Monday, November 18, 2024
HomeBIOGRAPHYBiography of Major Somnath Sharma मेजर सोमनाथ शर्मा की जीवनी।

Biography of Major Somnath Sharma मेजर सोमनाथ शर्मा की जीवनी।

 

                                मेजर सोमनाथ

 

 

जन्म:- 31 जनवरी 1923

मृत्यु:- 3 नवंबर 1947

पिता:- अमरनाथ शर्मा

 

मेजर सोमनाथ शर्मा भारतीय सेना के पहले परमवीर चक्र से सम्मानित सैनिक थे। उनका जन्म 31 जनवरी 1923 को जम्मू और कश्मीर राज्य में हुआ था। उनके पिता मेजर जनरल अमरनाथ शर्मा भी सेना में थे, जिससे मेजर सोमनाथ को सेना के प्रति लगाव विरासत में मिला।

1942 में ब्रिटिश भारतीय सेना में शामिल होकर मेजर सोमनाथ ने अपने सैन्य करियर की शुरुआत की। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने बर्मा में युद्ध किया, जहाँ उन्होंने अद्भुत साहस का परिचय दिया। स्वतंत्रता के बाद, 1947-48 के भारत-पाक युद्ध में उन्होंने भारतीय सेना के साथ कश्मीर की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

3 नवम्बर 1947 को बडगाम में पाकिस्तानी सेना के साथ युद्ध के दौरान, उनके पास सिर्फ 50 सैनिक थे, जबकि दुश्मन के सैनिक कई गुना ज्यादा थे। लेकिन मेजर सोमनाथ ने बहादुरी से दुश्मन का सामना किया और उनके हमले को रोकने में सफल रहे। इस युद्ध में उन्हें गंभीर चोटें आईं, लेकिन अंत तक उन्होंने मोर्चा संभाले रखा और अपने कर्तव्य को पूरा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

उनकी इस बहादुरी और देशभक्ति के लिए उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च सैन्य सम्मान, परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। मेजर सोमनाथ शर्मा का बलिदान और साहस भारतीय सेना के इतिहास में अमर है और उनकी वीरता आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्त्रोत बनी रहेगी।

मेजर सोमनाथ शर्मा का युद्ध कौशल और बहादुरी बडगाम की लड़ाई में अपने चरम पर देखने को मिली। 3 नवम्बर 1947 को उन्हें एक अत्यंत महत्वपूर्ण मिशन के लिए चुना गया था। उनकी बटालियन के पास सीमित संसाधन थे, लेकिन मेजर सोमनाथ ने हिम्मत नहीं हारी। उनके पास केवल 50 जवान थे, जबकि पाकिस्तानी सेना के लगभग 500 सैनिकों ने उनकी पोस्ट पर हमला कर दिया।

बडगाम में स्थितियां बेहद चुनौतीपूर्ण थीं। दुश्मन हर तरफ से घिरा हुआ था और हथियारों तथा सैनिकों की कमी के बावजूद मेजर सोमनाथ ने अपने जवानों को प्रेरित किया और मोर्चा संभाले रखा। युद्ध के दौरान उनके पास गोला-बारूद की कमी हो गई, लेकिन उन्होंने अंतिम सांस तक लड़ते हुए दुश्मनों के हमले को रोके रखा।

इस घातक युद्ध में मेजर सोमनाथ शर्मा को गंभीर चोटें आईं। युद्ध के अंतिम क्षणों में, एक मोर्टार शेल उनके पास आकर फटा, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन उनके अदम्य साहस और नेतृत्व ने उनके साथियों के मनोबल को मजबूत किया और दुश्मन को भारी नुकसान उठाना पड़ा। उनकी इस वीरता ने न केवल उनके साथियों के जीवन को बचाया बल्कि बडगाम को पाकिस्तानी घुसपैठ से भी बचाया।

उनकी अंतिम शब्द थे:
> “मुझे अपने कर्तव्य का पालन करना है, चाहे मेरी जान भी चली जाए। मुझे अपने देश के लिए मरने पर गर्व है।”

उनकी शहादत और साहस को याद करते हुए भारतीय सेना ने उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय सैनिक थे। मेजर सोमनाथ शर्मा की वीरता, देशभक्ति और बलिदान आज भी भारतीय सेना के जवानों और भारतीय नागरिकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। उनकी कहानी हमें यह सिखाती है कि कर्तव्य और मातृभूमि के प्रति प्रेम सर्वोपरि है, और इसके लिए किसी भी प्रकार का बलिदान देना महानता की पहचान है।

मेजर सोमनाथ शर्मा का बलिदान न केवल भारतीय सेना के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक अनमोल धरोहर बन गया है। उनकी वीरता ने आने वाली पीढ़ियों को यह प्रेरणा दी कि कर्तव्य और देश की रक्षा के लिए हर कठिनाई का सामना करना चाहिए, चाहे उसकी कीमत कितनी भी बड़ी क्यों न हो।

उनकी बहादुरी की कहानी को भारतीय सेना के हर जवान तक पहुंचाने के लिए कई प्रयास किए गए हैं। भारतीय सेना में नए सैनिकों को प्रशिक्षण के दौरान मेजर सोमनाथ शर्मा की शहादत की कहानी सुनाई जाती है ताकि वे अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्यों को लेकर और अधिक सजग और प्रतिबद्ध हो सकें। उनके बलिदान ने यह संदेश दिया कि अपने देश और उसकी जनता की रक्षा से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता।

मेजर सोमनाथ शर्मा के इस असाधारण साहस को भारत के कई साहित्यकारों और कवियों ने भी अपने लेखन और कविताओं के माध्यम से जीवंत रखा है। उनके जीवन पर आधारित कहानियाँ, कविताएँ और नाटक आज भी भारतीय समाज में देशभक्ति और वीरता की भावना को बढ़ावा देते हैं। कई स्कूलों और संस्थानों ने भी उनकी याद में विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया है।

साथ ही, भारत सरकार और भारतीय सेना द्वारा मेजर सोमनाथ शर्मा को सम्मानित करने के लिए कई स्मारक स्थापित किए गए हैं। उनकी याद में भारतीय सेना के कई रेजिमेंटल सेंटर और सैन्य अकादमियों में उनके नाम पर पुरस्कार और वीरता मेडल भी प्रदान किए जाते हैं। इनके माध्यम से उनके बलिदान को हमेशा याद किया जाता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को उनसे प्रेरणा मिल सके।

मेजर सोमनाथ शर्मा का जीवन और बलिदान इस बात का जीता-जागता उदाहरण है कि कर्तव्य के प्रति ईमानदारी और मातृभूमि के प्रति निस्वार्थ प्रेम में अदम्य साहस होता है। उनका अमर बलिदान हमें हमेशा यह सिखाता रहेगा कि वीरता का सबसे ऊँचा आदर्श अपने देश की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जाने की हिम्मत रखता है। उनका नाम भारतीय इतिहास के स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है और उनका बलिदान सदा भारतीय सेना और देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा।

 

Click the below link for all World History page’s

#EDUCATION SYSYTEM IN JHARKHAND/झारखण्ड में शिक्षा का विकाश। 

 #झारखण्ड बिहार से अलग क्यों हुआ इसके कारण क्या थे । # Bihar and Jharkhand state partition in India.

 

#झारखण्ड की संस्कृति लोक वाध यंत्र PART-2#JHARKHAND MUSICAL TOOLS.

 

https://www.learnindia24hours.com/search/label/WORLD%20HISTORY?&max-results=8

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments