इन बिंदुओं पर चर्चा होगी :-
· रैयतवाड़ी व्यवस्था · रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है ? · रैयतवाड़ी व्यवस्था कब लागू हुई ? · रैयतवाड़ी व्यवस्था किसके द्वारा · रैयतवाड़ी व्यवस्था कहा – · रैयतवाड़ी · भू – राजस्व का निर्धारण कैसे · रैयतवाड़ी व्यवस्था के |
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्यों लाया गया ?
अंग्रेजों ने अपने बढ़ते हुए खर्चों पूर्ति और आर्थिक मात्रा धन कमाने
के उदेश्य से भारत के पारंपरिक भू – व्यवस्था में हस्तक्षेप
करना प्रारंभ किया।आरंभ में क्लाइव और उसके उत्तराधिकारियों ने व्यापक
बदलाव करते हुए बिचौलियों की माध्यम से भू – राजस्व की वसूली की।
इसके बाद विभिन्न प्रशासकों ने विभिन्न क्षेत्रों में की प्रकार की
भू – राजस्व व्यवस्थाएँ चलाई। जैसे – इजारेदारी प्रथा , स्थायी बंदोबस्त
, रैयतवाड़ी और महलवाड़ी व्यवस्था।
परन्तु बाद में रैयतवाड़ी व्यवस्था लाने का कारण :-
* बिचौलियों (जमींदारों ) वर्ग समाप्त करना
* सरकार स्थायी बंदोबस्त के दोषो को चाहती थी
* क्योकि स्थायी बंदोबस्ती में निश्चित राशि से अधिक वसूली की गयी
सारी रकम जमींदारों द्वारा हड़प लिया जाता था।
* इसके आलावा दक्षिण और दक्षिण पश्चिमी भारत में इतने बड़े
जमींदार नहीं है की इनसे स्थायी बंदोबस्त किया जा सके।
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है ?
इसमें रैयतों/किसानों को भूमि का मालिकाना हक़ प्रदान किया
गया। अब किसान स्वयं कंपनी को भू – राजस्व देने के लिए उत्तरदायी
थे। इस व्यवस्था में भू- राजस्व राजस्व का निर्धारण उपज के आधार
पर नहीं बल्कि भूमि की क्षेत्रफल के आधार पर किया गया। भूमि कर न देने की स्तिथि
में भूमिदार को , भूस्वामित्व के अधिकार से वंचित होना पड़ता था।
रैयतवाड़ी व्यवस्था कब लागू हुई ?
1802 ईस्वी में
किसके द्वारा लया गया ?
उस समय मद्रास के तत्कालीन गवर्नर टॉमस मुनरो ने यह व्यवस्था
लाई थी।
रैयतवाड़ी व्यवस्था कहा – कहा लागु थी ?
यह व्यवस्था मद्रास, बंबई ( वर्तमान में मुम्बई ) एवं
असम के कुछ भागों में लागू की गई थी।
रैयतवाड़ी
व्यवस्था कितने प्रतिशत भूमि पर लागू थी ?
51% भूमि पर लागू थी।
भू – राजस्व का निर्धारण कैसे किया जाता था?
भू – राजस्व निर्धारण वास्तविक उपज की मात्रा पर न करके भूमि के
क्षेत्रफल के आधार पर
किया जाता था।
रैयतवाड़ी
व्यवस्था के दोष ?
* ग्रामीण समाज की सामूहिक स्वामित्व की
अवधरणा समाप्त।
* जमींदारों का स्थान स्वयं ब्रिटिश सरकार ने ले लिया।
* सरकार ने अधिकधिक राजस्व वसूलने के लिये मनमानी
ढंग से भू – राजस्व का निर्धारण किया।
* लगान की दर अधिक हो गया।
* किसान का भूमि पर तब तक ही स्वामित्व रहता था, जब तक की यह
लगान की राशि सरकार को निश्चित समय भीतर
अदा करता रहे।
Click below link-
https://www.learnindia24hours.com/