परिणाम इस प्रकार हैं
जन – धन की हानि: अर्थशास्त्र एवं सांख्यिकीगणक इस तथ्य का भली प्रकार आकलन नहीं कर सके है कि द्वितीय विश्व युद्ध के कारण कितनी संपत्ति नष्ट हुई है तथा कितने सैनिक आसैनिक मारे गए हैं। या अपंग होए है फिर भी इतिहासकारों ने अनुमान लगाया है कि विश्व को इस युद्ध के कारण एक लाख करोड़ रूपए से अधिक की आर्थिक हानि उठानी पड़ी है। अकेले ब्रिटेन में लगभग ₹2000 करोड़ पॉण्ड की संपत्ति नष्ट हुई थी। रूस की संपूर्ण राष्ट्रीय शक्ति का चतुर्थश युद्ध में नष्ट हुआ था। जर्मनी, पोलैंड, फ्रांस, इटली के विनाश का तो कोई अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है। इसमें दोनों पक्षों से ढाई करोड़ से अधिक सैनिक मारे गए। एक करोड़ से अधिक सैनिक भयंकर रूप से घायल एवं अपंग हुए। हवाई आक्रमणों ,युद्धपोतों तथ व्यापारिक जहाजों को डुबाने में जो सैनिक असैनिक एवं सम्पति नष्ट हुई उनका लेखा अलग है।
गुलाम देशों का प्रभुसत्तासंपन्न होना : द्वितीय विश्वयुद्ध के फलस्वरुप अनेक जिसके उपनिवेश स्वरूप या जिनके आधिपत्य में दूसरे देश थे काफी दुर्बल हो गए। अतः दुरस्त देशो पर प्रशासनिक नियंत्रण रखना कठिन हो गया। फलस्वरूप इन देशों में स्वतंत्रता तथा स्वयं – प्रभुसत्ता का आंदोलन मुखर होकर सामने आना शुरू हो गया। फ्रांस,होलेण्ड एवं पुर्तगाल के एशिया – अफ्रीकी की स्थिति साम्राज्य जो मृत्यप्राय हो चुके थे। कर्मसः उनके पंजे से मुक्त होने लगे थे। भारत श्रीलंका, मलेशिया मिस्र आदि देशों ने ब्रिटिश साम्राज्य को सत्ता से स्वयं को स्वतंत्र भारत देश विश्व युद्ध के पश्चात संसार के प्रतिष्ठा देशों में गिना जाने लगा है।
रूस एवं अमेरिका की प्रतिष्ठा में वृद्धि : द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरुप ब्रिटेन फ्रांस, जर्मनी, आस्ट्रीया आदि देश क्रमसः नीचे की श्रेणी में चले गए और अमेरिका तथा रूस संसार की दो प्रमुख शक्ति के रूप में प्रतिष्ठत हुआ। भारत के उदय से गुटनिरपेक्ष देशों की एक तीसरी शक्ति का उदय हुआ जिससे भारत की प्रतिष्ठा बढ़ी किंतु रूस एवं अमेरिका तकनीकी एवं शक्तियों में इस समय सर्व परी माने जा रहे थे तथा विश्व युद्ध होने के खतरे को संभालने का दायित्व लगभग इन्हीं पर है।
रासायनिक एवं विध्वंसकारी अस्त्र : द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणाम स्वरुप विभिन्न सक्षम देश के विज्ञानिक होने घातक अस्त्रों के निर्माण की बाढ़ ला दी। मानवतावादीयो एवं उदार दर्शनीको का कहना है कि तृतीय विश्वयुद्ध की स्थिति में यदि सभी जमा अस्त्र का प्रयोग कर लिया जाए तो ना कोई हारेगा और ना कोई विजेता यहां तक कि समुद्र की मछलियां एवं पेड़ पौधे भी विनाश हो जाएंगे। इस प्रकार द्वितीय विश्वयुद्ध में युद्ध की ललक शक्तिशाली देशों में पैदा कर कर दी थी। उन अस्त्रों के निर्माण एवं जमाखोरी की होड़ होने लगी थी। इधर कुछ शस्त्र पर परिसीमन की बात चल रही थी जिससे शांति की आशा की जा सकती थी।
विश्वव्यापी नाश और मृत्यु: द्वितीय विश्वयुद्ध ने बहुत सारे देशों में भारी नुकसान और नाश की प्रारंभ की। लाखों लोगों की मृत्यु हुई और जीवन की सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक स्थिति में बड़े परिवर्तन हुए।
नाजी विचारधारा की हार: द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप नाजी जर्मनी और उसके सहयोगियों की विजय नहीं हुई। अल्लाह शक्तियों (यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, रूस, चीन, और अन्य) ने उन्हें हराया और नाजी विचारधारा की आघातकता को दिखाया
