Q1. द्वितीय विस्वा विश्वा युद्ध के प्रमुख कारण क्या थे। इसके कारणों की विवेचना कीजिये।
ANS- विश्व युद्ध की विभीषिका से संसार अभी पुरी तरहा त्राण भी नहीं हो पा सका था. कि 1 सितंबर 1939 ईस्वी की फुट हुई चिंगारी ने उसे द्वितीय विश्वा को ला खड़ा किया एवं चिंगारी ने उसे द्वितीय विश्वयुद्ध की विधि बनशकारी लपेटे में आश्रित कर लिया। विगत दो दशकों में जिस प्रकार आर्थिक विषमता के साथ साथ पुरुषों की बड़ी संख्या में संघार ने संपूर्ण यूरोप की आबादी आसंतुलन तथा नर नारी के अनुपात को विश्रंखला कर दिया था, उसे पुनः आसन्न देखकर विश्व की जनता एवं अन्य पीड़ित देश भयाक्रंत हो गये गए थे। युद्ध कोई नहीं चाहता था। स्वयं हिटलर भी नहीं चाहता था। वह तो अपनी सैन्य शक्ति की मात्रा आतंक का लाभ उठाकर पोलेण्ड से डजिंग छीन लेना चाहता था और यदि वह अपनी धौंस को प्रभावी बनाने में सफल हो गया होता तो विश्व युद्ध की स्थिति नहीं आती। किंतु जर्मनी की बढ़ती सैन सकती से यूरोप में ‘सेन सकती – संतुलन’ असंतुलन हो रहा था । जिसे ब्रिटेन फ्रांस रूस अमेरिका कैसे सहन कर सकते थे। युद्ध के अतिरिक्त और कोई विकल्प शेष नहीं रह गया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध के प्रमुख निम्नलिखित कारण थे। :-
1 ) वारसिया की अपमानजनक संधि:-
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात मित्र राष्ट्रों ने जर्मनी के साथ वार्ता की कठोर एवं अपमानजनक संधि की। इस संधि को द्वितीय विश्वयुद्ध का गर्भ गृह भी कहा जाता है। संधि की शर्ते इतनी कठोर थी कि जर्मनी की जनता ने इसका पुरजोर विरोध किया। जर्मनीकी जनता इस संधि में संशोधन चाहते थे, लेकिन मित्र राष्ट्रों ने दबाव डालकर उसे लागू करवाया। इस संधि के समय विजीत राष्ट्रो ने प्रतिशोध की भावना से जर्मनी का दमन एवं अपमान कर दिया। इसलिए यह संभव था कि आने वाले समय में जर्मनी इस अपमान का बदला लेगा। इतिहासकारों में इस तथ्य पर भी दो मत नहीं है कि वह वर्साय – संधि ईष्या एवं द्वेष तथा बदले की भावना से बलात जर्मनी। पर आरोपित थी और जिसे जर्मनी कभी भी पूरी तरह नहीं कर सकता था। इस संधि से जर्मनी को पूरी तरह से छिन्न-भिन्न कर देने तथा अपमानित करने का प्रयास किया गया था। इसके विरूद्ध जर्मन- राष्ट्रयता का उभरना एवं शक्ति अर्जित करना स्वाभाविक था। साथ ही संधि से इटली को भी नुकसान उठाना पड़ा। अतः सलोनी भी इस दृष्टि से हिटलर के दुख में भागी था।
2 ) ब्रिटेन की तुस्टिकरण की नीति:-
