Monday, December 23, 2024
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The Revolt of 1857/1857 ईस्वी के विद्रोह के स्वरुप की विवेचना करे। -learnindia24hours

Q. 1857  ईस्वी के विद्रोह के स्वरुप की विवेचना करे। 

 

ANS:- का स्वरुप 1857  की क्रान्ति  के स्वरुप निर्धारण के प्रश्न पर इतिहासकारों  में काफी मतभेत है।  इस सम्बन्ध में निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये गए है

 सैनिक विद्रोह :- सर जॉन लोरेंस के पथनानुसार 1857 की क्रांति महज सैनिक विद्रोह था और इसका कारण चर्बीवाले कारतूस थे।  प्रो पी  राबटर्स  तथा सीले  ने भी इसे  सैनिक विद्रोह या ग़दर मात्र ही माना  है टामसन तथा गैरेन्ट ने भी इसे संगठित राष्ट्रीय आंदोलन मानने  से इंकार किया है।  इस विद्वानों का विचार है कि 1857 की क्रान्ति  सिपाही विद्रोह मात्र ही था।  अपने मत पुष्टि करते हुए उन्होंने यह तर्क पेश किया है कि  योग्य नेतृत्व एवं जनता के असहयोग के कारण 1857 की क्रान्ति  जनक्रांति बन सकी।  यह महज भारतीय सिपाहियों का विद्रोह था , जिसमे कंपनी  से असंतुष्ट कुछ देशी नरेश मिले थे जिन्होंने विद्रोह को और  भी प्रज्ज्वलित किया। 

 

2 . सामन्तवादी 
प्रतिक्रिया :- कुछ इतिहासकारो ने 1857  की क्रांति को सामंतवादी प्रतिक्रिया :- बतलाया है।  उनके अनुसार, डलहौजी की सामाराज्यवादी  निति से अनेक देशी राजाओं  को अपनी रियासत और विशेषाधिकारों का परित्याग करना पड़ा था। अतएव इससे उनमे भयंकर असंतोष छा  गया।  उन्होंने अंग्रेजी से बदला लेने को ठान  लिया।  इसी समय उन्हें कारतूस वाली घटना का समाचार मिला। अंत इसी बहाने  उन्होंने विद्रोही सैनिकों  का साथ दिना  शुरू कर दिया।  यही कारण  था कि अवध के भूतपूर्व शासक अहमद यहया, नाना साहेब का भतीजा रावसाहेब एवं उसके साथ तांतिया टोपे तथा अजीमुल्ला खां, झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई,जगदीशपुर (शाहबाद ) के राजपूत सरदार बाबू कुंवर सिंह, जिनकी जमींदारी राजस्व बोर्ड के द्वारा अपह्त के ली गई थी तथा पदच्युत अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुर शाह से बड़ी क्षति  उठानी  पड़ी थी।  अंतः  1857  की क्रान्ति  को आंशिक रूप में सामंतवादी प्रतिक्रिया कहा  जा सकता है।

 

3.  मुस्लिम षड्यंत्र :- सर जेम्स ऑर्टम के दृष्टिकोण से यह आंदोलन भारतीय मुसलमानों  का षड्यंत्र था।  अंग्रेजो का भारत में पदापर्ण होने से सबसे अधिक हानि मुसलमानों  को ही हुई था उन्होंने उसे राजनितिक सत्ता छीन ली थी।  अंग्रजो भारत में सर्वोच्च सत्ता प्राप्त कर चुके थे एवं मुग़ल सम्राट बहादुरशाह के नेतृत्व में अपनी खोई सत्ता को प्राप्त करना चाहते थे  अपने षड्यंत्र में उन्होंने अंग्रेजो से असंतुष्ट हिन्दू नरेशों एवं पदाधिकारियों को अपनी और मिला लिया था। किन्तु 1857 की क्रान्ति को एकमुस्लिम षड्यंत्र ‘  मानना ठीक नहीं।  इस क्रान्ति में देश के एकतिहाई मुसलमानो ही भाग लिया था।  वास्तविकता तो यह है कि  झाँसी  की रानी, नाना साहिब, कुंवर सिंह , अवध के तालुकेदारों आदि ने की क्रान्ति  का वास्तविक नेतृत्व अंतिम मुग़ल सम्राट बहादुरशाह ने किया और उसे क्षणिक ही सही किन्तु आशातीत सफलता भी मिली।  किन्तु  अंग्रेजो ने उसे शीघ्र ही पकड़कर रंगून भेज दिया।  वस्तुतः क्रान्ति  का सम्बन्द किसी सम्प्रदाय विशेष से था , वॉरन यह हिन्दुओ तथा मुसलमानो का अंग्रजों  के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्च था। 

