ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस का इसलिये गठन किया गया था क्योंकि हमारे देश में मजदूरों ने भी आंदोलन संचालित किया था जिसमे मजदूरों द्वारा पहला आंदोलन अहमदाबाद मजदुर मिल का आंदोलन था। जिसमें इनकी सहायता महात्मा गाँधी जी ने किया था और इससे मजदूरों के भुकतान राशि की बड़ा दी गई थी। मजदूरों की आंदोलन में बढ़ती भागीदारी को देखकर इनको भी राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा बनाने के उदेश्य से ऐसा विचार इनके दिमाग में आया, मजदूरों को संगठित कर उन्हें भी राष्ट्रिय आंदोलन में सम्मलित करना इस संगठन का उदेश्य था। इसे देश के वरिष्ठ नेता चितरंजन दास के सलाह पर 31 अक्टूबर, 1920 को ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना की गयी थी। उस वर्ष (1920 ) के भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के अध्यक्ष, लाला लाजपत राय को एटक का प्रथम अध्यक्ष तथा दीवान चमलाल जो इसके प्रथम नेता थे , जिन्होंने पूंजीवादी को साम्राज्य से जोड़ने का प्रयास किया। उनके अनुसार ” साम्राज्यवाद एवं सैन्यवाद, पूंजीवाद की जुड़वा संताने होती है।
गाँधी-इर्विन समझौता सविनय अवज्ञा आंदोलन डंडी यात्रा नमक सत्याग्रह
गाँधी – इर्विन समझौता 5 मार्च, 1931
मुख्य उदेश्य :- भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के गया अधिवेशन (1922) में सारसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर एटक की स्थापन का स्वागत किया गया था तथा साथ ही साथ इसकी सहायता के लिये एक समिति का गठन भी किया गया। सी. आर. दास ने सुझाव भी दिया की कांग्रेस द्वारा श्रमिको एवं किसानों को राष्ट्रिय आंदोलन की प्रक्रिय में भागिदार बनाया जाना चाहिए और उनको (श्रमिकों एवं किसानों ) समर्थन करना चाहिए। अगर कांग्रेस ऐसा नहीं करती है तो ये दोनों ही वर्ग राष्ट्रीय आंदोलन की मुख्य धारा से पृथक हो जायेंगे। इन बातो को सभी राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रमुख नेताओं जैसे :- जवाहरलाल नेहरू, सुभाषचंद्र बोस, सी. एफ एंड्रूज, सत्यमूर्ति, जे. एम. सेनगुप्ता, सरोजिनी नायडू, वी. वी. गिरी, इत्यादि नेताओं ने भी ऑल इण्डिया ट्रेड यूनियन कांगेस से निकट सबंध स्थापित करने का प्रयास किया। अपनी स्थापन की प्रारंभिक वर्षो में ‘एटक’ ब्रिटेन श्रमिक दल के सामाजिक एवं लोकतांत्रिक विचारो से काफी प्रभवित था। क्योंकि इस संस्था पर अहिंसा एवं वर्ग सहयोग जैसे गांधीवादी दर्शन के सिद्धांतो का भी गहरा प्रभाव था।
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हरिपुरा एवं त्रिपुरी संकट क्या है?
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