यूरोप में ब्रिटेन विभिन्न युद्धों से प्रायः अपने को दूर रखने तथा आर्थिक स्थिति और नौसैनिक बेड़े को सुदृढ़ करने में लगा रहता था। यदि युद्ध नीति का दृष्टिकोण से सुलझ जाए या टल जाए तो इसके लिए भी वह प्रत्यक्ष लगा था, किंतु कभी-कभी या नीति दुष्परिणाम का कारण भी बन जाती है। द्वितीय विश्वयुद्ध में यही हुआ ब्रिटेन को सबसे अधिक में जर्मनी से नहीं अपितु रूस प्रसूत उस साम्यवादी विचारधारा से थी भारत समेतअन्य देशों के वैचरिक चिंता को असंतुलित कर रही थी। अतः सोवियत संघ केंद्र में था। ब्रिटिश नीति निर्धारक में एशिया में जापान एवं यूरोप में जर्मनी- सोवियत संघ तह जो भविष्य में उसके वास्त्विह प्रतिद्वेंदी थे। इस प्रकार सोवियत संघ से ब्रिटेन को ज्यादा परेशान थी। ब्रिटेन चाहता थकी फ्रांस से असहयोग करके, उसपर दबाव डालकर ऐसी परिस्थिति पैदा की जाए कि हिटलर – मुसोलिनी- हिरोहितो एक साथ साम्यवादी रूस के विरुद्ध उठ खड़े हो। किन्तु यह अधकचरी निति जो पत्रकारों तथा चेम्बरलेन के साम्यवादी विरोधी पूर्वाग्रहों पर आधारित थी, सफल न हो सकी।चैम्बरलेन उस समय इंग्लैंड का प्रधानमंत्री था। उसने चेकोस्लोवालिया एवं पोलैंड का बिभाजनेवाम विनाश इसी उदेस्य से करवाया था की इन सफलतो ऐ होकर जर्मनी रूस पर चढ़ाई क्र दे। किन्तु हिटलर ने ऐसा नहीं किया और फलतः हिटलर की सकती को जो डिश रूस की और दी जा रही थी वाह संपूर्ण विस्वा को समेत लेने के लिए मुद गई। चेम्बरलेन की बहुत
बड़ी नीतिगत भूल थी जो विश्वयुद्ध का कारन बानी।
3 ) तानाशाह का उत्कर्ष:-
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात विजित राष्ट्रीय द्वारा जो कठोरता एवं दमनआत्मक कार्य किए गए। इसके फलस्वरूप पराजित राष्ट्रों के लोगों में भयंकर रोष पनपने लगा। इस रोज का फायदा उठाकर जर्मनी में हिटलर ने तानाशाही शासन की नींव डाल दी। हिटलर ने जर्मनी के खोया आत्मविश्वास की पुनः वापस लौट आने का वायदा वायदा किया। इसी इटली विजिट राष्ट्रों में एक था, परंतु इसके साथ मित्र राष्ट्र द्वारा से सौतेले व्यवहार के कारण इटलीवासियों में भी सोभ व्याप्त था। इसी असंतोष का फायदा मुसोलिनी ने उठाया और इटली में फासीवाद के माध्यम से निरंकुश सत्ता स्थापित कर लिया।
4 ) वचन -भंग :-
द्वितीय विश्वयुद्ध का एक अन्य कारण राज्यों की संधि शर्ते एवं दिए गए वचनों को तोड़ दिया था. राष्ट्रसंघ की विधान एवं हस्ताक्षरकर्ता देशों ने देशों अखंडता एवं स्वतंत्रता की रक्षा के लिए दिए गए वचनों का पालन नहीं कर सके । जापान चीन पर बलात्कार करता रहा। इटलीवासियों को रौंदाता रहा किंतु राष्ट्र संघ के उद्देश्य दोनों देशों की आवाज किसी ने नहीं सुनी। फ्रांस चेकोस्लोवाकिया लिए संधिबंध था, किंतु अवसर पड़ने पर उल्टे उसके विनाश में लग गया। जर्मनी ने जब चेक सीमा पर संपूर्ण राज्य को हड़पना प्रारंभ कर दिया तो उसकी सुरक्षा का वचन देने वाले ब्रिटेन और फ्रांस एक सफल विश्वासघाती की तरह मौन रहे। प्रोत्साहित होकर हीटलर ने चकोस्लोवाकिया के पश्चात ऑस्ट्रीया को भी हड़प लिया। मुसोलिनाी अवसीनिया पर कब्जा कर लिया। हिटलर ने पोलैंड पर चढ़ाई कर दी। इस प्रकार राष्ट्र संघ की नैतिक शक्तियों एवं शब्दों की गरिमा और ना वचनों के आधार पर बनाई गई नीति की शेष रह गई बल्कि संपूर्ण विश्व के स्वार्थ गति तो से आराजक्ता कि चपेट में आ गया था।
