थियोसोफिकल सोसाइटी उदारवादी विचारधारा से प्रेरित एक अंतराष्ट्रीय संस्था थी जिसकी स्थापना सन् 1875 में कर्नल अल्कॉट तथा मैडम ब्लैवटास्की ने अमेरिका में की थी। श्रीमती एनी बेसेन्ट अंग्रेज महिला होते हुए भी भारतीय सभ्यता से अत्यधिक प्रेम रखती थी। सन् 1893 में वह भी थियोसोफिकल सोसाइटी की सदस्य बनीं। उन्होंने भारत के सामाजिक, धार्मिक, एवं शैक्षिक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधार किए। 1907 में श्री अल्कॉट की मृत्यु होने पर श्रीमती बेसेन्ट को थियोसोपिकाल सोसाइटी का अध्यक्ष मनोनीत किया गया। सन् 1916 में उन्होंने ‘होम रूल लीग ‘ की स्थापना की। एक प्रभावशाली प्रचारक एवं लेखिका थी। अपने लेखन एवं प्रचार के माध्यम से उन्होंने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सुधार किए। सामाजिक सुधारों एवं नारी – वर्ग उत्थान में उनका उल्लेखनीय योगदान रहा।
बाल विवाह का विरोध – एनी बेसेन्ट बाल – विवाह की कुप्रथा को समाप्त कर देना चाहती थी। यह कुप्रथा भारत में विकराल रूप में फैली हुई थी। यह एक अनमेल विवाह होता था जिससे समाजिक जीवन तो दूषित होना ही था, साथ ही स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता था। इस प्रथा के तहत कई बार अर्द्ध – वृद्ध पुरुष का विवाह एक बालिका के साथ कर दिया जाता था। श्रीमती बेसेन्ट के अनुसार शिक्षा के प्रसार द्वारा इस बुराई को दूर किया जा सकता है। उन्होंने सरकार से आग्रह कि विवाह लिए न्यूनतम आयु निर्धारित की जाए तथा उल्लंघनकर्ताओं को दण्डित किया जाए।
अस्पृश्ता का विरोध – बेसेन्ट ने जाति प्रथा एवं अस्पृश्यता का विरोध करते हुए कहा की यद्यपि भारतीय समाज से जाती – प्रथा पूर्णतया उनमूलन तो संभव नहीं है किन्तु जाती – प्रथा की कठोरता को अवश्य कम किया जाना चाहिए। उन्होंने जाती – प्रथा में व्याप्त बुराइयों यथा भेद – भाव, खान – पान की कठोरता एवं अस्पृश्यता की कटु आलोचना की। श्रीमती बेसेन्ट पूर्णतया समाप्त कर देने के पक्ष में थी। इस हेतु उन्होंने ‘ आछूतोद्धार कार्यक्रम ‘ भी चलाया। इस आधार पर अन्तजारतीय विवाह का भी समर्थन किया।
बहु – विवाह का विरोध – श्रीमती बेसेन्ट बहु – विवाह की प्रथा का भी विरोध तथा इसकी समाप्ति हेतु महत्वपूर्ण प्रयास किए। वे बहु – विवाह की प्रथा को नारियों के लिए अन्यायपूर्ण मानती थी। साथ ही पर्दा – प्रथा को भी उन्होंने नारी – विकास मार्ग में बाधक माना। उनकी मान्यता थी की स्त्रियों से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान हेतु शिक्षा परमावश्यक है किन्तु पर्दा- प्रथा शिक्षा- प्राप्ति एवं अन्य विकास के अवसरों में बाधक है।
विधवा विवाह का समर्थन नहीं – श्रीमती बेसेन्ट ने विधवा विवाह का भी बहुत अधिक समर्थन नहीं किया। उनकी मान्यता थी कि कम आयु में तो विधवा हो जाने पर पुनर्विवाह औचित्यपूर्ण है किन्तु आयु अधिक होने पर विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन उन्होंने नहीं किया। अधिक उम्र में विधवाओं के पुनर्विवाह को उन्होंने अपराध माना तथा इसे हिन्दू – समाज की संयुक्त – परिवार प्रथा के भी विरुद्ध बताया।
स्त्री शिक्षा का समर्थन – श्रीमती बेसेन्ट चाहती थीं कि नारी का समाज के विकास में पूर्ण सहयोग होना चाहिए। यह नारी – वर्ग के स्वयं के विकास के उपरान्त ही सम्भव था और इसके लिये शिक्षा परमावश्यक थी। उनकी मान्यता थी की स्त्रियों शिक्षा प्राचीन भारतीय आदर्शों अनुकूल दी जाती चाहिए। शिक्षा प्रसार केवल नारियों का वरन ् सम्पूर्ण समाज का उत्थान होगा। श्रीमती बेसेन्ट का कहना शिक्षा मातृ – भाषा एवं सरल – प्रक्रिया के द्वारा दी जानी चाहिए। शिक्षा के सामाजिक कुरीतियों को भी दूर किया जा सकता था।
उपरोक्त विवेचना से स्पष्ट हो जाता है की एक महिला होने के नाते श्रीमती बेसेन्ट को भारतीय महिलाओं से पूर्ण सहानुभूति थी और इसलिए उन्होंने भारतीय नारी की समस्याओं को दूर करने के साथ – साथ विकास का भी मार्ग प्रशस्त किया।
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