यूनाइटेड नेशंस और संयुक्त राष्ट्र संगठन की स्थापना: युद्ध के बाद, दुनिया ने सामान्य विश्वशानासी को बढ़ावा देने और युद्ध के पुनरागमन की रोकथाम के लिए संगठनित करने की जरूरत महसूस की। इसके परिणामस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संगठन (यूएन) की स्थापना हुई जिसका मुख्य उद्देश्य विश्वशानासी और शांति की साधना था।
द्विघटन और बायपास की स्थितियों की समाप्ति: युद्ध के परिणामस्वरूप द्विघटन और बायपास की स्थितियों का अंत हुआ। उपभोक्ता वस्त्रों, यातायात, और सामाजिक गतिविधियों में सुधार हुआ और विभिन्न देशों के बीच व्यापार और आर्थिक सहयोग की स्थितियाँ स्थिर हुई।
बिपर्यासी द्वंद्व और युद्ध के परिणाम: द्वितीय विश्वयुद्ध के परिणामस्वरूप बिपर्यासी द्वंद्व की स्थितियाँ स्थायी बन गईं, जैसे कि यूरोप में सोवियत संघ और अमेरिका के बीच “शीत युद्ध”।
भारतीय सैनिक
उपयुक्त कारणों के अतिरिक्त विश्वयुद्ध की समाप्ति के फल स्वरुप मित्र राष्ट्र की कतिपय समस्याएं सामने आ खड़ी हुई जैसेー
i ) सहयोगी राष्ट्रों का पूर्णस्थापना 一 अपने सहयोगी राष्ट्रों की युद्ध पीड़ित जनता जो भुखमरी के कगार पर थी। उनके लिए अन्न वस्त्र आवश्यक दवाइयों का प्रबंध करना नए आवासों के निर्माण द्वारा तथा उद्योगों की स्थापना द्वारा उन्हें पूर्ण स्थापित करना।
ii ) मुक्ति देशों की शासन व्यवस्था को संतुलित करना 一 जर्मनी के अधिकार से मुक्त देशों की शासन – व्यवस्था को संतुलित करने का दायित्व भी मित्रराष्ट्रोंयों पर था। जटिलता यह थी भिन्न भिन्न देशो में विभिन्न प्रकार की राजनीतिक विचारधारा के लोग थे जिससे यहाँ की शासन व्यवस्था को एक दिशा देने में अत्यंत जटिल जटिलताएं उत्पन्न हो गई थी जिसका निराकरण आवश्यक भी था।
iii ) धुरी राष्ट्रों की समस्या 一 धुरी- राष्ट्रों की समस्या भी अत्यंत जटिल थी। जर्मनी- इंग्लैंड- जापानी ये धुरी – राष्ट्र थे। वहाँ नए सिरे से शासन – प्रणाली स्थापित करने का प्रश्न था। इसके विचार से जर्मनी इंग्लैंड युद्ध के दोषी थे। जपान इनका मित्र था अतः इन दोनों राज्यों में इन प्रकार की शासन व्यवस्था की जाए कि पुनः इनके द्वारा युद्ध भड़काने की संभावना ना रहे फलतः युद्ध कारखाने को नष्ट कर दिया गया तथा फसी एवं नाजी समर्थकों को कुचल देने का प्रयास किया गया।
iv ) पूर्वी देशों की समस्या — पूर्वी देशो मुख्यतः जापान के अधीन गए थे जिन्हें जापान ने देशवासियों को अपनी सरकार द्वारा आंतरिक शासन संचालन का अधिकार प्रदान कर दिया था। किंतु विदेशी या अन्य समस्या पर उसका पूरा नियंत्रण था सुमात्रा, जावा, बोर्नियो ,बर्मा , हिंदचीन तथा फ्लिपाइन्स ऐसे देश में मित्र राष्ट्र द्वारा इन पर पूरा अधिकार कर लेने से यहां की जनता क्षुब्ध हो उठी थी तथा विरोध करने लगी। अतः मित्र राष्ट्रों के सामने या प्रश्न था कि इन राज्यों को इस प्रकार निर्माण में रखा जाए।
द्वितीय विश्वयुद्ध का विश्व की संपूर्ण राजनीतिक संरक्षण पर प्रभावी प्रभाव पड़ा है। ब्रिटेन और फ्रांस की अपेक्षा अमेरिका एवं विश्व शक्तिशाली देश की उरकर विकसित हुए। आबादी का असंतुलन हुआ। नजियो एवं फासियों का सदा के लिए खात्मा हो गया। युद्ध सामग्री की दृष्टि से तकनीकी एवं रासायनिक नवीन मारक खोज हुई । अनेक परतण देश स्वतंत्र हुए। भारत की स्वतंत्र भारत की विश्व के नक्शे में एक गौरवमय पहचान बनी।
भारतीय सैनिक
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