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झारखण्ड का सामान्य परिचय(General Introduction of Jharkhand) :- भौगोलिक संरचना(Geographical Structure), झारखण्ड ‘ का अर्थ ( Meaning of Jharkhand), जलवायु (Climate), झारखण्ड का भौगोलिक विभाजन (Physical division of Jharkhand), कृषि एवं सिंचाई व्यवस्था(Agriculture and Irrigation System) ,खनिज संसधान ( Mineral Resources), पशु संसाधन (Cattle Resources), उधोग – धंधे( Industries), पर्यावरण (Environment), जनसँख्य की स्थिति( Population)
किसी भी राज्य के सामान्य परिचय हेतु उसकी स्थिति, सिमा विस्तार, आकृति, क्षेत्रफल , जलवायु, कृषि व् उधोगो की स्थिति तथा खनिज संसाधनों आदि पहलुओं का अध्ययन किया जाता है। इसक अतिरिक्त जनसँख्या, पारिस्थितिकी तंत्र तथा सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं को भी जानकारी आवश्यक है। झारखण्ड राज्य का परिचय प्राप्त करने हेतु उक्त वाणिज्य शीर्षकों के अंतर्गत इसका अध्ययन निम्नलिखित प्रकार से किया सकता है
झारखण्ड की भौगोलिक संरचना (Geographical Structure of
Jharkhand) ‘झारखण्ड ‘ राज्य 15 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आया। नवनिर्मित ‘ झारखंड ‘ राज्य में प्रारम्भ में 18 जिले सम्मिलित थे किन्तु बाद में छः नए जिलों का सृजन होने से राज्य में कुल जिलों की संख्या 24 हो गई।
नव निर्मित झारखण्ड ‘ राज्य की सीमाएं उत्तर में बिहार, दक्षिण ने उड़ीसा , पूर्व में पश्चिम बंगाल तथा पश्चिम में छतीसगढ़ व् उत्तरप्रदेश तक विस्तृत है। राज्य कुल क्षेत्रफल 79,714 वर्ग किमी है। क्षेत्रफल का दृष्टि से इस राज्य का देश में 15व स्थान है। इसका क्षेत्रफल देश के कुल क्षेत्रफल का 2.42% है। इसकी राजधानी राँची है। क्षेत्रफल एवं जनसंख्या की दृष्टि से राज्य का सबसे बड़ा नगर जमशेदपुर है।
देश के उत्तरी – पूर्वी भाग में स्थित इस राज्य का सबसे बड़ी भौगोलिक विशेषता यह है की यह क्षेत्र पठारों एवं वनों भरा पड़ा है साथ ही खनिज – संपदा की भी प्रचुरता है जिसके कारण इस क्षेत्र को ‘रत्न्गर्भा ‘ भी कहा जाता है।
‘झारखण्ड ‘ का अर्थ ( Meaning of Jharkhand)- ‘ झारखण्ड ‘ से तातपर्य है ‘ झाड़ो का प्रदेश ‘ इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 13वी शताब्दी के एक ताम्र अभिलेख में हुआ था। बुकानन के अनुसार काशी से लेकर वीरभूम तक का समस्त पठारी क्षेत्र ‘ झारखण्ड ‘ कहलाता है। ‘ ऐतरेय ब्राह्मण ‘ में इसके लिए ‘ पुण्ड्र ‘ नामक शब्द का प्रयोग किया गया है।
जलवायु (Climate)- उत्तरी – गोलार्द्ध में स्थित झारखण्ड राज्य के मध्य से कर्क रेखा होकर गुजरती है। झारखण्ड अत्यधिक वर्षा वाला क्षेत्र है। यहाँ सर्वाधिक गर्म वर्षा नेतरहाट पठार में होती है। राज्य का सबसे ठंडा स्थान नेतरहाट तथा सर्वाधिक गर्म स्थान धनबाद है। राज्य का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर पारसनाथ (1365 मीटर) है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र पाए जाते है। जलवायु के आधार पर झारखण्ड को निम्नलिखित प्रदेशो में विभाजन किया जा सकता है —
