#Contract Farming/अनुबंध खेती ?
मूल्य आवश्सन पर बंदोबस्त और सुरक्षा समझौता के तहत बड़े –बड़े कम्पनीय कॉन्टैक्ट फार्मिंग अनुबंध कृषि कर सकती है इनमें
बड़ी कम्पनियाँ अपने जरूरत को देखते हुए कृषियों
से एग्रीमेंट करवाती है एवं उनसे अपने फसल के मांग के तहत खेती करने को कहती है।
भारत में जितने भी कृषि होते है वे सभी प्रकृति और भारत के भौगोलिक मौसम पर निर्भर रहते है जिसके कारण कभी
– कभी किसान
को दिक़्क़तों का सामना भी बहोत करना पड़ता है।
कभी – कभी ख़राब मौसम के कारण, ज्यादा बारिश होने की वजह से खेत में खड़े फैसले भी ख़राब
हो जाते हमारे देश में ज्यादातर छोटे किसान हैं. ये किसान अपने खेतों में कुछ ज्यादा प्रयोग भी नहीं कर पाते. आलम ये हो गया है कि लोग खेती–बाड़ी छोड़कर शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. हालांकि खेती के घाटे को कम करने के लिए सरकार बड़े स्तर पर काम कर रही है, लेकिन विविधताओं से भरे इस देश में ये प्रयास पर्याप्त साबित नहीं होते हैं ।
सरकार किसानो को आधुनिक तरीके से खेती करने के लिए जागरुक कर रही है. आधुनिक खेती का ही एक नया माध्यम है कॉन्ट्रैक्ट खेती या अनुबंध पर खेती या फिर ठेका खेती।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे
कमीशन फोर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइजेज (CACP) के प्रमुख पाशा पटेल कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के फायदे गिनाते हुए बताते हैं कि गुजरात में बड़े पैमाने पर कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग हो रही है. महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के कई राज्यों में अनुबंध पर खेती की जा रही है और इस खेती के अच्छे परिणाण सामने आ रहे हैं. इससे न केवल किसानों को फायदा हो रहा है बल्कि, खेती की दशा और दिशा भी सुधर रही है।
– खेती अधिक संगठित बनेगी।
– किसानों को बेहतर भाव मिलेंगे।
– बाजार भाव में उतार–चढ़ाव के जोखिम से किसान मुक्त।
– किसानों को बड़ा बाजार मिल जाता है।
– किसान को सीखने का अवसर मिलता है।
– खेती के तरीके में सुधार होगा।
– किसानों को बीज, फर्टिलाइजर के फैसले में मदद मिलेगी।
– फसल की क्वॉलिटी और मात्रा में सुधार।
– किसानों को ज्यादा लाभ मिलेगा।
– किसानों को भी उनकी मेहनत के हिसाब से कमाई होगी बिना किसी बाजार के भाव के डर से।
– किसानो को नये – नये अवसर प्राप्त होंगे।
जैसे :- अगर किसी कम्पनी को आलू की जरुरत है तो वो वैसे किसानों के पास जाएगी जो अल्लू का उत्पादन करते है एवं इनको कहेंगी की आप मुझे आलू उत्पाद करके दीजिए यह उत्पादित होने के बाद हम लेजायेंगे या कम्पनी खरीदेगी। कम्पनी सीधी तोर से किसानों के पास जाकर संपर्क करती है।
Price Before Farming ?
जैसे :- अगर किसी कम्पनी को आलू की जरुरत है तो वो वैसे किसानों के पास जाएगी जो अल्लू का उत्पादन करते है एवं इनको कहेंगी की आप मुझे आलू उत्पाद करके दीजिए यह उत्पादित होने के बाद हम लेजायेंगे या कम्पनी खरीदेगी। कम्पनी सीधी तोर से किसानों के पास जाकर संपर्क करती है। में कंपनी न केवल फसल लेने के लिए समझौता करती है बल्कि एग्रीमेंट के समय किसानों एवं कंपनियों के मध्य फसलो के मूल्य को भी निर्धारित किया जाता है ताकि भविष्य में जिसके कारण बजार के कीमतों का असर एग्रीमेंट के मूल्य पर नहीं पड़ता है
समझे – अगर एग्रीमेंट के समय आलू का मूल्य 20
रूपए है तो उत्पादित आलू की कीमत कंपनी किसानो को वही देगी। अगर भविष्य में आलू का मूल्य 30 रूपए या 10 रूपए हो जायगा तो न कंपनी कम करेगी और न ज्यादा या पूर्णता फिक्स होती है।
कॉनट्रैक्ट फार्मिंग के लिए जरूरी कदम
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसान और कॉन्ट्रैक्टर, दोनों को फायदा हो, इसके लिए कुछ जरूरी उपाय करने चाहिए. जैसे, दोनों पक्षों के बीच होने वाले करार का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन होना चाहिए. किसान और कंपनी के बीच करार पारदर्शी होना चाहिए. कोई भी बात, नियम या शर्त छिपी हुई नहीं होनी चाहिए. सभी बातें स्पष्ट होनी चाहिए। जिससे भविष्य में कंपनियों को नुकसान हो और न
किसानो को इसीलिए यह सभी बातें बहोत महत्पूर्ण हो जाती है।
– बड़े खरीदारों के एकाधिकार को बढ़ावा।
– कम कीमत देकर किसानों के शोषण का डर।
– सामान्य किसानों के लिए समझना मुश्किल।
– छोटे किसानों को इसका कम होगा फायदा।
– भविष्य में भाव बढ़ने पर किसानो का नुकसान।