Wednesday, October 30, 2024
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Biography of Shree Janaki Ballabh Shastri श्री जानकी वल्लभ शास्त्री की जीवनी। – learnindia24hours

 
श्री जानकी वल्लभ शास्त्री  

जन्म:- 5 फरवरी, 1916

पिता:- श्री
रामानुग्रह शर्मा

पत्नी:- छाया
देवी

मृत्यु:- 7 अप्रैल,
2011

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


श्री जानकी वल्लभ शास्त्री जी का जन्म 5 फरवरी, 1916 में बिहार के गया जिले के मैगरा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री रामानुग्रह शर्मा थे। उनके पिता का देहांत बचपन के समय में ही हो गया था। जानकी वल्लभ
शास्त्री ने 11 वर्ष की वय में ही उन्होंने 1927 में बिहार-उड़ीसा की सरकारी संस्कृत परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। 16 वर्ष की आयु में शास्त्री की उपाधि  प्राप्त करने के बाद वे काशी हिन्दूविश्वविद्यालय चले गए। वे वहां 1932 से 1938 तक रहे। उनकी विधिवत् शिक्षा-दीक्षा तो संस्कृत में ही हुई थी, लेकिन अपनी मेहनत से उन्होंने अंग्रेज़ी और बांग्ला का
अच्छा ज्ञान प्राप्त कछोटी उम्र में ही अपने पिता के देहांत कारण वे आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे थे। उनकी पत्नी का नाम छाया देवी है।
आर्थिक समस्याओं के निवारण के लिए उन्होंने बीच-बीच में नौकरी भी की थी।

1936 में लाहौर में
अध्यापन
कार्य किया

1937-38 में रायगढ़ (मध्य
प्रदेश) में राजकवि भी रहे।

1934-35 में
इन्होंने साहित्याचार्य की उपाधि स्वर्णपदक के साथ अर्जित की और पूर्वबंग सारस्वत
समाज ढाका के द्वारा साहित्यरत्न घोषित किए गए।

1940-41 में
रायगढ़ छोड़कर मुजफ्फरपुर आने पर इन्होंने वेदांतशास्त्री और वेदांताचार्य की
परीक्षाएं बिहार भर में प्रथम आकर पास की।

1944 से 1952 तक
गवर्नमेंट संस्कृत कॉलेज में साहित्य-विभाग में प्राध्यापक, दोबारा अध्यक्ष रहे।

1953 से 1978 तक
बिहार विश्वविद्यालय के रामदयालु सिंह कॉलेज, मुजफ्फरपुर में हिन्दी के प्राध्यापक
रहकर 1979-80 में अवकाश ग्रहण किया।

जानकी वल्लभ शास्त्री का पहला गीत ‘किसने बांसुरी बजाई’ काफी लोकप्रिय हुआ। प्रो.
नलिन विमोचन शर्मा ने उन्हें जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला,
सुमित्रानंदन पंत और महादेवी के बाद पांचवां छायावादी कवि
कहा है ।

शास्त्रीजी ने कहानियाँ, काव्य-नाटक,
आत्मकथा, संस्मरण, उपन्यास और आलोचना भी लिखी है। उनका उपन्यास ‘कालिदास’ भी बृहत
प्रसिद्ध हुआ था।

उन्होंने
16 साल की आयु  में ही लिखना आरंभ किया था।
उनकी पहली रचना ‘गोविन्दगानम्‌’ है जिसकी पदशय्या को कवि जयदेव से अबोध स्पर्द्धा
की विपरिणति मानते हैं।

उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की
और ‘राधा` जैसा सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य रचा। परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा
अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है।

इस क्षेत्र में उन्होंने नए-नए
प्रयोग किए जिससे हिंदी गीत का दायरा काफी व्यापक हुआ। वैसे, वे न तो नवगीत जैसे
किसी आंदोलन से जुड़े, न ही प्रयोग के नाम पर ताल, तुक आदि से खिलवाड़ किया। छंदों
पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में आती हैं कि
इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊंचाई को छू पाते हैं।

26 जनवरी 2010 को
भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया
किन्तु इसे शास्त्रीजी ने अस्वीकार कर दिया।

 श्री
जानकी वल्लभ शास्त्री की मृत्यु 98 वर्ष की आयु
में 7 अप्रैल, 2011 को बिहार के मुजफ्फरनगर जिले
में हुई ।

काव्य संग्रह :- बाललता
, अंकुर , उन्मेष , रूप-अरूप ततीर-तरं , शिप्रा
, अवन्तिका
, मेघगीत
, गाथा , प्यासी-पृथ्वी
, संगम , उत्पलदल,  चन्दन वन ,  शिशिर किरण , हंस किंकिणी
, सुरसरी , गीत ,  वितान , धूपतरी , बंदी
मंदिरम्‌

समीक्षा :- साहित्य
दर्शन
,
त्रयी , प्राच्य
साहित्य
,  स्थायी
भाव और सामयिक साहित्य
, चिन्ताधारा

सांगीतिक :- पाषाणी
,  तमसा , इरावती
,

नाटक :- देवी , ज़िन्दगी
, आदमी , नील-झील

उपन्यास :-  एक किरण : सौ झांइयां , दो
तिनकों का घोंसला
, अश्वबुद्ध , कालिदास
,चाणक्य
शिखा (अधूरा)

कहानी संग्रह :- कानन , अपर्णा
, लीला
कमल
,  सत्यकाम
,  बांसों
का झुरमुट
,

ग़ज़ल संग्रह :-  सुने कौन नग़मा ,     महाकाव्य , राधा ,

संस्कृत काव्य :- काकली

संस्मरण :-  अजन्ता की ओर, निराला
के पत्र
,  स्मृति
के वातायन
, नाट्य सम्राट पृथ्वीराज कपूर , हंस-बलाका
, कर्म
क्षेत्रे मरु क्षेत्र
, अनकहा निराला

ललित निबंध :- मन की
बात
, जो न
बिक सकीं

पुरस्कार

राजेंद्र
शिखर पुरस्कार

भारत
भारती पुरस्कार

शिव
सहाय पूजन पुरस्कार

शास्त्री
की उपाधि

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