1945 की रात यहूदी लोगो ने उग्र आंतकवाद के मार्ग को चुनते हुए 133 स्थानों पर रेलवे द्वारा बिछाई गई रेल लाइनों को उड़ा दिया।
यहूदियों द्वारा किये आक्रमक कार्य
हैफ स्थित तेल साफ करने वाले कारखाने को आग के हवाले कर दिया गया और लीडा के रेलवे बॉर्ड पर हमला करके उसे क्षतिगस्त कर दिया गया। यहूदी अब किसी भी प्रकार से सिर्फ बातो और आश्वासन से अंतुष्ट नहीं हो सकते है। यही संदेश देने के लिए यहूदी लोगो ने उग्रता का प्र्दशन किया।
जेरूशलम पर अधिकार
931 ईस्वी पूर्व में इजराइल को दो भागो में विभाजित किया गया था। पहला उत्तर में इजराइल तथा दक्षिण में जुदा 1722 ईस्वी पूर्व में इस क्षेत्र में असीरिया सभ्यता के लोगों ने आक्रमण भी किया था। 568 ईस्वी पूर्व में बेबीलोन क जेरुसलम के क्षेत्र पर कब्जा रहा था तथा मंदिर को तुवा भी डाला था।
1517 से 1917 ईस्वी तक इजराइल ओटोमन साम्रज्य के अधीन रहा था। 1918 में ग्रेट ब्रिटेन ने फिलिस्तीन पर नियंत्रण स्थापित क्र लिया था। 1922 ईस्वी में राष्ट्र संघ ने बाल्फोर घोषणा को स्वीकृत इ दी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध तक ब्रिटेन का इस क्षेत्र पर अधिकार रहा था। यरुशलम यहूदी और मुसलमानो दोनों के लिए ही इ समान पवित्र स्थान है तथा यही दोनों के मध्य संघर्ष का कारण भी प्रारंभ से रहा था।
यदि हम गाजा पट्टी गोलन हाइट्स और वेस्ट बैंक के हाल के वर्षो के विषय में बात करते है तो यह अभी भी संघर्ष का कारण रहा है।
जिओनवाद यहूदियों के नाय आंदोलन के रूप में सामने उभर कर आया था। यह धार्मिक और राजनितिक आधार पर गठित किया था। और 19वी शताब्दी में अस्तित्व में आया था। 1882 से 1908 ईस्वी तक 35000 यहूदी फिलिस्तीन में आकर बस गए। थे वही 1904 से 1914 ईस्वी तक 40,000 यहूदी फिलिस्तीन में आकर बसे थे।
हिटलर के नाजीवाद शासन काल के से यूरोप में बसे यहुदी फिलिस्तीन में आकर बसने लगे थे और जीओवाद को अपना लिया था। इसका विरोध फिलिस्तीन में रह रहे अरब के लोगो के द्वारा किया गया था। 1948 में हुआ था जिसमे इजराइल तथा मिस्र के बिच संघर्ष क्षेत्र को लेकर हुआ था।
इसराइल के साथ अन्य देशों के युद्ध
इसराइल ने 1967 में मिस्र, जॉर्डन तथा सीरिया को 6 दिनों के अंदर पराजितकर दिया था। एवं 1973 के ओम किप्पूर युद्ध में मिस्र और सीरिया ने इजरायल पर बेम बरसाए थे और 2 हफ़्तों के अंदर संयुक्त राष्ट्र संघ ने हस्तक्षेप क्र युद्द को रुकवा दिया था। 1981 में गोलन हाइट्स पर इजराइल ने अधिकार कर लिया था।
1982 के लेबनान युद्ध में इजराइल ने लेबनान पर आक्रमण क्र दिया तथा फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के साथ संघर्ष किया था। द्वितीय फिलिस्तीन संघर्ष में फिलिस्तीन ने बेम से इजराइल पर आक्रमण किया था। लेबनान युद्ध में इजराइल का युद्ध हिजबुल्लाह इस्लामी सैनिक संगठन के साथ 2006 में हुआ था।
