संयुक्त राष्ट्र संघ की उद्भव एवं उदेश्यो का वर्णन। (Origin and Objects of the U.N.O)
संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना ऐसे समय में हुई जब द्वितीय महायुद्ध अपने भीषणतम रूप में सरे विश्व को अंकित कर रहा था। जर्मनी, इटली, और जापान के घुरी – राष्ट्रों की सम्मिलित शक्ति लगी हुई थी। यह युद्ध केवल कुछ राष्ट्रों की प्रतिष्ठा के लिए ही नहीं लड़ा जा रहा था। धुरी – राष्ट्रों की बढ़ी हुई सैनिक शक्ति वास्तव में प्रजातंत्र और मानव अधिकारों के लिए संकट का संकेत कर रही थी। इस युद्ध में यदि धुरी – राष्ट्रों की विजय होती तो निश्चय ही समस्त विश्व पर उसका व्यापक प्रभाव पड़ता और संभव है स्वाधीनता और प्रजातंत्र के ऊँचे आदर्शो को भारी आघात पहुंचता।
संयुक्त राज्य अमेरिका के सेनफ्रांसिस्को नगर में 1 जनवरी, 1942 ब्रिटेन, सोवियत संघ, चीन तथा अन्य 26 मित्र– राष्ट्रों के प्रतिनिधियों का एक सम्मलेन हुआ जिसमें यह निर्णय हुआ की ये राष्ट्र सम्मिलित होकर धुरी – राष्ट्रों के प्रतिनिधियों का एक सम्मेलन हुआ जिसमे यह निर्णय हुआ की ये राष्ट्र ‘ अथवा ‘ यूनाइटेड नेशन्स ‘ का नाम अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट द्वारा प्रदान किया गया। 1 जून, 1945 को आगे चलकर सेनफ्रांसिस्को में संयुक्त राष्ट्र ‘ सम्मेलन हुआ तो इसके सदस्यों की संख्या 50 हो चुकी थी। इस सम्मेलन में ‘संयुक्त राष्ट्र ‘ के घोषणा – पत्र ( प्रस्तावना और अनुच्छेद 111 के साथ ) को अंतिम रूप दिया और संयुक्त राष्ट्र की औपचारिक स्थापना अस्थायी मुख्यालय लेक सैक्सेस ( अमेरिका ) में हुई। अधिकार – पत्र पर 50 राष्ट्रों के प्रतिनिधियों द्वारा 26 जून, 1945 को हस्तक्षर किये गये, पोलैण्ड का प्रतिनिधित्व अधिवेशन में नहीं हुआ था। उसने बाद हस्ताक्षर किये और वह 51 सदस्य राज्यों में से एक मूल दास्य बन गया। अधिकार रूप में संयुक्त राष्ट्र संघ 24 अक्टूबर, 1945 को अस्तित्व में आ गया था जबकि अधिकार – पत्र की पुष्टि चीन, फ्रांस, सोवियत संघ, इंग्लैण्ड तथा अमेरिका तथा बहुसंख्यी अन्य हस्ताक्षरकर्ताओं द्वारा की गयी थी; 24 अक्टूबर प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस के रूप में मनाया जाता है। 1946 से संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रधान कार्यालय न्यूयार्क में है और इसके सदस्यों की वर्तमान संख्या 189 है। सदस्यों की संख्या को देखते हुए अब यह कहा जा सकता है की प्रायोजकों की कल्पना के अनुरूप संयुक्त राष्ट्र सहज रूप में सार्वभौमिक अंतराष्ट्रीय संगठन बन गया है आज संयुक्त राष्ट्र उसके 17 विशेष अभिकरण एवं 14 मुख्य कार्यक्रम और निधियां विश्व के किसी भी कोने के प्रायः सभी मानवों से संबंद्ध है। वह विश्व का अन्तः करण और आशा का केंद्र बना हुआ है।
संयुक्त राष्ट्र संघ : स्थापना (उद्द्भव )
(The United Nations Organization: Origin)
यह एक विचित्र बात है की मानव समाज के आचरण में युद्ध एवं शान्ति , विध्वंस तथा निर्माण के बीज साथ – साथ निहित है। नेपोलियानाई युद्धों के बाद होली एलायंस, प्रथम विश्व – युद्ध के बाद राष्ट्र संघ तथा द्वितीय विश्व – युद्ध के बाद होली एलायंस, प्रथम विश्व के बाद राष्ट्र संघ तथा द्वितीय विश्व – युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना इसके प्रमाण है प्रथम विश्वा – युद्ध के पश्चात्य संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना में वैसे ही भूमिका एक अन्य अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट की थी। रूजवेल्ट ने ही इस अन्तराष्ट्रीय संगठन की स्थापना की आवश्यकता तथा उसके दर्शन की धुंधली रुपरेखा प्रस्तुत की। रूजवेल्ट ने इस बात पर बल भावी विश्व संगठन का आधार महाशक्तियों का पूर्ण मतैक्य होना चाहिए। उसने सोवियत संघ ब्रिटेन तथा अन्य मित्र शक्तियों को इस बात पर सहमत किया की विश्व संस्था के निर्माण की तैयारी युद्ध – काल में ही शुरू कर दी जाय। उसने कहा इससे मित्र – राष्ट्रों को युद्ध जितने के लिए नैतिक समर्थन तथा संबल प्राप्त होगा।
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अक्टूबर, 1943 को संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड तथा सोवियत संघ की सरकारों ने अपने – अपने परराष्ट्र मंत्रियो के माध्यम से एक संयुक्त घोषणा की। इस घोषणा में कहा गया कि जितनी जल्दी संम्भव हो सके, एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन की स्थापना करने की आवश्यकता वो महसूस करते है, यह संगठन सभी शान्तिप्रिय राष्ट्रों की संप्रभुता पर आधारित होगा। ऐसे सभी छोटे– बड़े राज्य इसके सदस्य बन सकेंगे। इसका उदेस्य होगा अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा क़याम करना। “
संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के सम्बन्ध में आगे विचार करने के लिए ईरान की राजघानी तेहरान में एक महत्वपूर्ण सम्मेलन हुआ। राष्ट्रपति रूजवेल्ट एवं मार्शल स्टालिन प्रथम बार आपस में मिले मिले। सब राष्ट्रों के सहयोग से विश्व में शांति स्थापित करने की भावना को दोहराया गया। उनका विश्वास था की संयुक्त राष्ट्र के निर्माण के बाद संसार का प्रत्येक व्यक्ति सुखी एवं स्वतंत्र जीवन – यापन कर सकेगा।
संयुक्त राष्ट्र की रुपरेखा का निर्माण करने के लिए बड़े राष्ट्रों के प्रतिनिधियों का सम्मेलन 21 अगस्त, 1944 तक को वाशिंगटन के डंबार्टन ऑक्स भवन में आयोजित किया गया जो 7 अक्टूबर 1944 तक चला। इस सम्मेलन में यह स्वीकार कर लिया गया कि संयुक्त राष्ट्र का कार्यक्षेत्र केवल अंतराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाये रखने तक ही सिमित न रखा जाय बल्कि उसका कार्य आर्थिक एवं समाजिक प्रश्नो पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जो बढ़ावा देना भी होना चाहिए. प्रस्ताविक विश्व संगठन के संदर्भ में सोवियत संघ का दृष्टिकोण यह था की संयुक्त राष्ट्र में बड़ी शक्तियों की प्रभावशाली एवं निर्णयात्मक भूमिका स्पष्ट रूप से स्वीकार कर लिया जाय। सोवियत संघ का विचार था की वाद – विवाद करने वाली सभाओ में छोटे राष्ट्रों को भी समान अधिकार दिए जा सकते है। उसने इस बात पर जोर दिया की शांति एवं सुरक्षा के क्षेत्र में सभी महत्वपूर्ण निर्णयों के लिए बड़ी शक्तियों का एकमत होना अत्यंत आवश्यक है। उम्बाटर्न ऑक्स प्रस्तावों में ऐसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन की कल्पना की गई जिसमें पुराने राष्ट्र संघ के बहोत से तत्व पाए जाते थे, पर साथ ही उसमे कुछ ऐसे विशाहरो का समावेश भी था जिनसे राष्ट्र संघ की त्रुटियों से सबक लिया जा सके। यहाँ पर राष्ट्र संघ की अपेक्षा आर्थिक एवं सामाजिक सहयोग को अघिक बढ़ावा दिया गया था। इस सम्मेलन सम्बन्ध में निर्णय लिया गया। उम्बाटर्न ऑक्स प्रस्तावों में महासभा एवं सुरक्षा परिषद की कार्यपणाली पर तो सहमति हो गयी परन्तु सुरक्षा परिषद में मतदान प्रणाली के सम्बन्ध में सोवियत संघ एवं पश्चिमी शक्तियों के मध्य मतभेद बने ही रहे।
संयुक्त राष्ट्र के बारे में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय सोवियत संघ के प्रदेश क्रीमिया के याल्टा नगर में लिए गए। 4 फ़रवरी, 1944 को स्टालिन , चर्चिल तथा रूजवेल्ट का एक शिखर सम्मेलन याल्टा में प्रारम्भ हुआ। सुरक्षा परिषद में मतदान प्रणाली पर महत्वपूर्ण निर्णय याल्टा अम्मेलन में ही संभव हो सका। अमेरिका ने 5 मार्च,
1945
को सोवियत संघ, ब्रिटेन तथा चीनी गणतंत्र की और से याल्टा सम्मेलन के निर्णय के अनुसार 51 अन्य राष्ट्रों को आमंत्रित किया गया जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ की चार्टर कहा जाता है। चार्टर के अनुच्छेद 110 में यह कहा गया था कि सोवियत संघ, फ्रांस, अमेरिका, चीन गणराज्य तथा शेष राज्यों के अधिकांश राज्यों की सरकारों द्वारा स्वीकृति प्रदान करने के उपरांत चार्टर लागू मन जायेगा। 24 अक्टूबर, 1945 तक यह शर्त सम्पन्न हो गयी एवं इसी तिथि को संयुक्त राष्ट्र का प्रदुर्भाव हुआ। संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने जिस संगठन को जन्म दिया वह राष्ट्र संघ से बहोत भिन्न था परन्तु अनेक कारणों से विश्वा के सभी देश राष्ट्र संघ को स्मरण ही नहीं करना चाहते थे। राष्ट्र संघ के साथ असफलता का कलंक जुड़ा हुआ था, उसके साथ लगी हुई बदनामी और उसके संविधान की कुछ मौलिक तृतीया थी , इनका निराकरण राष्ट्र संघ से भिन्न एक नई तथा अघिक शक्तिशाली संस्था से ही हो सकता था। 30 अक्टूबर 1945 को भारत UNO में शामिल हुआ।
वस्तुतः संयुक्त राष्ट्र संघ में अभ्युदय की कहानी मित्र – राष्ट्रों के मध्य वार्तालाप तथा विचारो के आदान – प्रदान, युद्द के समय हुए सम्मेलनों से जुड़े हुई है जन्मे अनेक अन्तराष्ट्रीय अनुबंध किये गए। इसके साथ ही साथ प्ररोक्ष रूप में अंतराष्ट्रीय लोकमत जो अंतराष्ट्रीय स्थिति के कारण एक समविन्त रूप ले रहा था।, ने भी इसकी स्थापना और इसके विकास में अपना योगदान दिया है।
संयुक्त राष्ट्र संघ : उदेश्य ( The United Nations Organization : Objects)
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर की प्रस्तावना में इसका उदेश्य निम्न प्रकार से वर्णित किया गया है – ” हम संयुक्त राष्ट्रों की जनताओ ने यह निश्चिय किया है – भावी पीढ़ियों को उस युद्ध की पीड़ा और कष्टों से बचाने का जिसके कारण हमारे जीवन में दो बार मानव जाती को अपार दुःख भोगना पड़ा ;
आधारभूत मानवीय अधिकारों, मानव प्रतिष्ठा और महत्व, स्त्री – पुरुषो तथा छोटे – बड़े राष्ट्रों के सामान अधकारो में अपनी निष्ठां की पुनः पुष्टि करने का , और ऐसी परिस्थितियों उतपन्न करने का, जनसे संधियां एवं अन्य अंतराष्ट्रीय कानूनों के अंतर्गरत आने वाले उत्पन्न करने का , जिनसे सन्धिया एवं अन्य अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के अन्तर्गत आने वाले उत्तरदायित्वों के प्रति न्याय और सम्मान का दृष्टिकोण ग्रहण किया जा सके ;
और अधिक विस्तृत स्वतंत्रता के वातावरण में सामाजिक प्रगति को बढ़ावा देने तथा जीवन – यापन के अधिक उत्तम मानदण्ड स्थापित करने का ;
और अंतराष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की स्थापना हेतु अपनी शक्ति को एकजुट करने ;और सिद्धांतो एवं कार्यप्रणाली का निर्धारण क्र इसबारे में पूर्ण आस्वस्त होने का कि व्यापक और समान हित को छोड़कर अन्य किसी परिस्थिति इ सशस्त्र सेनाओ का उपयोग नहीं किया जायेगा ;
