Monday, December 23, 2024
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गयासुद्दीन बलबन 1266 से 1286 (Ghayasuddin Balban 1266 to 1286)

प्रारम्भिक जीवन – बलबन इल्तुतमिश का गुलाम तथा चालीस अमीरों के दल का एक सदस्य था। इल्तुतमिश के समान वह इल्बारी तुर्क था। उसका पिता दस हजार परिवारों का मुखिया था। बालयकाल में मंगोल उसे पकड़ ले गये और गुलाम के रूप में बसरा के ख्वाजा जमालुद्दीन को बेच दिया। 1232  ईस्वी में जमालउद्दीन उसे दिल्ली लाया, जहाँ इल्तुतमिश ने उसे खरीद लिया।  बलबन कुरूप था और जमालुद्दीन ने उस पर अनेक अत्याचार किया था।  लेकिन वह योग्य, लगनशील था। इल्तुतमिश ने उसे ख़ास सेवकों में नियुक्त किया और इसके बाद उसकी प्रतिभा से प्रभावित होकर उसे उच्च पदों पर नियुक्त करके चालीस गुलामों के विशिष्ट वर्ग का सदस्य बना दिया।  उसने इल्तुतमिश के काल में निष्ठापूर्वक अपने स्वामी की सेवा की थी।  रजिया ने आमिर -ए -शिकार के पद पर उसे नियुक्त किया था।  लेकिन रजिया के विरोध में अमीरों के षड्यंत्र में उसने अपने वर्ग का साथ दिया।  बहरामशाह ने उसे आमिर -ए -अखुर  के पद पर नियुक्त किया और रेवाड़ी तथा हँसी की जागीरें प्रदान की।  वास्तव में, बहरामशाह के राज्यारोहण के समय अमीरों ने पदों तथा जागीरों का जो विभाजन किया था, उसमे बलबन को यह भाग मिला था। अलाउद्दीन मसूदशाह के राजीरोहण के समय उसे आमिर-ए -हाजिब का पद प्राप्त हुआ। 1246 ईस्वी में मंगोल के विरुद्ध अभियान में उसने अपनी योग्यता प्रदर्शित की थी। इससे दरबार में उसकी शक्ति बढ़ गई और चालीस अमीरो के दल में उसके प्रभाव में वृद्धि हुई। 1248 ईस्वी में वह इतना शक्तिशाली हो गया था की उसने अल्लाउद्दीन मसूद को सिंहासन से हटाकर इल्तुतमिश के एक अन्य पुत्र नासिरुद्दीन महमूद को सुलतान बना दिया। बलबन ने इल्तुतमिश की एक विधवा से विवाह करके राजवंश से सम्बन्ध स्थापित कर लिया था। 1249 ईस्वी में उसने अपनी पुत्री का विवाह सुल्तान के साथ कर दिया। गयासुद्दीन बलबन का वास्तविक नाम बहाउद्दीन था इसी समय 1249 ईस्वी में सुल्तान नासिरुद्दीन ने नायाब -ए – मुमालिकात पद को पुनः निर्मित किया और उस पर बलबन की नियुक्ति कर दी और उसे उलुगखां की उपाधि प्रदान की। 

 

* इसने सल्तनत युग में बलबनी राजवंश की स्थापना की। इसने शासक बनते समय ग्यासुद्दीन की उपाधि ली। 

 

* इस्लामी के अनुसार इसके सुलतान बनते ही तुर्क सरदार किसी वाद – विवाद के इसकी अधीनता स्वीकार करते है। 

 

* इसने साम्राज्य पर पूर्ण प्रभुत्व की इच्छा से रक्त एवं लौह निति को अपनाया।  तहत आमिर  नागरिक वद्रोहकर्त्ता को खुले आम हत्या क्र दी जाती थी तथा उसके पत्नी एवं बच्चे को  जाता। था 

 

बलबन के रक्त एवं लौह नीति के निम्न घटनाओं  में देखे जाते है —

 

I.  बंगाल के तुगरिल खां के विद्रोही बनने पर । 

 

II. मेवातियों दमन करते समय । 

 

III. कटेहर तथा दोआब के विद्रोह के दमन के समय। 

 

* इसने साम्राज्य पर पूर्ण पकड़ बनाने के लिए राजत्व सिद्वांत का प्रतिपादन किया और लिए निम्न कदम उठाये :-

 

I) जातीय श्रेष्ठता में विश्वास – इसके लिए वह खुद को शाहनामा  फिरदौसी  में  वर्णित अफरासियाब वंश  वंशज बताया।  उच्च पदों कुलीनों की नियुक्ति की।  उसका कहना था- ” जब मैं किसी निम्न कुल के व्यक्ति को देखता हूँ तो मेरे शरीर के खून  क्रोध उतपन्न होता है। ” 