विश्व यहूदी संघ नाम से एक संगठन का। सह ही साथ इसविश्व यहूदी संघ के प्रतिनिधि के रूप में डेविड बेनगुरिया ने अमेरिका की यात्रा की न्यूयार्क के विलतमोर होटल में 1942 ईस्वी में एक सभा का आयोजन किया गया तथा इस सभा में कई बातो पर विचार विमर्श किया गया जिनमे स प्रमुख थे फिलिस्तीन को पूर्ण यहूदी राज्य क रूप में न सिर्फ स्थापित किया जाए बल्कि इसे यहूदी राज्य का दर्जा भी मिले।
यहूदी लोगो को अपने पृथक राज्य की सुरक्षा हेतु एक पृथक सेना बनाने का अधिकार भी दिया जाए। यहूदी लोगो को फिलिस्तीन में न सिर्फ रहने का अधिकार प्राप्त हो बल्कि उन्हें भूमि के क्रय – विक्रय का भी पूर्ण अधिकार प्राप्त हो।
इसी समय अमेरिका में चुनाव की सुगबुगाहट होने लगी जिसके कारण 1944 ईस्वी में फिलिस्तीन की मांग को एक नैतिक समर्थन प्राप्त करने का अवसर 1944 ईस्वी में हो रहे अमेरिकी चुनाव में प्राप्त हो गया। सच तो यह है की अमेरिका की दोनों प्रमुख दाल रिपब्लिकन दाल और डेमोक्रेटिक दाल 1944 ईस्वी में अमेरिका के चुनाव में यहूदी लोगो का समर्थन तथा उनका वोट प्राप्त करना चाहते थे।
टुमेन ने राष्ट्रपति पद पर आते ही ब्रिटेन से अनुरोध किया की फिलिस्तीन में यहूदियों को बसाने की रहने की सुविधा दी जाए तथा विश्व राजनीती की वर्तमान परिपेक्ष में ब्रिटिश इस माँग को ठुकरा नहि सका।
यहुदियो की समस्या पर नवंबर 1945 ईस्वी में एक एंगलो अमेरिका संयुक्त समिति बनाई गई। जिसने गंभीरतापूर्वक यहूदियों की समस्या पर विचार पर्ण तथा इसके नराकरण के लिए प्रयास करना प्रारंभ कर दिया। एंग्लो अमेरिका संयुक्त समिति की बैठक लंदन, वॉशिंगटन और जेरुसलम में आयोजित की एंग्लो अमेरिका संयुक्त समिति ने अप्रैल 1946 ईस्वी में यहूदियों की समस्याओ पर अपनी फिलिस्तीन में बसाने तथा यहूदियों के आतंक वादी गतिविधियों को समाप्त करने के बाद गतिविधियों को समाप्त करने के बाद कहि गई। एंग्लो अमेरिकी संयुक्त समिति की सिफारिशें फिलिस्तीन में अर्ब हितो के विरुद्ध थे।
यही कारण है की 1939 ईस्वी में पत्र जारी किया गया जिसमे यह स्पष्ट क्र दिया गया की वह इस अमेरिका संयुक्त समिति की सिफरिशों में किसी दूसरे देश के यहूदियों के यहां बसने के संदर्भ में कोई आपत्ति नहीं की गई थी। अब माँग कर रहे थे कि फलीस्तीन को ब्रिटिश संप्रभुता से मुक्त कर दिया जाए। इन सिफरिशों के कारण अरब भी आतंकवादी कार्यकर्म को अपनाने लगे।