 

4.  राष्ट्रिय आंदोलन :- आधुनिक इतिहासकारों  ने 1857  की क्रान्ति  को राष्ट्रिय आंदोलन की संज्ञा दी है।  उनके मतानुसार भले ही यह एक सुनियोजित राष्ट्रिय आंदोलन की संज्ञा दी है।  उनके मतानुसार भले ही यह एक सुनियोजित राष्ट्रिय संग्राम हो किन्तु अपने उदेश्यों , कार्यो एवं परिणामों में राष्ट्रिय  संग्राम हो किन्तु अपने उदेश्यों , कार्यों  एवं परिणामों  में राष्ट्रिय संग्राम के निकट ही था।  यह कराने के लिए हिन्दुओं एवं मुसलमानों  ने  अंग्रेजो से मोर्चा लिया।  इस संयुक्त उपद्रव ने विद्रोह का राजनितिक रूप उस समय धारण क्र लिया जा मेरठ के विद्रोहियों ने मुग़ल सम्राट बहादुरशाह के नेतृत्व में क्रान्ति  का संचालन करना मान लिया।  अवध में यह विद्रोह एक राष्ट्रिय युद्ध  का रूप ले चूका था।  सेठसाहूकारों एवं धनियो ने आरम्भ में क्रांतिकारियों को बड़ी आर्थिक सहायता की भारतीय जनता ने भी यथासंभव  क्रांति में भाग लिया।  सभी दिल से यही चाहते थे की देश में अंग्रेजी शासन का अंत हो जाय।  1857 का विद्रोह जिस तेजी के साथ फैला  उससे यही निष्कर्ष निकलता है की क्रांति में जनता सक्रिय थी।  वह सैनिकों  एवं सामन्तो  की तरह अपने निजी ब्लॉक को अपनी सेना के साथ एक नदी पार करनी थी तो किसी नाविक ने उसे नाव नहीं दी।  इसी तरह कानपुर के मजदुर ने अंग्रेजों  के लिये काम करना बंद कर दिया। 

 

 उपर्युक्त दृष्टान्त  यह स्पष्ट करते है कि 1857 की क्रांति की पीछे जनता भी सक्रिय थी।  अन्तः  आंशिक रूप में इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम इसलिये नहीं कह सकते क्योकि इस समय भारतीयों में राष्ट्रिय भावना विशेष रूप से विकसित हो सकी थी।  क्रांति का स्वरुप प्रायः आरंभ  से अंत तक सामंतवादी रहा।  किन्तु हमे यह नहीं भूलना चाहिए की वह  युग ही सामन्ती  था और सामन्त  सरदार ही उस समय के समाज के नेता थे।  फिर भी नि : संकोच यह कहा  जा सकता है की भारतीय स्वतंत्रता के प्राप्त करने का यह प्रथम सशस्त्र संग्राम था। 

 

 

5.  मध्यम मार्ग:- अंत के निष्कर्ष के तोर पर यह कहा  जा सकता है  कि  1857  की क्रांति के स्वरुप के विषय में विद्वानों के जो विचार है वे परस्पर विरोधी होते हुए भी सवर्था असत्य प्रतीत नहीं होते।  तो इसे हम कोरा सिपाही विद्रोह कह सकते है और एक सुनियोजित राष्ट्रीय आंदोलन और एक सामंतवादी प्रतिक्रिया और एक मुस्लिम षड्यंत्र ही।  क्रांति के स्वरुप निर्धारण में हम इसे एकस्वर्णिम मध्यम  मार्गी क्रांतिकह सकते है।  क्योंकि  क्रांति के स्वरुप निर्धारण में हम इसे एकस्वर्णिम मध्यम मार्गी क्रांतिकह सकते है।  क्योकि क्रांति के करने की विशद व्याख्या करने से यह स्पष्ट हो जाता है की क्रांतिकारियों के उदेश्यों  की विभिन्नता में भी एकता थी।  उनकी इस एकता का अर्थ था फिरंगियों का देश से निकलबहार करना।  इस पुनीत कार्य में जिस किसी ने जो भी योगदान दिया वह उस युग  के लिए अत्यन्त  ही श्लघनीय है। 

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https://www.learnindia24hours.com/2020/09/what-is-mahalwari-and-ryotwari-system.html        

महलवाड़ी व्यवस्था क्या है ?/ What is Mahalwari and Ryotwari system?————-

https://www.learnindia24hours.com/2020/09/what-is-mahalwari-and-ryotwari-system.html

रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है ?/What is Rayotwari System? ————————

https://www.learnindia24hours.com/2020/10/what-is-rayotwari-systemfor-exam.html 



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