भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965 में दोनों देशों के बीच एक महत्वपूर्ण सशस्त्र संघर्ष था। यह युद्ध 1965 में अप्रैल से सितंबर के बीच हुआ और इसमें कई महत्त्वपूर्ण घटनाएँ शामिल हैं:
पृष्ठभूमि
भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 में विभाजन के बाद से ही कश्मीर को लेकर विवाद बना हुआ था। 1965 का युद्ध इसी विवाद का परिणाम था, जिसमें दोनों देश कश्मीर पर अपने-अपने अधिकार का दावा कर रहे थे।
मुख्य घटनाएँ
- ऑपरेशन जिब्राल्टर (Operation Gibraltar): पाकिस्तान ने इस ऑपरेशन के तहत कश्मीर में घुसपैठियों को भेजा ताकि वहाँ विद्रोह कराया जा सके और भारत पर कश्मीर में नियंत्रण ढीला करने का दबाव डाला जा सके। इस ऑपरेशन के बाद संघर्ष की शुरुआत हुई।
- ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम (Operation Grand Slam): पाकिस्तान ने 1 सितंबर 1965 को जम्मू-कश्मीर के अखनूर सेक्टर पर हमला किया। इसका उद्देश्य अखनूर पर कब्जा कर भारतीय सेना की आपूर्ति लाइनों को काट देना था।
- भारतीय जवाबी हमला: भारत ने पाकिस्तान के इस हमले का जवाब पंजाब और राजस्थान की सीमा पर हमला करके दिया। भारतीय सेना ने लाहौर और सियालकोट की ओर कूच किया और कई क्षेत्रों में बढ़त हासिल की।
- टैंकों की लड़ाई: इस युद्ध में टैंकों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हुआ। खासतौर पर असल उत्तर और फिल्लौरा की लड़ाइयों में टैंकों का महत्त्वपूर्ण योगदान था।
- हवाई संघर्ष: हवाई क्षेत्र में भी दोनों देशों की वायु सेनाओं के बीच लड़ाइयाँ हुईं। भारतीय वायुसेना ने कई महत्त्वपूर्ण मिशन अंजाम दिए।
युद्धविराम और ताशकंद समझौता
22 सितंबर 1965 को संयुक्त राष्ट्र के हस्तक्षेप के बाद युद्धविराम हुआ। जनवरी 1966 में सोवियत संघ की मध्यस्थता में भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच ताशकंद समझौता हुआ। इस समझौते में दोनों पक्षों ने युद्ध से पहले की स्थिति को बहाल करने पर सहमति जताई।
युद्ध के बाद के परिणाम:
- सैन्य और राजनीतिक नुकसान: 1965 के युद्ध ने दोनों देशों को सैन्य और आर्थिक नुकसान पहुंचाया। जबकि भारतीय सेना ने कई मोर्चों पर सफलता प्राप्त की, पाकिस्तान भी कई महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपनी स्थिति बनाए रखने में सफल रहा। युद्ध में कोई निर्णायक विजेता नहीं था।
- राष्ट्रीय भावना और सैन्य प्रतिष्ठा: भारत में, इस युद्ध को एक विजय के रूप में देखा गया, और भारतीय सेना की बहादुरी को पूरे देश में सराहा गया। पाकिस्तान में इस युद्ध को एक “नहीं जीती हुई” लड़ाई के रूप में देखा गया। पाकिस्तान की सेना और नेतृत्व को इस संघर्ष में बड़ी आलोचनाएँ झेलनी पड़ीं।
- कश्मीर विवाद का समाधान नहीं हुआ: युद्ध के बावजूद कश्मीर का विवाद बरकरार रहा। दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बढ़ा रहा और कश्मीर मुद्दे पर कोई स्थायी समाधान नहीं निकल सका।
युद्ध की शुरुआत:
- पाकिस्तानी आक्रमण: 1965 की गर्मियों में पाकिस्तान ने कश्मीर के नियंत्रण वाले क्षेत्रों में “ऑपरेशन जिब्राल्टर” नामक अभियान शुरू किया। पाकिस्तान ने कश्मीर के भारतीय-नियंत्रित हिस्सों में छद्म युद्ध (guerrilla warfare) को बढ़ावा देने के लिए आतंकवादी और पैरा-मिलिट्री बलों को भेजा। उनका उद्देश्य कश्मीर में विद्रोह भड़काना और भारतीय सेना को कमजोर करना था।
- भारतीय प्रतिक्रिया: पाकिस्तान के इस प्रयास के जवाब में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में सैन्य कार्रवाइयाँ शुरू कीं। अगस्त 1965 में पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर के अखनूर सेक्टर पर हमला किया। भारतीय सेना ने अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए प्रतिकार किया।