और समस्त संसार के निवासियों को आर्थिक एवं सामाजिक प्रगति के पथ पर उन्मुख रहने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली का उपयोग किया जायेगा। ”
इसी के अनुसार, ” हमारी अपनी सरकारे…..संयुक्त राष्ट्र संघ के वर्तमान चार्टर से सहमत हो गयी है तथा इसके द्वारा एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन स्थापित करती है जो संयुक्त राष्ट्र संघ कहलायेगा। ”
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर के प्रथम अनुच्छेद में सके उदेश्यो का वर्णन इस प्रकार किया गया है —
” अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा स्थपित करना , राष्ट्रों के बिच जन – समुदाय के लिए सामान अधिकारों तथा आत्म – निर्णय के सिद्धांत पर आधारित मित्रतापूर्ण सम्बन्धो का विकास करना आर्थिक, समाजिक अथवा मनाव जाती के लिए प्रेम आदि अंतराष्ट्रीय समस्याओ को सुलझाने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करना तथा इस सामान्य उदेश्यो की पूर्ति के लिए राष्ट्रोकेकार्यो को समन्वित करने के उदेश्य से एक क्रेन्द्र का कार्य करना। ”
संक्षेप में चार्टर के अनुसार संयुक्त राष्ट्र संघ के चार प्रमुख उदेश्य है ––
(1
) सामूहिक व्यवस्था द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा कायम रखना और आकर्मण प्रवृतियों को नियंत्रण में रखना ;
(2)
अन्तराष्ट्री विवादों को शांतिपूर्ण समाधान रखना ;
(3 )
राष्ट्रों के आत्म – निर्णय और उपनिवेशवाद विघटन की प्रक्रिया को गति देना;
(4
) सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक एवं मानवीय क्षेत्रों में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित एवं पुष्ट करना।
संयुक्त राष्ट्र संघ ; सिद्धांत (Principle of U.N.O)
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर की धारा 2 में इसके निम्नलिखित मौलिक सिद्धांत बताये गये है —
(1
) इसका प्रधान आधार छोटे – बड़े सब देशों की समानता और सर्वोच्व सत्ता का सिद्धांत है।
(2
) सब सदस्यों से यह साशा रखी जाती है की वे चार्टर द्वारा उन पर लागू होने वाले दायित्वों का पालन पूरी ईमानदारी से करेंगे।
(3
) सभी सदस्य अंतर्राष्ट्रीय झगड़ो का निपटारा शांतिपूर्ण साधनो से करेंगे।
(4
) सभी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र संघ के उदेश्यो के प्रतिकूल कोई कार्य नहीं करेंगे, वे किसी देश की स्वतंत्रता हनन करने की या आक्रमण करने कि नतो धमकी देंगे और ना ऐसा कार्य करेंगे।
(5
) कोई भी देश चार्टर के प्रतिकूल काम करने वाले देश की सहायता नहीं करेगा।
(6
) सं. रा . संघ किसी देश के घरेलू मामलो में हस्तक्षेप नहीं करेगा।
संयुक्त राष्ट्रसंघ के अंग (Organs of the U.N.O)
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तृतीय अध्याय में अनुच्छेद 7 के अनुसार इस संस्था के ‘ प्रधान अवयव ‘ इस प्रकार है :-
(1
) महासभा (The General Assembly)
(2)
सुरक्षा परिषद (The Security Council)
(3)
सचिवालय (The Security Council )
(4)
आर्थिक और सामाजिक परिषद (The Economic and Social Council)
(5)
अंतराष्ट्रीय न्यायालय (The International Court of Justice)
(6)
न्यासिता परिषद(The Trusteeship Council) (1944 में इसे समाप्त कर दिया गया था )
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महलवाड़ी व्यवस्था क्या है ?/ What is Mahalwari and Ryotwari system?————-
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है ?/What is Rayotwari System? ————————