ताशकंद समझौता (Tashkent Agreement) 1966 भारत और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता था, जिसे 10 जनवरी 1966 को हस्ताक्षरित किया गया था। यह समझौता 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध के बाद शांति स्थापित करने के लिए किया गया था। ताशकंद, उस समय सोवियत संघ (अब उज़्बेकिस्तान) का हिस्सा था, और इस समझौते को सोवियत संघ के प्रधानमंत्री एलेक्सी कोसीगिन की मध्यस्थता में संपन्न किया गया था।
समझौते के प्रमुख बिंदु इस प्रकार थे:
- युद्ध से पूर्व की स्थिति पर लौटना: दोनों देश अपनी सेनाओं को युद्ध से पहले की स्थिति पर वापस लाने पर सहमत हुए।
- द्विपक्षीय संबंधों की बहाली: दोनों देशों ने पारस्परिक संबंधों को पुनः स्थापित करने और दूतावासों को पुनः खोलने पर सहमति व्यक्त की।
- शांति और स्थिरता: दोनों पक्षों ने सभी विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने और भविष्य में किसी भी प्रकार की आक्रामकता से बचने का वादा किया।
- बंधकों और युद्धबंदियों की वापसी: युद्ध के दौरान पकड़े गए बंधकों और युद्धबंदियों की वापसी सुनिश्चित की गई।
ताशकंद समझौते पर भारत की ओर से प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए। इस समझौते के कुछ ही समय बाद 11 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री शास्त्री का निधन हो गया।
ताशकंद समझौता भारत-पाकिस्तान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम था, जिसने दोनों देशों के बीच शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया।
ताशकंद समझौता भारत और पाकिस्तान के लिए शांति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, लेकिन इसके प्रभाव और परिणामों को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ थीं।
प्रभाव और परिणाम
- सीमित सफलता: समझौते ने युद्धविराम सुनिश्चित किया और युद्ध से पहले की स्थिति बहाल की, लेकिन यह सीमा विवादों और कश्मीर मुद्दे का स्थायी समाधान नहीं कर सका।
- लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु: ताशकंद समझौते के ठीक बाद, 11 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की आकस्मिक मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु ने समझौते पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न कीं, और कुछ लोगों ने इसे संदेह की नजर से भी देखा।
- राजनीतिक असंतोष: भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में इस समझौते को लेकर राजनीतिक असंतोष था। पाकिस्तान में, राष्ट्रपति अयूब खान की सरकार को विपक्ष से कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा, जबकि भारत में कुछ वर्गों ने समझौते को भारत की ओर से की गई रियायत के रूप में देखा।
- भविष्य की वार्ताएँ: ताशकंद समझौते ने भविष्य में द्विपक्षीय वार्ताओं और संवाद के लिए एक मंच प्रदान किया। हालांकि, यह समझौता किसी स्थायी समाधान पर नहीं पहुँच सका, फिर भी इसने आगे की वार्ताओं के लिए एक नींव रखी।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
ताशकंद समझौता को भारत और पाकिस्तान के संबंधों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जाता है। यह शीत युद्ध के दौर में हुआ था, जब सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका दोनों ही उपमहाद्वीप में प्रभाव रखने की कोशिश कर रहे थे। सोवियत संघ की मध्यस्थता में यह समझौता सोवियत कूटनीति की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
निष्कर्ष
ताशकंद समझौता एक प्रयास था जिससे भारत और पाकिस्तान के बीच शांति स्थापित हो सके और युद्ध के बाद तनाव को कम किया जा सके। हालांकि, यह समझौता कुछ हद तक सफल रहा, लेकिन यह दोनों देशों के बीच स्थायी शांति और कश्मीर मुद्दे के समाधान के लिए अपर्याप्त साबित हुआ। ताशकंद समझौते के बाद भी भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध और संघर्ष हुए, लेकिन इस समझौते ने भविष्य में शांति प्रयासों के लिए एक आधार तैयार किया।
समझौते की सीमाओं के बावजूद, ताशकंद समझौता भारत-पाकिस्तान कूटनीतिक इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना रहेगा और यह दर्शाता है कि बातचीत और मध्यस्थता के माध्यम से भी संघर्षों को सुलझाने के प्रयास किए जा सकते हैं।