प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मैसूर सुल्तान टिपू सुल्तान के बीच युद्ध हुआ था। यह युद्ध दो बार लड़ा गया – पहली बार 1767-1769 और 1780-1784 में।
प्रथम आंग्ल – मैसूर युद्ध अंग्रेजों और हैदर अली के मध्य हुआ था। निजाम, मराठे एवं अंग्रेज हैदर के विरुद्ध एक त्रिगुट संधि में सम्मिलित हुए। हैदर ने अपनी कूटनीतिक सूझ – बूझ से इस त्रिकुट संधि को भंग करने का प्रयास किया। उसने मराठों को धन देकर और निजाम को प्रदेश का प्रलोभन देकर अपनी और मिला लिया और फिर कर्नाटक पर आक्रमण किया। अंग्रेजों की प्रारंभिक सफलता के कारण निजाम पर आक्रमण किया। अंग्रेजों की प्रारंभिक सफलता के कारण निजाम पुनः अंग्रेजो की और चला गया। हैदर अली ने उत्साहपूर्वक लड़ते हुए 1768 ईस्वी में मंगलोर पर अधिकार कर लिया।
कारण
युद्ध के पीछे मुख्य कारण थे भारतीय इतिहास में सक्रिय रूप से शासित एक महत्वपूर्ण भू-भाग, मैसूर राज्य, के तेजस्वी और सशक्त शासक हैदर अली का आक्रमणवादी विस्तारवादी होना था। वह बहुत ही उच्च बुद्धिमान थे और उन्हें ब्रिटिश सत्ता का भय था। उन्होंने भीतर के कुछ क्षेत्रों में व्यापार की जरूरत को पूरा करने के लिए ब्रिटिश के साथ दोस्ती की कोशिश की थी, लेकिन यह संबंध बाद में खराब हो गए।
मद्रास एवं कर्नाटक के बीच मैसूर सिमा विवाद दक्षिण भारत अरकाट का क्षेत्र जिसको लेकर मराठों के साथ हैदर का युद्ध चलकर था जिसमे अंग्रेज हस्तक्षेप कर रहे थे। प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध में अंग्रेजो की तरफ से बम्बई से कर्नल वुड तथा मद्रास की तरफ से जोसेफ स्मिथ ने हैदर के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध की सबसे बड़ी विशेषता यह रही की हैदर अली ने मद्रास के क्षेत्र में अंग्रेज को न केवल पराजित किया। अपितु अंग्रेजों को मद्रास की संधि करने के लिए बाध्य किया। मार्च, 1769 ई. में उसकी सेनाएं मद्रास तक पहुंची थी। अंग्रेजों ने विवश होकर हैदर अली की शर्तो पर 4 अप्रैल, 1769 को ‘मद्रास की संधि ‘ की।
परिणाम
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769) भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मैसूर राज्य के बीच संघर्ष हुआ। यह युद्ध दक्षिण भारत के क्षेत्रीय राजनीति और सत्ता संघर्ष के संदर्भ में देखा जाता है। प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767-1769) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी, जिसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मैसूर सुल्तान टिपू सुल्तान के बीच युद्ध हुआ था। यह युद्ध दो बार लड़ा गया – पहली बार 1767-1769 और 1780-1784 में।
प्रथम आंग्ल – मैसूर युद्ध अंग्रेजों और हैदर अली के मध्य हुआ था। निजाम, मराठे एवं अंग्रेज हैदर के विरुद्ध एक त्रिगुट संधि में सम्मिलित हुए। हैदर ने अपनी कूटनीतिक सूझ – बूझ से इस त्रिकुट संधि को भंग करने का प्रयास किया। उसने मराठों को धन देकर और निजाम को प्रदेश का प्रलोभन देकर अपनी और मिला लिया और फिर कर्नाटक पर आक्रमण किया। अंग्रेजों की प्रारंभिक सफलता के कारण निजाम पर आक्रमण किया। अंग्रेजों की प्रारंभिक सफलता के कारण निजाम पुनः अंग्रेजो की और चला गया। हैदर अली ने उत्साहपूर्वक लड़ते हुए 1768 ईस्वी में मंगलोर पर अधिकार कर लिया।
युद्ध का पृष्ठभूमि
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का विस्तार:
18वीं सदी के मध्य में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय उपमहाद्वीप में अपना प्रभाव बढ़ाना शुरू कर दिया था। बंगाल में प्लासी और बक्सर की लड़ाइयों में जीत के बाद, कंपनी ने दक्षिण भारत की ओर ध्यान केंद्रित किया।
मैसूर राज्य का उत्थान:
मैसूर राज्य, हैदर अली के नेतृत्व में, दक्षिण भारत में एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभर रहा था। हैदर अली ने राज्य की सेना को मजबूत किया और पड़ोसी राज्यों के खिलाफ सफल सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया।
युद्ध के कारण
