भारत में स्थापत्य कला में मंदिरो के निर्माण की शैली बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रखती है। भारत में प्रमुख रुप से मंदिरों के निर्माण की जो शैली है वह मौर्य काल से प्रारंभ हुई है और गुप्तकाल में स्थापत्य कला अपने चरम पर होती है। वर्तमान की जो मंदिरों का स्वरुप है वह गुप्तकाल की है।
नागर शैली
शैली की मंदिर उत्तर भारत में देखने को मिलते हैं। यह उत्तर भारत में हिमालय से लेकर विध्यांचल पर्वत तक हैं। नागर शैली कि मंदिर का जो गुंबद होता है। वह नीचे चौड़ा होते जाता है और जैसे – जैसे ऊपर होते जाता है, यह गुबंद रेखीय रूप हमें देखने को मिलती है, जिसे शिखर कहा जाता था शिखर के ऊपर एक रिंग बना दिया जाता जिसे आमलक कहा जाता है और आमलक के ऊपर एक कलश रख जाता है और उसी कलश के बगल में एक ध्वज भी रखा जाता था। जो पूर्णतः बहुत सुन्दर दिखती है।
शिखर के निचे भगवान की मूर्ति रखी जाती है उसे गर्भ गृह कहते है। पुरे मंदिर का सबसे प्रमुख जगह गर्भ गृह ही होता है। गर्भ गृह में ज्यादा भीड़ न हो इसलिए उसमें कई मंडप बने होते यही ताकी वहाँ लोग प्रतिक्षा क्र सके। मंदिर के दरवाजे पर गंगा और यमुना की मूर्ति होती थी। इस शैली की मंदिरों में हमें दो तरह के सीढ़ियां भी देखने को मिलती है, शुरुआत की जो सीढ़ी होती थी उसे जगती कहा जाता है चबूतरा के अगली सीढ़ी को पिठ कहा जाता है तथा मंदिर के गर्भ गृह और मंडप के बीच खली जगह नहीं होती है । गर्भ गृह के अंदर ही पद्रक्षीणा पथ (परिक्रमा )होता है। नागर शैली की मंदिर कभी भी अकेली नहीं होती थी। इसे पांच मंदिर के ग्रुप में बनाया जाता। था इसीलिए पंचायतन शैली कहा जाता था। इस मंदिर के चारों और बाउंडरी नहीं रहती थी यह किसी भी प्रकार का तालाब नहीं होता था क्योंकि उत्तर भारत में नदियों की कोई कमी नहीं है। मंदिर में कोई भव्य गेट नहीं होता है। इस शैली की कई विशेषता थी जो उड़ीसा में है उस उड़िया शैली के उसकी एक शाखा मध्य प्रदेश में है जो कंदरिया महादेव खजुराहो का मंदिर है। एक शाखा गुजरात में हैं जिसे शोलंकी शैली कहते है।
विमानन शैली / द्रविड़ शैली – द्रविड़ शैली का विकास चोल और पल्लव काल में हुए थे। ये मंदिर हमें दक्षिण भारत में देखने को मिलती है। दक्षिण भारत में पानी की कमी होती थी जिसके कारण इस शैली में मंदिरों के प्रांगण में तलाब होते थे। यह शैली कष्णा नदी से लेकर पूरी दक्षिण भारत में है। शैली में भव्य मेन गेट होते थे। जिसे हमलोग इनटरेस या गोपुरा कहते थे। मेनगेट के कारण ही वहाँ चारदीवारी बनी होती थी। यह मंदिर भी पंचायतन शैली में ही था। मंदिर बीच में रहती थी इस शैली कि मंदिर सीढ़ीनुमा होती है और सीढ़ीनुमा को ही विमानन शैली में मंडप और गर्भ गृह सटा नहीं रहता है। उसमें अंतराल रहता है क्योंकि यही पर परिक्रमा किया जाता है। गर्भ के बाहर दरवाजे पर यक्ष और यक्षीणी की मूर्ति लगी रहती है।
बेसर शैली – यह शैली नागर और द्रविड़ शैली का मिश्रित रूप है। यह शैली विध्य से कृष्णा नदी तक मिलता है। इसमें खुले प्रदक्षिणा पथ होता है मण्डप बहोत सुसज्जित होता है।
मंदिरों की शैली हमें मुख्यता तीन प्रकार से देखने को मिलती है।
1 . नागर शैली –
सूर्यमंदिर – कोणार्क उड़ीसा
लिंगराज मंदिर -भुवनेश्वर उड़ीसा
जगन्नाथ मंदिर – पूरी उड़ीसा
कंदरिया महादेव मंदिर – खजुराहो (एम्. पी.)