5 ) अस्त्र-शस्त्र एवं सैन्य शक्ति में वृद्धि:-
कतिपय इतिहासकारों का विचार है कि प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति एक वैसे आराम का घोतक था, जिससे द्वितीय विश्व युद्ध के लिए तैयारी की अवसर मिल सके। सभी राज्य अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने तथा संबद्ध उत्पादनो में तीव्र गति से वृद्धि करने में लगे गए थे। निशस्त्रीकरण सम्मेलन विफल हो गया था। राज्यों ने सीमा पर किलेबंदी आरंभ कर दी थी। फ्रांस एवं जर्मनी ने अपनी सीमाओं पर अलग अलग कठिन किलेबंदी प्रारंभ कर दी थी। फ्रांस ने स्विस सीमा पर मिलो की कतार खड़ी कर दी थी। फ्रंस एवं जर्मनी की तैयारियों से ब्रिटेन अछूता नहीं रह सका।
6 ) गुटबंदी :-
नीति निर्धारकों का आज भी विचार है कि संधि और गुडबंदी से युद्ध होने तथा इसके विस्तार होने में नियंत्रण या अवरोध होता है। किंतु या विचारधारा द्वितीय विश्वयुद्ध में मात्र एक मखोल बनकर रह गई है। संधि महत्वहीन हो गई है और गुडबंदी ने युद्ध को बढ़ावा दिया। जर्मनी इटली जापान फासिस्टवाद में विश्वास रखते थे। संधि के यह तीनों देश विरोधी थे। रूस साम्यवादी यों का सिरमौर था। इसके विपरीत फ्रांस, चेकोस्लोवाकिया, पोलेंड आदि देशों का हित समान था। वसार्य संधि से वे काफी लाभवित् हुए थे। सैद्धांतिक मतभेद के बावजूद युद्ध के प्रारंभ में जर्मनी रूस को मित्र बना सका था। इस प्रकार युद्ध आते-आते यूरोप को स्पष्ट गुटों में विभक्त हो गया था।
7 ) राष्ट्र संघ की असफलता :-
राष्ट्र संघ की स्थपना का मुख्य उद्देस्य – शांति एवं सदभावना कायम करना था। परन्तु प्रारंभ से ही इसे शक्तिशाली संस्था के रूप में विकसित होने नहीं दिया गया। इस कारण यह अपने उदेश्य की पूर्ति में असफलता रही और इसके कारण जर्मनी एवं अन्य देशों द्वारा राष्ट्रसंघ की अवज्ञा की गई।
ीा प्रकार राष्ट्र संघ की निष्क्रियता , सधियो एवं दिए गए आस्वासनों का भांग होना , वर्साय साधि का आप्रकृतिक स्वरुप एवं जर्मनी में हिटलर का उदय , साम्रज्य विस्तार की महत्वाकांक्षा , राज्यगत गुटबंदी , अधिक सैन्य शक्ति – संचय आदि कुछ ऐसे प्रमुख कारण थे जिससे विश्वयुद्ध की पृष्ट्भूमि गरम हो चुकी थी जिसकी 1 सितम्बर 1939 ईस्वी को जर्मनी द्वारा लगाया गया था किन्तु द्वितीय विश्वा की आग तो जर्मनी लगाई थी।