1 . पूर्वी सीमान्त प्रदेश
2. झारखण्ड का मुख्य पठारी के प्रदेश
3. दक्षिणी पूर्वी सागरीय प्रभाव के प्रदेश
4. पलामू का निम्न पठारी प्रदेश
5. उत्तरी – पूर्वी छोटा नागपुर प्रदेश
झारखण्ड का भौगोलिक विभाजन (Physical division of Jharkhand) — झारखण्ड मुख्यतः पठारी क्षेत्र है। इस राज्य को ‘ छोटा नागपुर के पठार ‘ के रूप में भी जाना जाता है। इस पठार के निम्नलिखत तीन मुख्य भाग है ——
1. दक्षिण राँची पठार ( दामोदर नदी के दक्षिण में )
2. उत्तर में हजारीबाग का पठार ( दामोदर नदी के उत्तर में )
3. उत्तर – पूर्व स्थित राजमहल की पहाड़िया।
कृषि एवं सिंचाई व्यवस्था(Agriculture and Irrigation System) — झारखण्ड एक कृषि प्रधान क्षेत्र है। यहाँ की 77 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। झारखण्ड की ऊँची भूमि को ‘ टांड ‘ तथा नीची भीम को ‘ दोन ‘ कहा जाता है। यहाँ कृषि का मुख्य उदेश्य जीविकोपार्जन है। धान यहाँ की प्रमुख फसल है। कुल कृषि – योग्य भूमि के 61 प्रतिशत पर धान की खेती होती है। झारखण्ड में धान की तीन प्रमुख फसले गरमा, अगहनी व् भदई हजी। सर्वाधिक क्षेत्र में अगहनी धान की खेती की जाती यही। धान के बाद दूसरा स्थान मक्का उत्पादन का। मक्का मुख्य उत्पादक जिले राँची, पलामू, हजारीबाग व् संथाल परगना है। तृतीय मुख्य फसल गेहूँ है। इन प्रमुख फसलो के अतिरिक्त महुआ, चना, ज्वार, बाजरा , जौ , अरहर व तिलहन आदि की भी खेती की जाती है।
झारखण्ड की कृषि मानसून पर आधारित है किन्तु मानसून अनिश्चित रहता है ऐसे में सिंचाई –साधनो का महत्व बढ़ जाता है। झारखण्ड की भूमि समतल नहीं है। अंतः यहाँ वर्ष भर नदियों में जल नहीं रहता है। सिचांई साधनों की इन सीमाओं के कारण कुल कृषि भूमि का केवल 10 प्रतिशत भाग ही सिंचित है। झारखंड में सिंचाई का सर्वाधिक मुख्य साधन नहर एवं आहार है। कुल सिंचित क्षेत्र का 21.45 प्रतिशत भाग नहर द्वारा सिंचित है धरातल उबड़ –खाबड़ होने के कारण नहर –निर्माण भी कष्टप्रद है। यहाँ की तीन बड़ी नहर – प्रणाली निम्नलिखित है – मयूराक्षी, दामोदर एवं स्वर्ण रेखा। इसके अलावा नलकूपों से लगभग 8.25 प्रतिशत भूमि की सिंचाई होती है। भूमिगत जल का भण्डार काम होने के कारन नलकूपों से सिंचाई कुछ ही क्षेत्रों में की जाती है। झारखण्ड में कुंओ द्वारा लगभग 29.38 प्रतिशत भूमि की सिंचाई होती है। कुंओ से सर्वधिक सिंचाई गुमला जिले में की जाती है। झारखण्ड में तालाबों का भी पर्याप्त महत्व है। कठोर चट्टाने होने के कारन इनमे जल अधिक समय तक रुका रहता था।
वर्षा की अनिश्चित के कारन झारखण्ड के कई क्षेत्र सूखा – ग्रसित होते जा रहे है। झारखण्ड सरकार ने 2001 में 56 प्रखण्डों को सूखा – प्रभावित क्षेत्र घोषित किया तथा 2002 में सम्पूर्ण राज्य को ही सूखा – प्रभावित क्षेत्र घोषित क्र दिया गया।
