सम्प्रदायिक पंचाट
साम्प्रदायिक पंचाट/पूना पेक्ट -1932 एक ऐसी विषय है जिसमें हमें दलितों के पृथक निर्वाचन या उनके लिया सोची गयी पहली विचार दिखाई देती है, जिसके अंतर्गत दलितों के लिए एक पृथक निर्वाचन मंडल या क्षेत्र की माँग की जा रही थी। साम्प्रदायिक पंचायत भारत संवैधानिक इतिहास में सबसे घातक या कहे तो भारत को आपस में विभाजित करने का सबसे बड़ा घातक सिद्ध हुआ। इसके द्वारा हरिजनों को हिन्दुओ से अलग करने की कोशिश की गई। इसमें हिन्दुओं साथ न्याय नहीं किया गया। जिन प्रांतों में हिन्टूअल्पसंख्या में थे,वहाँ हिन्दुओं को वही रियायतें नहीं दी गई, परन्तु जहाँ मुसमलानों को रियायतें दी गयी वह वो अल्प संख्यक थे।
साम्प्रदायिक पंचाट
ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने अगस्त 1932 में “साम्प्रदायिक पंचाट” (Communal Award) की घोषणा की। इस पंचाट के तहत, ब्रिटिश सरकार ने भारतीय निर्वाचन प्रणाली में अलग-अलग समुदायों के लिए अलग-अलग निर्वाचक मंडलों की व्यवस्था की थी। इसमें दलितों (तब “अछूत” या “डिप्रेस्ड क्लासेज़” कहे जाने वाले) के लिए भी अलग निर्वाचन मंडल की व्यवस्था शामिल थी।
दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल:
महात्मा गांधी ने इस व्यवस्था का विरोध किया, क्योंकि वे इसे हिंदू समाज की एकता के लिए खतरा मानते थे। उन्होंने दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल को भारतीय समाज के लिए विभाजनकारी बताया। गांधीजी ने इसके विरोध में यरवदा जेल में अनशन शुरू कर दिया।
पूना पेक्ट -1932
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भीमराव अम्बेडकर दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मण्डल की मांग की, जिसे गाँधी ने अस्वीकार कर दिया। दूसरा गोलमेज सम्मलेन साम्प्रदायिक समस्या पर विवाद के कारण पूरी तरह असफल रहा।
- 1 दिसम्बर,1931 को इस गतिरोध के कारण यह सम्मेलन समाप्त हो गया।
- 16 अगस्त 1932 को रैम्से मेक्डोनाल्ड ने साम्प्रदायिक एवार्ड की घोषणा की।
- इसमें दलितों और मुसलमानों को पृथक निर्वाचन मण्डल का प्रावधान था।
पूना पैक्ट
डॉ. भीमराव अंबेडकर की भूमिका:
डॉ. भीमराव अंबेडकर, जो दलित समुदाय के प्रमुख नेता थे, ने प्रारंभ में साम्प्रदायिक पंचाट का समर्थन किया था, क्योंकि इसे दलितों के राजनीतिक अधिकारों को सुरक्षित करने का एक तरीका माना जा रहा था। लेकिन गांधीजी के अनशन के कारण उन्होंने पुनर्विचार किया और बातचीत के लिए तैयार हुए।
समझौते की शर्तें:
24 सितंबर 1932 को पूना के यरवदा जेल में गांधीजी और डॉ. अंबेडकर के बीच एक समझौता हुआ, जिसे “पूना पैक्ट” कहा गया। इसके मुख्य बिंदु निम्नलिखित थे:
- आम निर्वाचन मंडल में आरक्षण: पृथक निर्वाचन मंडल के स्थान पर, दलितों के लिए सामान्य हिंदू निर्वाचन मंडलों में सीटों का आरक्षण किया गया। यह व्यवस्था प्रांतीय विधान सभाओं और केंद्रीय विधान सभा दोनों के लिए की गई।
- आरक्षित सीटों की संख्या: प्रांतीय विधान सभाओं में दलितों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 71 से बढ़ाकर 148 कर दी गई, और केंद्रीय विधान सभा में 18 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गईं।
- दोहरा वोटिंग अधिकार: दलितों को सामान्य निर्वाचन मंडल में अपने उम्मीदवार को चुनने के लिए दोहरे वोट का अधिकार दिया गया। वे पहले दलित उम्मीदवारों के लिए चुनाव करेंगे, फिर बाकी उम्मीदवारों के लिए।
प्रभाव
राजनीतिक प्रतिनिधित्व:
पूना पैक्ट ने दलितों के लिए राजनीतिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया, जो कि भारतीय राजनीति में उनकी भागीदारी के लिए महत्वपूर्ण था। इससे दलित समुदाय के नेताओं को विधायी निकायों में प्रवेश मिला और उन्होंने दलितों के अधिकारों के लिए आवाज उठाई।
सामाजिक एकता:
पूना पैक्ट ने हिंदू समाज में एकता बनाए रखने में मदद की, क्योंकि इसने गांधीजी के अनशन को समाप्त किया और दलितों के लिए एक साझा निर्वाचन प्रणाली की स्थापना की।
डॉ. अंबेडकर की निरंतरता:
डॉ. अंबेडकर ने भविष्य में भी दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखा। उन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें उन्होंने समानता, स्वतंत्रता, और न्याय के सिद्धांतों को शामिल किया।
पूना पैक्ट भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, जिसने दलित समुदाय के राजनीतिक अधिकारों और सामाजिक स्थिति को मजबूती प्रदान की।
गाँधी जी को सबसे अधिक दुःख दलित वर्गो के लिए सम्प्रदायिक पंचाट के स्थापना से हुआ। गाँधी इसके विरोध में 18 अगस्त 1932 को मेक्डोलैण्ड को एक पत्र लिखा की यदि 20 सितम्बर 1932 तक दलित वर्गो के पृथक निर्वाचन को नहीं समाप्त किया गया तो वे 20 सितम्बर 1932 की दोपहर से आमरण अनशन कर देंगे। दलितों को पृथक निर्वाचन मण्डल दिए जाने के विरोध में गाँधी जी ने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया।
मदन मोहन मालवीय, डॉ0 राजेंद्र प्रसाद, परुषोत्तम दास टण्डन, सी0 राज गोपालाचारी, आदि ने डॉ अम्बेडकर से विचार- विमर्श किया और गाँधी के उपवास के पांच दिन बाद अम्बेडकर और गाँधी के बिच 26 सितंबर 1932 को एक समझौते पर हस्ताक्षर हो गया, जिसे पूना समझौता या पूना पेक्ट कहा जाता है। गाँधी जी ने अपना अनशन 26 सितंबर को समाप्त कर दिया।
पूना पैक्ट के अनुसार दलितों के लिए पृथक निर्वाचन मंडल की व्यवस्था समाप्त कर दी गयी तथा क्रेन्द्रिय विधान मण्डलों में दलित वर्ग के लिए 71 सीटें 148 आरक्षित की गयी एवं उनके हितो की बात भी कही गयी।