भक्ति आंदोलन ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला, विशेष रूप से नारी की स्थिति पर। इस आंदोलन के दौरान संतों ने नारी को समानता, सम्मान और आध्यात्मिक स्वतंत्रता का संदेश दिया, जो उस समय के सामाजिक और धार्मिक मानदंडों के खिलाफ था।
मध्यकालीन भारत के इतिहास में भक्ति आंदोलन का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस आंदोलन ने केवल धार्मिक वरन सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों को भी व्यापक रूप से प्रभावित किया। भक्ति मार्ग के सन्तो ने भक्ति मार्ग पर बल दिया क्योकि मध्य काल से प्रभावित समाज में अनेको कुरीतियों , अंधविश्वासों एवं आडम्बरों का प्रवेश हो चुका था। भक्ति आंदोलन कोई सुनियोजित , सुव्यवस्थित एवं समयबद्ध आंदोलन नहीं था। इसमें समय – समय पर अनेकों सुधारक व संत जन्म लेते रहे। इन्ही सुधारको के सामूहिक प्रयत्नों को ‘ भक्ति – आंदोलन ‘ कहा गया। भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत अग्रलिखित थे – रामानुजाचार्य , गुरु रामानन्द , तुलसीदास , नामदेव , चैतन्य , बल्लभाचार्य , रैदास , मीरा , कबीर। गुरु नानक आदि। जिस काल में स्त्रियों व् शुद्रो को पूजा – पाठ का भी अधिकार नहीं था , संतो ने उन्हें समाज में सम्मानीय स्थान दिलाने का प्रयास किया। परिणामस्वरूप एक बड़ी संख्या में स्त्री – भक्तो का बार – बार उल्लेख हुआ है।
प्रमुख प्रभाव:
- समानता का संदेश:
- भक्ति संतों ने यह सिखाया कि ईश्वर की भक्ति के मार्ग में सभी समान हैं, चाहे वे किसी भी जाति, वर्ग या लिंग के हों। संत कबीर, मीराबाई, और गुरु नानक जैसे संतों ने नारी को भी भक्ति और ईश्वर की कृपा के योग्य माना।
- सशक्तिकरण:
- मीराबाई जैसी महिला संतों ने भक्ति मार्ग का अनुसरण कर यह सिद्ध किया कि महिलाएं भी आध्यात्मिक मार्ग पर चल सकती हैं और अपनी आवाज़ बुलंद कर सकती हैं। उन्होंने सामाजिक बंधनों को तोड़कर अपनी भक्ति की स्वतंत्रता का उद्घोष किया।
- सामाजिक सुधार:
- भक्ति आंदोलन ने सामाजिक सुधार का बीड़ा उठाया और नारी की स्थिति में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया। इस आंदोलन ने समाज में व्याप्त कुरीतियों, जैसे सती प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज़ उठाई।
- आर्थिक स्वतंत्रता:
- भक्ति संतों के समागम और संगठनों ने महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के लिए प्रेरित किया। इन संगठनों में महिलाएं भी महत्वपूर्ण भूमिकाओं में थीं और इससे उन्हें आर्थिक स्वतंत्रता मिली।
- शिक्षा और जागरूकता:
- भक्ति आंदोलन ने महिलाओं की शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा दिया। संतों ने शिक्षा का महत्व बताया और नारी शिक्षा की पहल की।
भक्ति आंदोलन का नारी – स्थित पर प्रभाव :-भक्ति आंदोलन ने सामाजिक समानता पर विशेष रूप से बल दिया। परिणामस्वरूप स्त्रियों की दशा में भी पर्याप्त सुधार आना स्वाभाविक था।
( i ) धार्मिक
अधिकार – भक्ति अंदोलन के परिणामस्वरूप स्त्रियों के लिए धर्म के द्वार खुल गए। अब स्त्रियों को भी पुरुषो के समान स्वतंत्रतापूर्वक भक्ति करने का अधिकार था। विधवाओं को भी धर्म सम्बन्धी अधिकार प्रदान किए गए इससे पूर्व वे बहिष्कृत जीवन व्यतीत करने के लिये विवश थी। स्त्री – सन्तो की परम्परा भी अस्तित्व में आई। इस महिला – सन्तो ने उच्च कोटि के साहित्य का भी सृजन किया।
( ii ) सामाजिक
अधिकार – सुधार आंदोलन के परिणामस्वरूप स्त्रियों को व्यापक सामाजिक अधिकार भी प्राप्त हुए। नानक
अपरदास ने पर्दे की प्रथा का पुर्ण – सुपर्ण उन्मूलन करने का प्रयास किया। स्त्रियाँ सार्वजनिक कार्यकर्मो में एक बड़ी संख्या में भाग लेने लगी। धार्मिक कृत्यों में सम्मिलित होने के लिए उन्हें अब घर से बाहर जाने की भी स्वतंत्रता थी। कतिपय सन्त अपनी कीर्तन मण्डली के साथ गली – गली घूमते थे तथा उनके अनुयायियों में पुरुषों के समान स्त्रियाँ भी समान रूप से सम्मिलित थी। अतः स्त्रियाँ भक्त रूप में स्वतंत्र रूप से विचरण करने लगी। ऐसे में पर्दा – प्रथा के अस्तित्व का तो कोई प्रश्न ही नहीं था। सन्यास लेने से पूर्व पत्नी की सहमति प्राप्त करना आवश्यक था। ज्ञानदेव के पिता ने पत्नी की सम्मति के बिना सन्यास लिया अतः उन्हें पुनः गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना पढ़ा।
भक्ति आंदोलन के परिणामस्वरूप स्त्रियों को व्यापक अधिकार प्राप्त हुए। उन्हें भी पीटीआई के साथ गृहस्थाश्रम त्यागने का पूर्ण अधिकार है। इस प्रकार मोक्ष – प्राप्ति में वह पीटीआई की सहधर्मिणी थी। उदाहरणार्थ दीदा नामक राजा ने अपनी छोटी रानी के साथ सन्यास लिया था।
भक्ति – आंदोलन के सन्तो ने मातृभाषा को प्रचार का माध्यम बनाया। साथ ही देवताओं के साथ – साथ विभिन्न देवियो की पूजा भी प्रारंभ हुई। श्री नारायण – लक्ष्मी एवं राधा – कृष्ण की भक्ति का प्रचार हुआ। इस वातावरण से भी स्त्रियों के महत्व में वृद्धि हुई। इस प्रकार भक्ति आंदोलन ने स्त्रियों को नवजीवन प्रदान किया।
निष्कर्ष:
भक्ति आंदोलन ने नारी की स्थिति पर सकारात्मक प्रभाव डाला। इसने नारी को आध्यात्मिक और सामाजिक स्वतंत्रता की दिशा में प्रेरित किया, जिससे उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता मिली और समाज में उनकी स्थिति में सुधार हुआ।
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