खनिज संसधान ( Mineral Resources)– झारखण्ड क खनिज सम्पन्न राज्य है छोटा नागपुर पठार न केवल झारखण्ड का वरन सम्पूर्ण भारत का भी सबसे सम्पन्न क्षेत्र है। भारत का 54% अभ्र्क तथा 34% कोयला यही पाया जाता है। भारत के किसी अन्य क्षेत्र में इतने सरे खनिज नहीं पाया जाता है जितने की झारखंड में मिलते है। झारखण्ड प्रतिवर्ष लगभग 5000 मिलियम मूल्य का खनिज उत्पादित करता यही। यहाँ की ‘दामोदर घाटी ‘ को ‘ खनिजों का भण्डार गृह ‘ (Store house of
Minerals )भी कहते है। खनिजों की खनिजों की प्रचुरता के कारण ही इसे ‘ रत्नगर्भा ‘ भी खा गया है। झारखण्ड क्षेत्र में पये जाने वाले प्रमुख खनिज है — ताँबा , टिन, सीसा, बॉक्साइट, अभ्र्क, सोना, चाँदी , माणि, क्वार्ट्जाइट, ग्रेनाइट, कोयला, यूरेनियम, थोरियम आदि। अभ्र्क के संचय व उत्पादन में झारखण्ड न केवल भारतीय राज्यों में वरन पुरे विश्व में अग्रणी है।
पशु संसाधन (Cattle Resources)— देश की अर्थव्यवस्था में पशु संसाधनों का अत्यधिक महत्व है। जहाँ एक और देश की कृषि पशुओं पर आधारित है वही दूसरी और स्वास्थ्य की दृष्टि से भी पशुओं का महत्व है। झारखण्ड में भी पशु धन का विशे महत्व है। इस राज्य में प्रत्येक पाँच व्यक्ति पर एक पशु उपलब्ध है। गाय, बैल व् भैंस झारखण्ड की कृषि व्यवस्था के अभिन्न अंग है। झारखण्ड के छोटा नागपुर क्षेत्र में राज्य की एक – तिहाई गाये पाई जाती है। गायों के अतिरिक्त दुग्ध प्राप्ति के लिए भैंसे पाली जाती है।
झारखण्ड वन्य प्राणियों की बहुलता के लिए विविधता के लिए लिया जाता है। पलामू, सिंहभूम व् हजारीबाग के जंगलो में शेर व् मोर अधिकता में पाए जाते है। पलामू, सिंहभूम, हजारीबाग व् धनबाद के जंगलो में हाथी पाए जाते है। इसके अतिरिक्त बन्दर, भालू, तेंदुओ, जंगली सुअर व् जंगली कुत्ता आदि पाए जाते है। झारखण्ड के वन्य क्षेत्रों को ‘ राष्ट्रिय उद्यानो ‘एवं ‘ वन्य जिव अभ्यारण्यों ‘ के रूप में सुरक्षित रखने के प्रयास किये गए यही। वर्तमान में झारखण्ड में दो नेशनल पार्क तथा 9 अभयारण्य है। हजारीबाग जिले में सन 1976 में ‘ राष्ट्रीय उद्यान ‘ कीस्थापना की गई। 1986 में ‘बेतला नेशनल पार्क की स्थापना की गई। अन्य अभ्यारण्य में प्रमुख है —- पारसनाथ अभ्यारण्य , पालकोट अभ्यारण्य , पलामू अभ्यारण्य, कोडरमा अभ्यारण्य, दलमा अभ्यारण्य आदि।
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उधोग – धंधे( Industries) — सन 1907 में वर्तमान झारखण्ड के जमशेदपुर में एक सहसी उधमी जमशेदजी टाटा ने ‘टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी‘ की स्थापना की। उन्ही के नाम पर साकची का नाम ‘ जमशेदपुर ‘ या ‘टाटानगर‘ पड़ा। स्वतंत्रता के पश्चात इस प्रान्त में अनेक प्रकार के उधोगों की स्थापना की गई। लौह – इस्पात उत्पादन की दृष्टि से झारखण्ड का देश में प्रथम स्थान है। झारखण्ड के अन्य प्रमुख उधोग है – एल्युमिनियम उधोग, तांबा उधोग , सीमेन्ट उधोग , सीसा उधोग , अभ्रक उधोग , रेशम उधोग , तम्बाकू उधोग, माचिस उधोग , उर्वरक उधोग, विस्फोटक उधोग, देशी शराब उधोग, हस्तकरघा उधोग आदि। झारखण्ड में इस मुख्य उधोग के अतिरिक्त घरेलु व् लघु उधोगो का भी अस्तित्व है।