प्रमुख युद्ध क्षेत्र:
- जम्मू और कश्मीर: युद्ध की शुरुआत मुख्य रूप से कश्मीर के विभिन्न हिस्सों में हुई। पाकिस्तान ने जम्मू क्षेत्र में आक्रामक कार्रवाइयाँ कीं, और भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई की। भारतीय सेना ने अखनूर में पाकिस्तानी हमलों को रोकने के लिए अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ाया।
- पंजाब और राजस्थान: भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले पंजाब और राजस्थान में भी हमला किया। भारतीय सेना ने पाकिस्तान के लाहौर क्षेत्र की ओर बढ़ते हुए महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर कब्जा किया। पाकिस्तान ने भी भारतीय पंजाब में कुछ सीमावर्ती इलाकों में हमले किए थे, लेकिन भारत ने इन हमलों को तुरंत निष्फल कर दिया।
- सियालकोट और टैंकों की भूमिका: सियालकोट के निकट दोनों पक्षों के बीच एक निर्णायक टैंकों की लड़ाई हुई। इस क्षेत्र में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ शानदार प्रदर्शन किया। दोनों पक्षों ने टैंक युद्ध में भारी नुकसान उठाया, लेकिन भारतीय सेना ने अपने विरोधियों को खदेड़ा।
सैन्य रणनीति और तकनीकी पहलू:
- भारतीय सेना की सफलता: भारतीय सेना ने अपनी शानदार रणनीति और बेहतर उपकरणों का इस्तेमाल करते हुए पाकिस्तान के खिलाफ मजबूती से जवाब दिया। भारतीय वायुसेना, विशेष रूप से, इस युद्ध में सक्रिय रूप से शामिल हुई और पाकिस्तान के हवाई ठिकानों को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय वायुसेना के संचालन ने युद्ध में महत्वपूर्ण बढ़त दिलाई।
- पाकिस्तान की रणनीति: पाकिस्तान ने युद्ध के दौरान भारतीय सीमाओं के भीतर सीमित लक्ष्यों के लिए रणनीति बनाई थी। पाकिस्तान के आक्रमण का मुख्य उद्देश्य भारतीय सेना को कमजोर करना और जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण स्थापित करना था। हालांकि, पाकिस्तान अपने सैन्य उद्देश्यों को पूरा करने में सफल नहीं हो सका।
युद्ध का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव:
- संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप: इस युद्ध के दौरान, संयुक्त राष्ट्र ने कई बार हस्तक्षेप किया और संघर्ष विराम की अपील की। हालांकि, दोनों देशों ने तुरंत युद्धविराम पर सहमति नहीं दी थी, लेकिन अंततः 22 सितंबर 1965 को युद्धविराम समझौता हुआ।
- ताशकंद समझौता: युद्धविराम के बाद, 1966 में ताशकंद (उज़्बेकिस्तान, जो तब सोवियत संघ का हिस्सा था) में एक सम्मेलन आयोजित हुआ। इस सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने सोवियत संघ के प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर कुसिनेव और अन्य अंतरराष्ट्रीय नेताओं की मौजूदगी में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। ताशकंद समझौते के तहत दोनों देशों ने कश्मीर के बारे में कोई ठोस समझौता नहीं किया, लेकिन सीमा पर स्थिति बहाल करने की बात मानी गई।
- प्रधानमंत्री शास्त्री की मृत्यु: ताशकंद समझौते के बाद, 11 जनवरी 1966 को प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। उनके निधन से भारत में एक शोक की लहर दौड़ गई और इससे पाकिस्तान-भारत रिश्तों में एक नया मोड़ आया।
निष्कर्ष:
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965 ने दोनों देशों के बीच लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष की नींव रखी। यह युद्ध दोनों देशों के सैन्य बलों, रणनीतिक योजनाओं और अन्तर्राष्ट्रीय कूटनीति की परीक्षा था। हालांकि युद्ध की समाप्ति के बाद ताशकंद समझौते के तहत कुछ शांति की स्थिति बनी, लेकिन कश्मीर विवाद अब भी अनसुलझा था और यह दोनों देशों के रिश्तों पर गहरा प्रभाव डालता रहा।