यहुदी समुदाय का विश्वास भी अमेरिका से उठ गया था तथा उनका अमेरिका से मोहभंग पूरी तरह से हो चूका था। यही कारण है की हुए 16 जून 1946 ईस्वी को एक बड़े उग्रवादी घटना को अंजाम दिया जिसके अंतर्गत उन लोगो ने 8 पुलों को तोड़ दिया। अमेरिका तथा ब्रिटिश प्रतिनिधियों ने 31 जुलाई 1946 ईस्वी को यहूदी तथा अरब दोनों लोगो के हितो की रक्षा हेतु एक योजना प्रकाशित की।
संघ राज्य में 2 राज्यों को शामिल करने की सिफारिश की गई थी, जिसमे पहला था। यह अरब राज्य और दूसरा यहूदी राज्य। ब्रिटिश सरकार द्वारा एक सम्मेलन लंदन में आयोजित हुआ किन्तु यह सम्मेलन अर्ब और यहूदी लोगो को अपनी और आकर्षित करने में असफल रहा था अर्ब और यहूदी इन दोनों ही समुदायों में से कसी के भी प्रतिनिधि ने इसमें भाग नहीं लिया।
लंदन में आयोजित इस सम्मेलन में अरब इस बात पर जोर दे रहे थे की फिलिस्तीन को एक प्रभुत्व सम्पन्न राज्य के रूप में स्थापित किया जाए तथा लोकतंत्र की स्थपना करके वहाँ यहूदी लोगो और अर्ब लोगो को एक समान अधिकार प्रदान किया जाए।
फिलिस्तीन में यहूदी अपना राष्ट्रिय राज्य स्थापित करना चाहते थे जिससे यूरोप में विस्थापित यहूदियों को फिर से स्थापित किया जा सके। संयुक्त राष्ट्र संघ में भी फिलिस्तीन का मामला उठाया गया तथा 1 सितम्बर को 10 सदस्यों की समिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की थी।
संयुक्त राष्ट्र संघ के रिपोर्ट के कारण महायुद्ध के बाद रूस और अमेरिका विश्व के राजनीती के केंद्रबिंदु बन गए थे। रूस और अमेरिका फिलिस्तीन मामले में आपस में एकमत थे। संयुक्त राष्ट्र संघ ने 29 नवम्बर 1947 को दो पृथक राज्यों के प्रस्ताव पर विचार उपरांत उस पर अपनी सहमति प्रदान कर दी।
ब्रिटेन ने यद्यपि तटस्थ की नीति अपनाई। फिर भी अमेरिका और रूस चूँकि अब काफी शक्तिशाली राष्ट्र हो चुके थे उनके फसले को दो तिहाई का बहुमत प्राप्त हो गया परिणाम स्वरुप 14 मई 1948 को फिलिस्तीन में ब्रिटिश हुकूमत ने अपने अधिकार को समाप्त क्र दिया और 14 माई को इजराइल नाम से यहूदियों ने एक पृथक राज्य की घोषणा कर दी।
1948 से 49 तक अरब इजरायल युद्ध पश्चिमी एशिया के इतिहास में एक नए युग का प्रारम्भ था। अरब यहूदी युद्ध इजराइल निमार्ण के पश्चात्य आंरभ हुआ था। पश्चिम एशिया के इतिहास में यह एक शक्तिशाली इजराइल के राष्ट्र के निर्माण का प्रारंभ था।
ब्रिटिश हुकूमत की समाप्ति और इजराइल के निर्माण के साथ – साथ अरब यहुदी संघर्ष भी प्रारंभ हो गया। जिससे फिलिस्तीन में से अरब लोगो ने पलायन करना प्रारंभ कर दिया। फिलिस्तीन समस्या का अंत करने में संयुक्त राष्ट्र संघ के काउंट बंर्नडॉट का महत्वपूर्ण योगदान और अर्ब युद्ध को रोकने में बंर्नडॉट को सफलता मिली थी परंतु 19 सितंबर 1948 को उनकी हत्या कर दो गई और इसके साथ न खत्म होने वाले संघर्ष के युग का आरम्भ हो गया।
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