युद्ध के पीछे मुख्य कारण थे भारतीय इतिहास में सक्रिय रूप से शासित एक महत्वपूर्ण भू-भाग, मैसूर राज्य, के तेजस्वी और सशक्त शासक हैदर अली का आक्रमणवादी विस्तारवादी होना था। वह बहुत ही उच्च बुद्धिमान थे और उन्हें ब्रिटिश सत्ता का भय था। उन्होंने भीतर के कुछ क्षेत्रों में व्यापार की जरूरत को पूरा करने के लिए ब्रिटिश के साथ दोस्ती की कोशिश की थी, लेकिन यह संबंध बाद में खराब हो गए।
मद्रास एवं कर्नाटक के बीच मैसूर सिमा विवाद दक्षिण भारत अरकाट का क्षेत्र जिसको लेकर मराठों के साथ हैदर का युद्ध चलकर था जिसमे अंग्रेज हस्तक्षेप कर रहे थे। प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध में अंग्रेजो की तरफ से बम्बई से कर्नल वुड तथा मद्रास की तरफ से जोसेफ स्मिथ ने हैदर के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध की सबसे बड़ी विशेषता यह रही की हैदर अली ने मद्रास के क्षेत्र में अंग्रेज को न केवल पराजित किया। अपितु अंग्रेजों को मद्रास की संधि करने के लिए बाध्य किया। मार्च, 1769 ई. में उसकी सेनाएं मद्रास तक पहुंची थी। अंग्रेजों ने विवश होकर हैदर अली की शर्तो पर 4 अप्रैल, 1769 को ‘मद्रास की संधि ‘ की।
राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता:
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और हैदर अली के बीच बढ़ती राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने युद्ध की नींव रखी। कंपनी ने हैदर अली के विस्तारवादी नीतियों को एक खतरे के रूप में देखा।
क्षेत्रीय नियंत्रण:
दोनों पक्षों ने दक्षिण भारत में अपने-अपने क्षेत्रीय नियंत्रण को मजबूत करने की कोशिश की। इसमें प्रमुख क्षेत्र मद्रास (वर्तमान चेन्नई) और आसपास के क्षेत्र थे।
युद्ध के प्रमुख घटनाक्रम
प्रारंभिक टकराव:
1767 में, ब्रिटिश और हैदर अली की सेनाओं के बीच प्रारंभिक टकराव हुए। हैदर अली ने अपनी रणनीतिक चालाकी और युद्ध कौशल का परिचय दिया और कई प्रारंभिक संघर्षों में ब्रिटिश सेनाओं को पराजित किया।
रणनीतिक गठबंधन:
हैदर अली ने निजाम हैदराबाद और मराठों के साथ गठबंधन किया, जिससे ब्रिटिश सेनाओं पर दबाव बढ़ गया।
मद्रास की घेराबंदी:
हैदर अली ने मद्रास (चेन्नई) की घेराबंदी की, जिससे ब्रिटिश प्रशासनिक केंद्र पर सीधा खतरा मंडराने लगा।
युद्ध का परिणाम
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध के परिणामस्वरूप, हैदर अली के साम्राज्य को विस्तारित करने की योजना ब्रिटिश सेना के जरिए रुक गई। हालांकि, यह युद्ध बाद में अधिक विस्तृत युद्ध की भूमिका निभाने वाले दूसरे आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-1784) की तैयारी का एक पहला अध्याय था, जिसमें युद्ध के दौरान टिपू सुल्तान ने ब्रिटिश सेना के खिलाफ दृढता से लड़ते हुए अपनी शासनकाल को चुनौती दी।
यह युद्ध ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और मैसूर सुल्तानी साम्राज्य के बीच राजनीतिक और सामर्थ्यिक संघर्ष का परिणाम था और बाद में आने वाले घटनाओं को प्रभावित करता रहा।
मद्रास की संधि:
युद्ध का अंत 1769 में मद्रास की संधि के साथ हुआ। इस संधि के तहत, दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के क्षेत्रों को मान्यता दी और कैदियों की अदला-बदली की।
अस्थायी शांति:
संधि के बावजूद, यह शांति अस्थायी साबित हुई और आने वाले वर्षों में ब्रिटिश और मैसूर के बीच और अधिक संघर्ष हुए।
युद्ध का प्रभाव
शक्ति संतुलन:
यह युद्ध दक्षिण भारत में शक्ति संतुलन को स्पष्ट रूप से बदलने में असफल रहा, लेकिन इसने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और भारतीय राज्यों के बीच भविष्य के संघर्षों की नींव रखी।
राजनीतिक जागरूकता:
यह युद्ध भारतीय शासकों में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की बढ़ती शक्ति के प्रति राजनीतिक जागरूकता और सावधानी बढ़ाने का कारण बना।
प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध ने दक्षिण भारत के राजनीतिक और सैन्य इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ प्रस्तुत किया और भविष्य के संघर्षों के लिए मार्ग प्रशस्त किया।
नील विद्रोह क्या है? और यह विद्रोह किस – किस क्षेत्र में हुआ था?