पाबना विद्रोह 1873-1876 के बीच बंगाल के पाबना जिले (अब बांग्लादेश में) में हुआ एक किसान विद्रोह था। इस विद्रोह का मुख्य कारण जमींदारों द्वारा किसानों पर किए जा रहे अत्याचार और अन्यायपूर्ण भू-राजस्व व्यवस्था थी। जमींदार किसानों से मनमाने ढंग से लगान बढ़ा रहे थे और उन्हें बेदखल कर रहे थे। किसानों ने इसके विरोध में विद्रोह किया और संगठित होकर अपने अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। इस संघ के अधीन किसान संगठित हुए और उन्होंने ‘लगान – हड़ताल ‘ और बड़ी हुई दर पर लगान देनें से इनकार कर दिया।
प्रमुख कारण
- मनमाना भू–राजस्व: जमींदार किसानों से अत्यधिक लगान वसूलते थे, जो किसानों के लिए एक बड़ी आर्थिक समस्या बन गई थी।
- बेदखली: जमींदारों द्वारा किसानों को उनकी जमीन से बेदखल किया जा रहा था, जिससे उनकी आजीविका पर संकट आ गया।
- कानूनी अत्याचार: जमींदार अपने पक्ष में न्यायालय का उपयोग करके किसानों पर अत्याचार करते थे।
प्रमुख नेता
विद्रोह में प्रमुख रूप से किसान नेता शामिल थे, जो स्थानीय स्तर पर किसानों को संगठित कर रहे थे। इनमें से कुछ प्रमुख नाम निम्नलिखित हैं:
- महाराजा नन्दकुमार
- शीतल भट्टाचार्य
- कालीप्रसन्न घोष
किसने समर्थन किया? – बंगाल बुद्धिजीवियों आंदोलनकारियों भरपूर किया। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, आनन्द मोहन बोस और द्वारकानाथ गांगुली ने इंडियन एसोसिएसन के मंच आंदोलनकारियों की मांगो का समर्थन किया। बंकिमचंद्र चटर्जी ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया। राष्ट्रवादी अखबारों ने भी कारों की वृद्धि को अनुचित बताते हुए स्थायी रूप से लगान निर्धारण का सुझाव दिया। इस आंदोलन में भी
हिन्दू तथा मुसलमानों ने मिलकर संघर्ष किया यद्यपि अधिकांश किसान मुसलमान थे और अधिकांश जमींदार हिन्दू।
प्रभाव
- कानूनी सुधार: इस विद्रोह के कारण ब्रिटिश सरकार को जमींदारों के अत्याचारों पर ध्यान देना पड़ा और भूमि सुधार के लिए कुछ कदम उठाने पड़े।
- किसानों की जागरूकता: इस विद्रोह ने किसानों को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक किया और उन्हें संगठित होकर लड़ने की प्रेरणा दी।
- भूमि अधिनियम: इस विद्रोह के बाद, ब्रिटिश सरकार ने 1885 में बंगाल टेनेंसी एक्ट पास किया, जिसने किसानों के अधिकारों को कुछ हद तक सुरक्षित किया।
निष्कर्ष
पाबना विद्रोह ने बंगाल के किसानों के संघर्ष और साहस का प्रतीक बन गया। इसने ब्रिटिश शासन और जमींदारी प्रथा के खिलाफ किसानों की एकता और शक्ति को दिखाया। इस विद्रोह ने भविष्य में होने वाले किसान आंदोलनों को भी प्रेरित किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
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