Monday, November 18, 2024
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सविनय अवज्ञा आंदोलन, डंडी यात्रा, नमक सत्याग्रह (Civil Disobedience Movement, Dandi Yatra, Salt Satyagraha)

वर्ष 1929  लाहौर कांग्रेस अधिवेशन में कांग्रेस कार्यकारिणी को सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का अधिकार दिया गया।  फ़रवरी, 1930  साबरमती आश्रम में हुई कांग्रेस कार्यकारणी दूसरी बैठक  महात्मा गांधी को इस  नेतृत्व सौंपा गया। महात्मा गाँधी ने 12 मार्च, 1930  प्रसिद्ध ‘दांडी मार्च ‘ शुरू किया।  उन्होंने साबरमती आश्रम (अहमदाबाद )से चुने हुए साथियों के साथ जिसमे अपने आश्रम से 78 (80) SC ( अनुसूचित जाती ) के सहयोगियों के साथ सत्याग्रह के लिए यात्रा आरंभ किया । 240  मील  (240 x 1. 5 2 = 385 km की यात्रा को 24 दिनों की लंबी यात्रा के बाद उन्होंने 6 अप्रैल, 1930 को दांडी में सांकेतिक रूप से पूरा किया और नमक कानून भंग किया और इस प्रकार नमक कानून तोड़कर उन्होंने औपचारिक रूप से सविनय अवज्ञा अभियान शुभारंभ किया। 

 

यह आंदोलन आंशिक रूप से सफल रहा।  क्योंकि इसी आंदोलन  अंग्रेजों ने TAX में कटौती किया तथा मादक पदार्थ जैसे- सिगरेट तथा शराब के उत्पादन  में कमी किया।  जब सविनय अवज्ञा आंदोलन  चल रहा था तो लंदन में गोलमेज सम्मलेन का आयोजन किया जा रहा था क्योकि भारत  आंदोलन के  कांग्रेस का प्रतिनिधि वहाँ भाग नहीं लेने न गया। 

 

जिसके कारण इंग्लैण्ड  पर दबाव आने लगा की वे कांग्रेस को इस सम्मलेन में भाग लेने के लिए भेजे. इसी दबाव में आकर इरविन ने समझौता करने का विचार किया।  

इरविन ने महात्मा गांधी से यह आग्रह किया गया की यदि वे सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगीत करके गोलमेज सम्मलेन में भाग लेंगे तो गांधीजी के कुछ बातों को मान लिया जाएगा जिससे सबसे प्रमुख राजनितिक कैदियों की रिहाई थी. इस समझौते के तहत भगत सिंह को नहीं रिहा किया गया क्योंकि उनपर आपराधिक मुकदमा था। 

 

 

गांधी जी S.S Rajputana  नामक पानी वाला जहाज  लंदन पहुंचे जहाँ विस्टन चर्चिल ने उन्हें अर्द्धनग्न फकीर कहा। इस सम्मलेन में इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री रैमजे मैकडोनल ने दलितों के लिए अलग क्षेत्र अर्थात साम्प्रदायिक पंचांग (Communal Award) की बात कही।  जिसके करम महात्मागांधी सम्मलेन को छोड़कर भारत लौट आए और पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन को आगे बढ़ाया. 

 

सविनय अवज्ञा आंदोलन गाँधीजी के नेतृत्व में पुरे देश में फैल गया। तमिलनाडु में तंजौर तट पर गांधीवादी नेता सी. राजगोपालाचारी ने तिरुचेंगोड आश्रम से त्रिचरापल्ली के वेदारण्यम तक नमक यात्रा की। 5 अप्रैल, 1930 को महात्मा गांधी अपने नमक सत्याग्रह के तहत दांडी ग्राम पहुंचे, उन्होंने दांडी आए सभी देशी व विदेशी पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा की ” शक्ति के विरुद्ध अधिकार की इस लड़ाई में मैं विश्व की सहानुभूति चाहता हूँ। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान धरसाना नमक गोदाम पर कांग्रेस कार्यकर्ताओं के धावे से पूर्व महत्मा गाँधी को 5 मई, 1930 को गिरफ्तार कर यरवदा जेल भेज दिया गया था।  उनके स्थान पर अब्बास तैय्यबजी आंदोलन के नेता हुए।  उनकी भी गिरफ़्तारी के बाद श्रीमती सरोजिनी नायडू ने 21 मई, 1930 को धरसाना नमक गोदाम पर धावे का नेतृत्व किया था। मुम्बई में इसी आंदोलन के दौरान सरोजनी नायडू ने 25000 आंदोलनकारियों को लेकर धरसाना नामक स्थान पर पहुंची किन्तु इसकी सूचना पहले ही अंग्रेजों को लग गई और अंग्रेजों ने आंदोलन को दबा दिया। इसी आंदोलन के दौरान लड़कों की बंदरी सेना तथा लड़कियों की मंजरी सेना का गठन किया गया।  

 

 

कश्मीर के क्षेत्र से अब्दुल गफ्फार खां तथा सीमांत गाँधी भी इन्हें कहा जाता है। इनके नेतृत्व में ‘खुदाई खिदमतगार ‘ नमक स्वयंसेवक संगठन स्थापित किया गया था,  जिसे  ‘लाल कुर्ती ‘ (Red Shirt) के नाम से भी जाना जाता है ‘लाल कुर्ती ‘ संगठन ने पठानों की राष्ट्रिय एकता का नरा बुलंद किया और अंग्रेजो से स्वतंत्रता के लिए ब्रिटिश उपनिवेशवाद के विरुद्ध आंदोलन संगठित किया तथा श्रमजीवियों की हालत में सुधार की मांग की।  उत्तर – पश्चिमी सीमा प्रांत के मुसलमानो ने खान अब्दुल गफ्फार खां के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

 

चन्द्रसिंह गढ़वाली :- के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान पेशावर में गढ़वाल रेजीमेंट के सिपाहियों ने चन्द्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में निहत्थी भीड़ पर गोली चलाने से इंकार कर दिया था। 

 

मणिपुर की जनजतियों :- ने सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान मणिपुर की जनजातियों ने भी महत्वपूर्ण वह सक्रीय भागीदारी दिखाई। यहाँ पर आंदोलन का नेतृत्व नागा जनजाति की महिला गैडिनल्यू ने किया. इसे ‘जियातरंग आंदोलन कहा जाता है।  

 

चौकीदारी टैक्स के विरोश में प्रदर्शन :- दिसंबर, 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान उतरी बिहार के सारण जिले में चौकीदारी टैक्स के विरोधी में प्रदर्शन हुआ और प्रदर्शनकारियों ने दमन चक्र की परवाह नहीं  की। 

 

 

सविनय अवज्ञा आंदोलन की असफलता के बाद गांधीजी ने रचनात्मक कार्यक्रम को महत्व दिया। अक्टूबर, 1934 में गाँधीजी ने अपना पूरा समय ‘हरिजनोत्थान ‘ में लगाने के लिए सक्रीय राजनीती से सवयं को हटाने का निश्चय किया।  सितम्बर, 1932 में गांधीजी ने हरिजन कल्याण हेतु ”अखिल भारतीय छुआछूत विरोधी लीग ” की स्थापना की तथा ‘ हरिजन ‘ नमक साप्ताहिक- पत्र का प्रकाशन किया। 

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