सम्प्रदायिक पंचाट
साम्प्रदायिक पंचाट एक ऐसी विषय है जिसमें हमें दलितों के पृथक निर्वाचन या उनके लिया सोची गयी पहली विचार दिखाई देती है, जिसके अंतर्गत दलितों के लिए एक पृथक निर्वाचन मंडल या क्षेत्र की माँग की जा रही थी। साम्प्रदायिक पंचायत भारत संवैधानिक इतिहास में सबसे घातक या कहे तो भारत को आपस में विभाजित करने का सबसे बड़ा घातक सिद्ध हुआ। इसके द्वारा हरिजनों को हिन्दुओ से अलग करने की कोशिश की गई। इसमें हिन्दुओं साथ न्याय नहीं किया गया। जिन प्रांतों में हिन्टूअल्पसंख्या में थे,वहाँ हिन्दुओं को वही रियायतें नहीं दी गई, परन्तु जहाँ मुसमलानों को रियायतें दी गयी वह वो अल्प संख्यक थे।
पूना पेक्ट -1932
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भीमराव अम्बेडकर दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मण्डल की मांग की, जिसे गाँधी ने अस्वीकार कर दिया। दूसरा गोलमेज सम्मलेन साम्प्रदायिक समस्या पर विवाद के कारण पूरी तरह असफल रहा।
- 1 दिसम्बर,1931 को इस गतिरोध के कारण यह सम्मेलन समाप्त हो गया।
- 16 अगस्त 1932 को रैम्से मेक्डोनाल्ड ने साम्प्रदायिक एवार्ड की घोषणा की।
- इसमें दलितों और मुसलमानों को पृथक निर्वाचन मण्डल का प्रावधान था।
गाँधी जी को सबसे अधिक दुःख दलित वर्गो के लिए सम्प्रदायिक पंचाट के स्थापना से हुआ। गाँधी इसके विरोध में 18 अगस्त 1932 को मेक्डोलैण्ड को एक पत्र लिखा की यदि 20 सितम्बर 1932 तक दलित वर्गो के पृथक निर्वाचन को नहीं समाप्त किया गया तो वे 20 सितम्बर 1932 की दोपहर से आमरण अनशन कर देंगे। दलितों को पृथक निर्वाचन मण्डल दिए जाने के विरोध में गाँधी जी ने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया।
मदन मोहन मालवीय, डॉ0 राजेंद्र प्रसाद, परुषोत्तम दास टण्डन, सी0 राज गोपालाचारी, आदि ने डॉ अम्बेडकर से विचार- विमर्श किया और गाँधी के उपवास के पांच दिन बाद अम्बेडकर और गाँधी के बिच 26 सितंबर 1932 को एक समझौते पर हस्ताक्षर हो गया, जिसे पूना समझौता या पूना पेक्ट कहा जाता है। गाँधी जी ने अपना अनशन 26 सितंबर को समाप्त कर दिया।
पूना पैक्ट के अनुसार दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था समाप्त कर दी गयी तथा क्रेन्द्रिय विधान मण्डलों में दलित वर्ग के लिए 71 सीटें 148 आरक्षित की गयी एवं उनके हितो की बात भी कही गयी।