पर्यावरण (Environment) – प्रारम्भ में झारखण्ड पर्यावरण की दृष्टि से संतुलित एवं प्रदूषण रहित था किन्तु प्रदेश में नई – नई परियोजनाएं आरम्भ होने के बाद तथा वन – कटाव एवं ओधोगिकीकरण की प्रक्रिया तीव्र होने के बाद पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। ताप – विधुत केन्द्रो के कारन दामोदर घाटी में वायु प्रदूषण की मात्रा सर्वाधिक है। घरेलु सीवेज , औधोगिक अवशिष्ट एवं कतिपय अन्य कारणों से जल –प्रदूषण की में भी निरंतर वृद्धि भूमि – प्रदूषण का एक प्रमुख कारण सिध्द हुआ है।
जनसँख्य की स्थिति( Population) — अति प्राचीन काल में झारखण्ड विरल जनसंख्या वाला प्रदेश था किन्तु 19 वी सदी के उत्तरारद्द में जनसँख्या वृद्धि की गति तीव्र हो गई। प्रारम्भ में यहाँ आदिवासियों की बहुलता थी किन्तु वर्तमान में ऐसा नहीं है। जनसंख्या की द्रिष्ट से देश के राज्यों में झारखण्ड 13वा स्थान है। जनजातियों में सर्वाधिक जनसँख्या संथालों की है। यहाँ की अन्य प्रमुख जनजातियाँ है — उरांव , हो,असुर, लोहरा, बिरहोर , खड़िया व् पड़िया आदि , ये जनजातियाँ हिन्दू धर्म से विशे रूप से प्रभावित रही है। 2001 की जनगणना के अनुसार झारखण्ड की कुल आबादी का 68.6 प्रतिसत हिन्दू है राज्य की प्रमुख भाषा भी हिंदी है।
झारखण्ड की जनसँख्या के वितरण में समानता नहीं है। उधोगिक क्षेत्रों में आबादी सघन है। ये क्षेत्र निम्न्लिखित है – दामोदर घाटी , झरिया कोयला क्षेत्र , बोकारो स्टील क्षेत्र, रांची, जमशेदपुर व् स्वर्णरेखा घाटी। झारखण्ड में सर्वाधिक जनसँख्या घनत्व धनबाद जिले में है। पठारी एवं वन्य क्षेत्रों में जनसँख्या – घनत्व अपेक्षाकृत काम है। जहॉ तक जनसंख्या के लिंगनुपात का संबंध है , सन 2001 की जनगणन के अनुसार झारखण्ड में प्रति एक हजार पुरुष पर 941 महोलाये है। एकमात्र कोडरमा जिला ऐसा है झा स्त्रियों की जनसँख्या की अपेक्षा अधिक है। यहाँ प्रति हजार पुरुषो पर 1001 महिलाएं है।
जनसँख्या के सामाजिक विकास का एक प्रमुख मापदण्ड साक्षरता है। 2001 की जनगणन का प्रतिशत सर्वाधिक है। इस राज्य में जनता का व्यवसायिक वर्गीकरण भी स्पष्ट रूप से मिलता है। जनगणना से प्राप्त आँकड़ो के आधार पर स्पष्ट होता है कि झारखण्ड की आबादी का कुल 77.75 प्रतिशत मामो में तथा 22.25 प्रतिशत शहरों में निवास करता है।
संक्षेप में कहा जा सकता है की झारखण्ड राज्य पठारों एवं वनों से युक्त क्षेत्र है। इस क्षेत्र की भौगोलिक एवं जनसंख्यात्मक संरचना में पर्याप्त विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है।
वर्तमान में झारखण्ड की स्थिति (Situation of Jharkhand in Present)–पूर्व की अपेक्षा अच्छी है क्योंकि अब झारखण्ड भी अन्य राज्यों के तुलना में अपना स्थान पुरे विश्वा में बना रहा है चाहे वह राजनितिक हो या सांस्कृतिक अन्य जितने भी पह्लुये है आदि भी ऐसे क्षेत्र है जहाँ झारखण्ड अपनी पहचान बना रहा है।