संथाल विद्रोह एक ऐतिहासिक घटना थी जो भारत में 1855-1856 के बीच विशेष रूप से झारखंड क्षेत्र में हुई थी। यह विद्रोह संथाल समुदाय के सदस्यों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति की बेहतरी के लिए था, जिसमें उन्हें उनके भूमि-संप्रदायिक अधिकारों की रक्षा करने की आवश्यकता महसूस हो रही थी।
कुछ मुख्य घटनाएँ जो संथाल विद्रोह में घटीं:
- भूमि कब्जा – इस विद्रोह की मुख्य कारणों में से एक थी ब्रिटिश सरकार की भूमि कब्जा पॉलिसी। उन्होंने संथालों की जड़ी-बूटी और खेती की भूमि पर अत्यधिक कर दी, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ा।
- अत्याचार और उत्पीड़न – संथाल समुदाय के लोगों को अंग्रेजों द्वारा उत्पीड़ित किया जाता था, उनकी आरामदायक जीवनशैली को दुर्बल करने के लिए कई प्रकार के नियम और कानून बनाए गए थे।
- विद्रोह और संघर्ष – 1855 में संथाल वीरों ने अपने नेतृत्व में एक बड़ा विद्रोह आरंभ किया। उन्होंने ब्रिटिश स्थानीय अधिकारियों और सैन्य के खिलाफ संघर्ष किया।
- संघर्ष और पराजय – हालांकि संथाल वीरों ने आराम से आगे बढ़ते हुए कई स्थलों पर अच्छे प्रदर्शन किए, लेकिन ब्रिटिश सरकार की मजबूत ताकतों के सामने उनकी हालात दुर्बल थीं। उन्हें संघर्ष में हार का सामना करना पड़ा और उन्होंने अपने विद्रोह को समाप्त कर दिया।
संथाल विद्रोह ने समाज में सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में प्रेरित किया। यह विद्रोह भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोकल प्रतिरोध की प्रेरणा स्त्रोत बनी।
संथाल विद्रोह जो की झारखण्ड में हुआ था इस विद्रोह में झारखण्ड के लोग शामिल थे जिसमे प्रमुख तोर पे इस लोगो का नाम आता है ।
सिध्दू का जन्म 1815 ईस्वी में हुआ था ।
कान्हु का जन्म 1820 ईस्वी में हुआ था ।
चाँद का जन्म 1820 ईस्वी में हुआ था ।
भैरव का जन्म 1835 ईस्वी में हुआ था ।
यह चारो ही भाई थे इनके पिता का नाम चुननी मांझी था ।
सिध्दू कान्हू ने 1855-56 ईस्वी में ब्रिटिश सत्ता के साहूकारों व्यपारियो यह जमींदारियों के खिलाफ संथाल विद्रोह ( हूल आंदोलन) का नेतृत्व किया था ।
संथाल विद्रोह का आरम्भ भगनाडीह से हुआ जिसमे सिध्दू कान्हू आपने दैवीय शक्ति का हवाला देते हुए सभी मँझियो को साल की टहनी भेजकर संथाल हूल के लिए तैयार रहने को कहते थे ।
संथाल विद्रोह में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले चाँद एवं भैरव जो के सिध्दू कान्हू के भाई थे उन्होंने व् मुख्या भूमिका निभाई थी ।
3० जून 1855 ईस्वी को भगनाडीह की सभा में सिध्दू को राजा कान्हू को मंत्री चाँद को प्रशासक तथा भैरव को सेनापति चुना गया । भगनाडीह में लगभग 10,000 संथाल एकत्र हुए थे ।
संथाल विद्रोह का नारा था – अपना देश और अपना राज और इसमें मुख्य नारा करो या मरो अंग्रेजी हमारी माटी छोड़ो ।
विद्रोह में अँग्रेजी सरकार के खिलाफ विद्रोह छेड़ा गया था जिससे अंग्रेजी सरकार के तरह से 7 जुलाई 1855 को प्रारंभ में इस विद्रोह को दबाने हेतु जनरल लॉयड के नेतृत्व में फौज की एक टुकड़ी भेजी गई ।
सरकारी लोगो के इस बरताओ से लोगो में आक्रोश बड़ा एवं जिसके कारण विद्रोह और बढ़ने लगा और अलग – अलग जिलों में फैलने लगा ।
हजारीबाग में संथाल आंदोलन का नेतृत्व लुगाई मांझी और अर्जुन मांझी ने संभाल रखी थी जबकि बीरभूम में इसका नेतृत्व गोरा मांझी कार रहे थे।
संथाल विद्रोह के दौरान महेश लाल एवं प्रताप नारायण नमक दरोगा की हत्या कर दी गई थी ।
बहाईत के लड़ाई में चाँद भैरव भी शाहिद हो गए थे जिसके पश्चात सिध्दू – कान्हू को पकड़कर बरहाईत में फाँसी दी गई
जिसके पश्चात प्रतेक वर्ष हूल दिवश 30 जून को मनाया जाता है ।
संथाल विद्रोह (हूल आंदोलन) के प्रमुख नेता :- सिध्दू मुर्मू , कान्हू मुर्मू ,चाँद मुर्मू, भैरो मुर्मू, फूलो मुर्मूर,झालो मुर्मू जो सिध्दू कान्हू की बहन थे , लुगाई मांझी, अर्जुन मांझी,होरा मांझी ।
संथाल विद्रोह को दबाने के लिए कप्तान एलेग्जेंडर ले एवं थॉमसन एवं ले रीड ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी ।
इस विद्रोह को संथालपरगना की प्रथम जनक्रांति मन जाता है ।
ज़रूर, जारी रखते हैं।
संथाल विद्रोह एक महत्वपूर्ण घटना थी जो भारतीय इतिहास में ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लोकल प्रतिरोध की प्रेरणा स्त्रोत बनी। यह विद्रोह संथाल समुदाय के सदस्यों के आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की प्रतिष्ठा और सुरक्षा के लिए था। उनकी भूमि पर अत्याचार और उत्पीड़न के खिलाफ उन्होंने संघर्ष किया।
विद्रोह के परिणामस्वरूप, संथाल वीरों ने कुछ स्थलों पर सफलता हासिल की, लेकिन ब्रिटिश सरकार की मजबूत ताकतों के सामने उनकी हालात दुर्बल थीं और उन्हें संघर्ष में हार का सामना करना पड़ा।
संथाल विद्रोह ने समाज में सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा दिया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में प्रेरित किया। यह घटना ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ लोकल और राष्ट्रीय प्रतिरोध की आदि की एक प्रेरणास्त्रोत बनी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पथ को प्रशस्त किया।
काल मार्स ने भी इस विद्रोह को भारत का प्रथम जान विद्रोह माना है इस विद्रोह के दमन के बाद संथाल क्षेत्र को एक पृथक नॉन रेगुलेशन जिला बनाया गया जिसे संथालपरगना का नाम दिया गया है।