 

II)  राजा पृथ्वी पर ईश्वर  प्रतिनिधि है ( ईश्वर  प्रतिनिधि को नियाबते खुदाई कहते है ) तथा मान- मर्यादा  दृष्टि से यह पैग़म्बंर के बाद का स्थान रखता है। राजा ईश्वर का प्रतिबिम्ब है राजा का ह्रदय दैवी प्रेरणा एवं क्रांति का भंडार है । 

 

III)  इसने राजदरबार को अत्यंत वैभवपूर्ण तरीके से स्थापित कराया. दरबार में सिजदा ( भूमि पर लेटकर अभिवादन करना )  एवं  पैबोस सुल्तान के चरणों को चूमना ) की परम्परा चलाई।  फारसी त्यौहार ‘ नौरोज ‘ बड़ी शानो – शौकत के साथ मानाने की प्रथा आरंभ  किया । 

 

IV) न्याय राजा का सर्वोच्च दायित्व होता है। 

 

बलबन का राजत्व सिद्धांत पासिर्य से प्रेरित थे, जबकि राजनैतिक आदर्श की प्रेरणा वह फारस  पौराणिक वीरो से लेता था। 

 

बलबन ने अत्यंत साहस पूवर्क चालीसा दल का अंत किया ।  

मंगोलों से मुकाबला करने के लिए बलबन ने एक सैन्य विभाग दीवान – ए – अर्ज  की स्थापना की थी, बलबन ने अपने सेना मंत्री ( दीवान – ए – अर्ज ) इमाद -उल -मुल्क को बनाया था , जो अत्यंत ईमानदार और परिश्रमी व्यक्ति था।  बलबन ने उसे वजीर के आर्थिक नियंत्रण से मुक्त रखा ताकि उसे धन की कमी न हो। इसने मंगोल से रक्षा हेतु सीमा को किला बंदी किया। सीमा पर स्थायी  तथा अपने पुत्र शहजादा मुहम्मद एवं बुगरा खान को सीमा रक्षा का भर सौंपा । 

 

1285 ई. में जब सीमा पर तैमूर खां नामक मंगोल का भीषण आक्रमण हुआ, तो इस युद्ध में शहजादा मुहम्मद मारा गया। 

 

 

बलबन के मृत्यु और उत्तराधिकारी

 

पुत्र शोक के कारण 1286 ई.  में बलबन की भी मृत्यु हो गई।  इसकी मृत्यु पर जैसा कि बलबन के खुद घोषणा कर रखी थी, बुगरा खां को इसका उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया गया।  परन्तु वह बंगाल में ही विलासी जीवन व्यतीत करना चाहा फलस्वरूप बलबन के पौत्र कैख़ुसरो को उत्तराधिकारी  बनाया गया।  इसके सुलतान बनाने के बाद पुनः सलतनत युग में अमीरों का हस्तक्षेप बढ़ा और ऐसी हालत में दिल्ली के कोतवाल फखरुद्दीन मुहम्मद ने कैकुवाद को सुलतान घोषित किया। 

 

इसके शासन काल के समस्त शक्ति निजामुद्दीन, जो दिल्ली कोतवाल बेटा था, के हाथों में चली गई परन्तु कैकुबाद बुगरा खां के सलाह पर निजामुद्दीन हत्या करवाता है तथा समाना ( राजस्थान )के इक्तादार मालिक फिरोज को दिल्ली बुलाता है तथा अपना आरिज -ए – मुमालिक नियुक्त करता है तथा मालिक फिरोज को शाइस्ता खां की उपाधि देता है, परन्तु जल्द ही कैकूबाद  दरबार  गुटबाजी आरंभ होता है, जिसके परिणामस्वरुप मलिक कच्छन तथा एतमार सूखा ने क्यूमर्स को गद्दी पर बिठाया। 

 

 

बाद में फिरोज खिलजी के एक गुट  विरोहियों की हत्या कर दी तथा क्यूमर्स को उठाकर खिलखोरी ले गये।  जहाँ वह 3 महीने तक शासक रहा बाद में मालिक फिरोज ने क्यूमर्स हत्या क्र दी तथा खुद गद्द्दी पर बैठ गया तथा खिलजी वंश की स्थापना हमें देखने को मिलती है और इसके साथ ही जल्लालुद्दीन फिरोज खिलजी ने अपना शासन को स्थापित किया। 

 

 

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