लक्ष्मण मंदिर -सिंगपुर
भीतरगांव – कानपुर
दशावतार मंदिर -झाँसी
2 . विमानन शैली (द्रविड़ शैली )
महाबलीपुरम मंदिर – तंजावुर
शिवमंदिर – गांगेयकोडचोलपुराम
महावलीपुरम रथ मंदिर – महावलीपुरम
3 . बेशर शैली
डोडा वसप्पा -दम्बल
बादामी के मंदिर
प्रमुख शैली उदाहरण
नायक शैली – मीनाक्षी मंदिर (मदुरै )
विजयनगर शैली – विटठ्ल स्वामी मंदिर (विजय नगर ) , लोटस महल (हम्पी )
होयशल शैली –
प्रमुख मंदिर और उसकी शैली
दशावतार मदिंर झाँसी
देवगढ़ उ. प्र. के (लालतपुर ) में स्थित है तथा यह मंदिर गुप्तकालीन है। प्रचीन भारत में गुप्त काल से संबधित गुफा चित्रांकन के केवल दो उदहारण उपलब्ध है। इनमें से एक अजंता गुफाओं गया चित्रांकन है दूसरा उदाहरण बाघ गुफाए है, जिनकी तिथि गुप्तकालीन है। दूसर उदाहरण बाघ की गुफाए है तथा अजंता गुफाओं के चित्र बौद्ध धर्म से सम्बंधित हैं।
कंदरिया महादेव मंदिर
मध्य प्रदेश छतरपुर जिले में स्थित खजुराहो में चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित मंदिर आज भी चंदेल स्थापत्य की उत्कृष्टता का बखाना कर रहे है। ये मंदिर ग्रेनाइट और लाल बलुआ पत्थर से बने हैं। मंदिरों का निर्माण 950 -1050 ईस्वी के बिच कराया गया था। यहां के मंदिरों में कंदरिया महादेव मंदिर सर्वोत्तम सभवतः विद्याधर (11 वी शताब्दी ) ने करवाया था। खजुराहो में 85 मंदिरों के निर्माण उल्लेख मिलता है। ये मंदिर वैष्णव, शैव, शक्त एवं जैन धर्म से संबधित है। यहां का मांतगेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मंदिर सभवतः राजा धंग के काल निर्मित हुआ। इन मंदिरो की निर्माण शैली नागर है। किसी – किसी मंदिर में पंचायतन शैली अपनाई गई है। जैन मंदिरों में ‘ पाश्वर्नाथ मंदिर ‘ प्रसिद्ध ‘ है। यहां के अन्य मंदिर है – चौसठ योगिनी, ब्रम्हा, दूल्हादेव मंदिर, लक्ष्मण, विश्वनाथ मंदिर, जिननाथ मंदिर आदि।
खजुराहो का मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल सूची में शामिल म. प्र. ऐतिहासक स्थलों में खजुराहो, भीमबेटका की गुफाएँ एवं साँची स्तूप शामिल है।
एलिफेंटा
एलिफेंटा के प्रसिद्ध गुफा मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूट शासकों द्वारा कराया गया था। यहां कुल सात गुफाएं मिली है। जिसमें पांच गुफा मंदिर प्राप्त हुए है, जिनमें हिन्दू धर्म (मुख्यता: शिव ) सम्बंधित मुर्तिया हैं। साथ ही यहां दो बौद्ध गुफाएं भी है। इन गुफाओं का निर्माण काल 5वी से 6वी शती ई. माना जाता है। यहां से प्रसिद्ध त्रिमूर्ति शिव की प्रतिमा प्राप्त हुई है।
एलोरा
एलोरा महाराष्ट्र औरंगाबाद जिले में स्थित है। यह शैलकृत गुफा मंदिरों के लिए जग प्रसिद्ध है। यहां कुल 34 शैलकृत गुफाएं है। ये गुफाएं विभिन्न कालों में बानी है और इनमें गुफा सं. 1 से 12 बौद्धों, 13 से 29 हिन्दुओं और 30 से 34 जैनियों से संबंधित है, जो थोड़े -थोड़े अंतराल पर बानी हैं। एलोरा कैलाश मंदिर शैलकृत स्थापत्य का उदाहरण है।
द्रविड़ शैली के विश्व प्रसिद्ध मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ने करवाया था ।
पाण्डव लेनी
पश्चिमी भारत में प्राचीनतम शैलकृत गुफाएं नासिक, एलोरा एवं अजंता में हैं। उन्हें पाण्डव लेनी कहा जाता है।
पुरी स्थित कोणार्क का विशाल सूर्यदेव का मंदिर नरसिंह देववर्मन प्रथम चोड़गंग बनवाया था। यह मंदिर 13शताब्दी का है तथा यह अपनी विशिष्ट शैली के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का आधार विशाल चबूतरा है। इसके पत्थर के तराशे हुए बारह पहिए लगाए गए है और सूर्य के रथ का पूरा आभास देने के लिए चबूतरे के सामने जो सीढिय हैं, उनमें सात अश्वो की स्वतंत्र मुर्तिया लगी है, मनो की ये सातों अश्व रथ को खिंच रहे हों। इसे यूनेस्को द्वारा वर्ष 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया।
