Q. फिलस्तीन की समस्या क्या हैं?
ANS:- प्रथम विश्वयुद्ध के बाद पैलेस्टाइन की समस्या ने विश्व का ध्यान आकर्षित किया। इस समस्या के उत्पन्न होने का कारण है और वह है अरबों तथा यहूदियों की फिलिस्तीन पर अधिकार करने की पारस्परिक होड और इसके घरेलू संघर्ष इन दोनों के अलावा इंग्लैंड ने भी इस समस्या में हस्तक्षेप किया और इससे संघर्ष का कुछ और ही रूप हो गया।
इस तरह अरबों तथा यहूदियों दोनों के संघर्ष में ब्रिटेन भी शामिल हुआ जिसके चलते त्रिगुणात्मक संघर्ष जन्म हुआ। तीनों का यह संघर्ष साथ प्रारंभ से चलता रहा। अरबों को अरबोंजाती प्रधान देशो ने मदद दिया , यहूदियों को अंतरराष्ट्रीय यहूदी संध ने आर्थिक मदद दी और ब्रिटेन तो खुद सबल ही था।
यहूदी विदेशी थे और विश्व के अनेक देशो से आकर फिलिस्तीन में समय – समय पर बसने लगे थे। अमेरिका तथा जर्मनी से बहुत बड़ी संख्या में ये पेलेस्टाइन आये। पर यहूदियों के इस आगमन का विरोध उहा के पुराने निवासी अरब – जातियों ने करना प्रारम्भ किया, क्योंकि इन्हे यह डर पैदा हो गया कि ये यहूदी फिलस्तीन में अपना हक मांगने लगेंगे और इस पर अधिकार कर लेंगे। इस रोक – थाम के फलस्वरूप दोनों में संघर्ष शुरू हो गया जो पैलेस्टाइन के लिए एक समस्या बन गयी। इसे ही फिलस्तीन :- समस्या के नाम से पुकारा यह बात लोगो को परेशान करने लगी और राष्ट्रीयसंघ तथा ब्रिटेन के लिए भी यह एक भयंकर समस्या बन गयी।
फिलिस्तीन की यह समस्या तब और भी पेचीदी हो गई थी जब दोनों जातियाँ अपने दावे को दलील के साथ पेश करने लगी। दोनों जातियाँ इस पर बराबर दावा करती थी और अपने दवा को सही साबित करने के लिए प्रमाण और दलील प्रस्तुत करती थी उनके पृथक – पृथक दावे को देखना आवश्यक था।
सर्वप्रथम फिलस्तीन पर अरब – जाती के लोग अपने अधिकार कि बात कर रहे थे उनका बहोत दिनों से देश रहा है और यहां वे बसते रहे है। उनका यह दावा मानवीय धरातल पर आधारित था जो अकाट्रय था। उनका यह भी कहना था कि अरबों ने फिलस्तीन को सातवीं सदी से ही अपने अधिकार में किया है। अंतः यह बात तब प्रनीत होती थी जब फिलस्तीन सभ्यता और संस्कृति पर ध्यान दिया जाता था। अरबों ने इस देश को अपनी सभ्यता के रंग में रंग लिया था और यहाँ के रीति – रिवाजों पर उनके प्रभाव परिलक्षित होते थे अंतः अरबों और फिलस्तीन में चोली – दामन सा नाता था। यहाँ के वृक्ष, वावलियाँ, सारी प्रकृति अरबी सभ्यता की कहानी कह रही थी। इसलिए अरबगण यह कहा करते थे कि उन्हें किसी भी तरह फिलस्तीन से निकाला नहीं जा क्योंकि वे यहाँ सातवीं सदी से ही रह रहे थे और अरबी सभ्यता के रंग मे रंग चुके थे।
