Monday, November 18, 2024
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वैवेल योजना तथा शिमला सम्मलेन 1945

वैवेल योजना 

 

अक्टूबर, 1943 में लार्ड लिनलिथगों की जगह लार्ड वैवेल वायसराय बनकर आये।

 

लार्ड वैवेल 21 मार्च, 1945 को द्वितीय विश्वयुद्ध में भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के निमित भारतीय समस्याओं के समाधान के लिए इंग्लैंड गये।

 

14 जून,1945 को लार्ड वैवेल भारत लौटे तथा एक योजना प्रस्तुत की, जिसे वैवेल योजना के नाम से जाना जाता है।

 

वैवेल के भारत आगमन के समय भारतीय राजनितिक की स्थिति अत्यधिक तनावपूर्ण थी, जिसे सामान्य बनाने के लिए सर्वप्रथम उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन के समय गिरफ्तार कांग्रेस नेताओं को रिहा कर दिया, जिससे  स्थिति थोड़ी समान्य हो जाये ।

 

  • वैवेल योजना के प्रमुख प्रवधान निम्नप्रकार के थे :—

 

i )  वायसराय की कारकारिणी का पुर्नगठन किया जाएगा , जिसमें वायसराय तथा प्रधान सेनापति को छोड़कर शेष सभी भारतीयों होंगे।

 

 

ii ) सीमांत और कबीलाई क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी वैदेशिक मामले भारतीयों के हाथ में रहेंगे।

 

 

iii) कार्यकारी परिषद में सवर्ण हिन्दुओं तथा मुस्लिमों को बराबर प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।

 

 

iv) कारकारी परिषद एक अस्थाई सरकार की भाँति कार्य करेगी तथा वायसराय अपनी वीटो शक्तिका प्रयोग अकारण नहीं करेगा।

 

v) भारत मंत्री का भारतीय शासन पर नियंत्रण रहेगा, परन्तु वह भारत केहित में ही कार्य करेंगे कार्य।

 

vi) युद्ध की समाप्तिपर भारतीय स्वंय अपना सविधान बनायेंगे।

 

vii) इन प्रावधानों पर विचार करने के लिए शिमला में सम्मेलन बुलाया जायेगा।

 

शिमला सम्मलेन 1945 

 

लार्ड वैवेल ने इस प्रस्तावों पर विचार करने हेतु 25 जून,1945 को शिमला में एक सम्मेलन बुलाया. जिसमे 21 नेताओं  ने भाग लिया

 

प्रमुख नेता मुहम्मद अली जिन्न , अबुल कलाम आजाद, जवाहर लाल नेहरू, लियाकत खां, भुलाईभाई देसाई, आदि थे।

 

लार्ड वैवेल ने 14 सदस्यीय कार्यकारी परिषद् की नियुक्ति की संस्तुति की, जिनमें 5 कांग्रेस के, 5 मुस्लिम लीग के तथा 4 अन्य सदस्य शामिल थे।

 

कांग्रेस ने एक मुस्लिम सदस्य के रूप में अबुल कलाम आजाद को चुना, जिसका मुहम्मद अली जिन्ना ने विरोध किया, क्योंकि उनके अनुसार मुस्लिम सदस्य चुनने का अधिकार केवल लीग को ही था।

 

इस प्रकार जिन्ना के इस अनुचित व्यवहार से  योजना असफल हो गयी, जिसके कारण अबुल कलाम आजाद ने यह भी कहा की  शिमला सम्मेलन की विफलता के  भारत राजनीतिक इतिहास में एक जल विभाजन सूचक (water shed )  है।

 

 

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