लिंगराज मंदिर
लिंगराज मंदिर उड़ीसा भुनेश्वर में स्थित है। इस मंदिर की शैली नागर है। यह नागर शैली का सर्वोत्तम मंदिर है। लिंगराज मंदिर का सबसे आकर्षक भाग इसका शिखर है, जिसकी ऊंचाई 180 फिट है।
जगन्नात मंदिर उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में स्थित है। यह मंदिर नागर शैली में बना है। मोढेरा सूर्य मंदिर गुजरात में स्थित है। इसका निर्माण 11 वी शताब्दी के पूर्वार्द्ध में सोलंकी वंश राजा भीमदेव प्रथम द्वारा कराया गया था।
अंकोरवाट मंदिर
सूर्यवर्मन II द्वारा 12 वी शताब्दी के प्रारंभ में अपनी राजधानी यशोधरपुर (वर्तमान -अंगकोर ) में कराया गया था। विष्णु को समर्पित द्रविड़ शैली का यह मंदिर विश्व का सबसे बड़ा हिन्दू मंदिर समूह है। बोरोबुदुर प्रख्यात स्तूप इंडोनेशिया के जावा द्वीप पर स्थित है। यह यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त एक ‘ विश्व विरासत स्थल ‘( World Heritage Site ) है।
महाबलीपुरम में रथ मंदिरों
मामल्ल शैली (640 – 674) का विकास नरसिंह वर्मन प्रथम महामल्ल काल में हुआ। इसके अंतर्गत दो प्रकार के स्मारक बने – मंडप तथा एकाश्मक मंदिर, जिन्हें ‘रथ ‘ कहा गया यही। पल्लव कला की राजसिंह शैली, जिसका प्रारंभ नरसिंह वर्मन द्वितीय ‘राजसिंह ‘ था, के तीन मंदिर महाबलीपुरम प्राप्त होते है – शोर मंदिर (तटीय शिव मंदिर ), ईस्वर मंदिर तथा मुकुंद मंदिर. शोर मंदिर शैली का प्रथम उदहारण है।
महाबलीपुरम रथ मंदिरों का निर्माण पल्ल्व शासकों द्वारा करवाया गया था। ये मंदिर एकाश्म पत्थर निर्मित है। पल्ल्वकलिन मामल्ल शैली में बने रथों या एकाश्मक मंदिरों में धर्मराज रथ सबसे बड़ा एवं द्रोपदी रथ सबसे छोटा है। इसमें किसी प्रकार का अलंकरण नहीं मिलता तथा यह सिंह एवं हाथी जैसे पशुओं के आधार पर टिका हुआ है।
सोनगिरि दतिया
(मध्यप्रदेश )से 15 किमी दुरी पर स्थित है। यह दिगंबर जैनियों पवित्र स्थान है। सोनगिरि चारों और सफ़ेद जैन मंदिर स्थापित है। प्रकार इनकी कुल संख्या 103 है। पहाड़ी पर स्थित 57 वा मंदिर मुख्य मंदिर है, जो भगवन चन्द्रप्रभु से सम्बंधित है।
विरुपाक्ष मंदिर
कर्नाटक राज्य के हम्पी जिले में स्थित यही। मंदिर भगवन शिव को समर्पित है , जो यहां विरुपाक्ष के नाम से जाने जाते है।
बदरी पंचायतन
पंचायतन शब्द मंदिर रचना -शैली को निद्रिष्ट करता है। बद्रीनाथ कपूर द्वारा रचित बृहत प्रामाणिक हिंदी कोश ‘ (मूल संपादक – आचार्य रामचंद्र वर्मा ) के अनुसार, पंचायतन एक पुल्लिंग शब्द है, जो किसी देवता और उसके साथ के चार देवताओं की मूर्तियों के समूह के लिए प्रयुक्त होता है, जैसे शिव -पंचयतन। बदरीनाथ मंदिर में पांच मुर्तिया हैं, जो बदरी पंचायतन के नाम से प्रसिद्ध है। राजस्थान के उदयपुर में स्थित जगदीश मंदिर शिल्पकला की दृष्टि से अनोखा है। यह मंदिर पंचायतन शैली का है। चार लघु मंदिरों से परिवृत होने कारण इसे ‘ पंचायतन ‘ कहा गया है।
नैमिषारण्य तीर्थ
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में स्थित है। यहां महशिरी दधीचि ने देवताओं को अपनी अस्थियां दान दी थी , जिससे निर्मित व्रज द्वारा देवराज इंद्र ने दैत्यों का वध किया था।
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देसाई – लियाकत समझौता (Desai-Liaquat Pact) by learnindia24hours
वुड डिस्पैच या वुड घोषणा – पत्र/अध्यक्ष चार्ल्स वुड 1854 ईo by learnindia24hours