फिलस्तीन पर उनके राजनितिक दावे भी थे। महायुध्द में तुर्की के प्रवेश करने पर जब ब्रिटेन ने तुर्की के सुलतान के विरुध्द अरबों का सहयोग प्राप्त करने का प्रयत्न आरम्भ किया और एक शक्तिशाली अरब राष्ट्र के निर्माण का उन्हें आश्वासन दिया तो अरबों ने स्वभावकी रूप से यह समझा अंदर पैलेस्टाइन भी रहेगा। अपने इस राजनितिक दावे को अरब जाती के लोग कभी भी छोड़ने वाले नहीं हे। यही कारण हुआ कि जब अधिक तायदाद में यहूदी फिलस्तीन में आकर बसने लगे तो यहूदियों द्वारा अपने शिकारों के हनन होने की आशंका से अरब जाती के लोग सिहर उठे और यहूदियों के आगमन का विरोध करने लगे। इनके दावे यथार्थ थे जिन्हें काटा नहीं जा सकता था। पर यहूदियों के दावे पृथक स्वरुप के थे। ये दावे कई और थोथी दलील से भरे थे। इस समय तक भी यहूदियों का ऐसा कोई देश नहीं था जिसे वे अपना कह सकते। दुनिया से ये आधारहीन और असितत्वहीन थे जो घुमक्क्डो की तरह यत्र – तत्र भ्रमण किया करते थे। विभिन्न देशो में इनका आवास अवश्य था, न देशो की नागरिकता से इनका कोई सम्बन्ध था। इनकी समाजिक तथा राजनितिक हालत एकदम बुरी थी अमेरिका एवं यूरोप के बिभिन्न देशों में इनकी हालत अत्यंत खराब थी। इनकी जाती, धर्म, नस्ल, रीतिरिवाज आदि सभी और जातियों से पृथक थे और इसीलिए किसी भी देश की राष्ट्रीयता, सभ्यता या जाती के साथ इनका मेल नहीं खता था जातीय इन्हे नीची निगाहो से देखते थे। इस ज़माने तक विश्व के अधिकांश देश राष्ट्रीयता पाठ पढ़ चुके थे और यही कारण था कि इन देशो में रहने वाले लोग यहूदियों से घृणा करते थे। यहूदी अपनी इन हीन तथा अपमानजनक दशा से पीड़ित तथा दुखी थी। पर इनकी एक प्रतिकिरिया भी उनके मध्य हुए। उन्नीसवीं सदी के आखिरी वर्ष में अमेरिका तथा यूरोप यहूदियों के मस्तिष्क में गौरव तथा इज्जत हासिल करने की भावना जाएगी और वे अपनी अपमानजनक स्तिथि को दूर करने लगे। इनके बिच एक और भी नहीं भवन आयी और वह थी यहूदियों के लिए किसी एक नए देश की खोज करना जिसे स्वतंत्रपूर्वक निवास कर सके। इन धनि यहूदियों ने यह अनुभव किया की जब तक यहूदियों के लिए खास देश नहीं मिलेगा जहाँ वे बसकर अपनी सरकार कायम कर सके तब तक वे अपनी अपमानजनक स्तिथि से बाहर नहीं निकल सकते है और न लोग उन्हें इज्जत तथा गौरव की निगाह से ही देख सकते है। अतः नए देश की खोज के लिए उनके बिच एक आंदोलन चल पड़ा। बहुत से विचारक तथा विद्वान् यहूदियों की नजर में फिलस्तीन ही एक ऐसा देश था जहाँ यहूदी बस सकते थे और वहाँ उनकी दाल गल सकी थी। फिलस्तीन की और उनका ध्यान जाना स्वाभविक भी था। अरबो की तरह वे भी यह दलील देते थे कि फिलस्तीन में उनका निवास बहोत दिनों से होता रहा है। और वे भी वहाँ के प्राचीन निवासी है। अंतः वे यह कहा करते थे की विश्व के विभिन्न देशोंसे यहूदी इस प्राचीन देश में लौटेंगे।
इस तरह फिलस्तीन पर इन दोनों जातियों के अपने – अपने दावे थे। इन दोनों मे से छोड़ने के लिए कोई भी तैयार नहीं था जिसके चलते समस्या का रूप गंभीर होता गया। और यहूदियों ने फिलस्तीन को नेशलन होम बनने के नविन आंदोलन का सूत्रपात किया।
चाहे धर्म की बात हो या फिलस्तीन में अपने रहने का अधिकार जिसमे दोनों पक्षों ने अपनी – अपनी बाते और फिलस्तीन से जुड़े सबुतों को पेश किया। जिसके कारण वर्तमान में भी यह दोनों कॉम फिलस्तीन को लेकर विवादास्पद से जुझ रहे है। और इस स्थान पे दोनों ही जातियों का कॉम निवास है।