खेड़ा सत्याग्रह 1918
खेड़ा सत्याग्रह की अगर बात की जाये तो यह 1918 के भीषण दुर्भिक्ष ( ऐसा समय जिसमें भिक्षा या भोजन बहुत कठिनता से मिले ) के कारण गुजरात के खेड़ा जिले में पूरी फसल बर्बाद हो गयी, जिससे वह की जनता की हालत बहोत ख़राब हो गई परन्तु सरकार के द्वारा रहम के वजह, सरकार द्वारा किसानों से मालगुजारी वसूली करने की प्रकिया जारी रखी। जिसके कारण वहाँ के जनता की हालत और दयनीय होती चली गई। बल्कि कर के नियम के अनुसार, यदि फसल का उत्पादन, कुल उत्पादन के एक – चौथाई से भी कम हो तो किसानों का राजस्व माफ़ कर दिया देना चाहिए, परन्तु सरकार ने ऐसा करने से मना कर दिया।
कारण
खेड़ा सत्याग्रह का मुख्य कारण 1918 में आई भयंकर बाढ़ और प्लेग महामारी थी, जिससे फसलें बर्बाद हो गईं और किसान भयंकर आर्थिक संकट में आ गए। इसके बावजूद, ब्रिटिश सरकार ने किसानों पर लगान (कर) माफ करने से इंकार कर दिया। इस अन्याय के विरोध में खेड़ा के किसानों ने महात्मा गांधी से सहायता की मांग की।
वही गुजरात में किसानों ने सभा को आयोजन किया था ताकि सरकार से राजस्व वर्ष मूल्यांकन लागू न करने की प्रार्थन के लिए प्रांत के सर्वोच्च शासकीय प्राधिकारियों के सम्मुख याचिक रखी। परन्तु सरकार के द्वारा किसी प्रकार की सहानुभुति नहीं दिखाई गई बल्कि कठोरता पूर्वक हिदायत दी गई की अगर करों का भुगतान न किया गया तो किसानों की संपत्ति जब्त कर ली जाएगी, फलस्वरूप गाँधी जी ने किसानों को राजस्व अदा न करने तथा सरकार के दमनकारी कानून के खिलाफ संघर्ष करने की प्रेरणा दी। जिसके चलते गाँधी जी ने खेड़ा के युवा अधिवक्ता वल्ल्भभाई पटेल, इंदुलाल याज्ञिक तथा कई अन्य युवाओं ने गांधीजी के साथ खेड़ा के गांवो का दौरा प्रारम्भ किया। इन्होंने किसानों को लगान न अदा करने की शपथ दिलायी। गांधीजी ने घोषणा की कि यदी सरकार गरीब किसानो का लगन माफ़ दे तो लगान सक्षम किसान अपनी स्वेच्छा से अपना लगान अदा कर देंगे। दूसरी और, सरकार ने लगन वसूलने के लिए दमन का सहारा लिया । काई जगहों पर किसानों की संपत्ति कुर्क (हथिया) ली गयी तथा उनके मवेशियों ( गाय/ पालतू जानवर ) को जब्त कर लिया गया। जिसके पश्चात्य अंततः आंदोलनकरियों के दवाब के कारण सरकार को अपना निर्णय बदलना पड़ा और सरकार ने किसानों के साथ एक समझौते किया। की एक वर्ष के लिए करो को माफ़ कर दिया गया और आगामी वर्षों के लिए करो के दर में कमी कर दी गयी, किसानों की उस जमींन को भी वापस कर दिया गया जो जब्त की गयी थी। खेड़ा के इस आंदोलन ने सफल होने के कारण किसानों के बीच एक नवीन जागरुकता का संचार किया और उनमें आत्मविश्वास बढ़ा की किसान अगर जागरूक नहीं हुए तो उनका देश सम्पूर्ण आजादी प्राप्त नहीं करेंगा और अन्याय और शोषण से मुक्त भी तब – तक नहीं होगा।
प्रमुख नेता
खेड़ा सत्याग्रह में महात्मा गांधी के साथ कई प्रमुख नेता और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी शामिल हुए, जिनमें मुख्य रूप से शामिल थे:
- सरदार वल्लभभाई पटेल
- इंदुलाल याज्ञनिक
- नरहरी पारिख
- शंकरलाल पारीख
घटनाक्रम और समझौता
खेड़ा सत्याग्रह की शुरुआत 22 मार्च 1918 को हुई। सत्याग्रह के तहत किसानों ने कर का भुगतान करने से इंकार कर दिया और अपने खेतों को छोड़ने का निर्णय लिया। गांधीजी ने “सत्य और अहिंसा” के सिद्धांत पर आधारित इस आंदोलन का नेतृत्व किया।
अंततः, ब्रिटिश सरकार ने किसानों की मांगों को स्वीकार किया और यह निर्णय लिया कि जिन किसानों की फसलें 25% या उससे कम हुई थीं, उन्हें कर में छूट दी जाएगी। यह समझौता सत्याग्रह की बड़ी सफलता थी।
प्रभाव और निष्कर्ष
खेड़ा सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ। इससे यह स्पष्ट हो गया कि अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से भी अन्याय का विरोध किया जा सकता है और इसमें सफलता प्राप्त की जा सकती है। इस आंदोलन ने भारतीय जनता में आत्मविश्वास और एकता का संचार किया और महात्मा गांधी की नेतृत्व क्षमता को भी सिद्ध किया। सरदार वल्लभभाई पटेल की भूमिका ने उन्हें एक प्रभावशाली नेता के रूप में उभारा और बाद में वे स्वतंत्र भारत के पहले उप प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बने।
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