Q. मराठों के पतन के क्या कारण थे ?
ANS:- 17 वी शताब्दी के अंतिम चरण से ही मराठों ने भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पतनोन्मुख मुग़ल साम्राज्य के भग्नावशेषों पर अपनी शक्ति संगठित कर वे शीघ्र ही भारत की महत्वपूर्ण राजनितिक इकाई बन गए। उनलोगों ने मुगलो को अपदस्थ कर ‘हिन्दू पद्पादशाही‘ की भी स्थापना करने की चेष्टा की, परन्तु पानीपत के तृतीय युद्ध में उनकी करारी हार ने उनके स्वप्नो को चकनाचूर कर दिया। फिर भी, मराठे हताश नहीं हुए। उन्होंने पुनः अपने – आपको संगठित क्र अंग्रेजो साम्रज्य के विस्तार को रोकने का प्रयास किया, लेकिन इस प्रयास में भी वे असफल रहे। मराठों की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित है
मराठा सरदारों का असंगठित होना :- मराठों के पतन का सबसे प्रमुख कारन मराठा मंडल के सदस्य होल्कर, सिंधिया, भोसले और गायक वाड यधपि पेशवा को अपना प्रमुख मानते थे और मराठा साम्राज्य की सुरक्षा के लिए प्रतिज्ञाबद्ध थे यद्यपि मौका पड़ने पर इनलोगो ने साम्राज्य की रक्षा के बदले व्यक्तिगत हितों एवं स्वार्थो पर ही अधिक ध्यान दिया। प्रत्येक मराठा सरदार अपना प्रभाव क्षेत्र विस्तृत करने में ही लगा हुआ था, फलस्वरूप आपसी स्वार्थो की टकराहट होती थी। प्रत्येक मराठा सरदार पेशबा पर अपना अधिक से अधिक प्रभाव बनाए रखना चाहता था। पेशवा भी एक सरदार के विरुद्ध दूसरे को उकसाया करता था। परिणामस्वरुप , वैमनस्य एवं फुट का वातावरण व्याप्त था। अंग्रेजों ने इस फुट का लाभ उठाकर अपना हिट साधा एवं मराठा शक्ति को चकनाचूर क्र नेस्तनाबूत कर दिया।
प्रशासनिक दुर्व्यवस्था :- मराठों के पतन का दूसरा प्रमुख कारण उनकी प्रशासनिक दुर्बलता थी। शिवजी ने एक सिदृद प्रशासनिक व्यवस्था की नीव डाली थी, पर उनके अयोग्य उत्तराधिकारी एक व्यवस्था को न तो बनाए रख सके और स्वयं ही कोई दूसरी व्यवस्था कायम क्र सके। उनका शासन – व्यवस्था, शांति– सुरक्षा, औधोगिक एवं व्यापारिक विकास की तरफ करते आवश्यक ध्यान ही नहीं दे पाए। जनता का शासन से कोई सम्बन्ध नहीं था। नागरिकों का जीवन भी असुरक्षित था आर्थिक कमजोरी के चलते वे हमेशा ही उचित – अनुचित तरीके से धन इकट्ठा करते थे। इस प्रक्रिया में जनता पर अत्याचार भी होते थे। फलतः सरकार को विपत्ति के समय न तो जनसमर्थन प्राप्त हो सका और न ही प्रशासनिक सहायता ही मिल सकी।
योग्य नेताओं का अभाव :- प्रारंभ में मराठो के बिच अनेक साहसी एवं प्रतिभा सम्पन्न नेता हुए जिन्होंने मराठा – शक्ति के उत्थान में अद्भुत योगदान किया। उनलोगो ने मराठो में राष्ट्रीयता की भावना जागकर उन्हने संगठित किया। मराठा शक्ति में बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बालाजी बाजीराव जैसे योग्य पेशवा , मल्हार राव होल्कर, सदाशिव राव भाउ , महादजी सिंधिया, अहिल्याबाई होल्कर, नाना फड़नवीस जैसे योग्य नेताओ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पानीपत के तृतीय युद्ध के पश्चात्य मराठों में योग्य नृत्व का अभाव हो गया। नाना फडनवीस ने मराठों की एकता बनाए रखने का प्रयास किया, परन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात्य न तो पेशवा और न मराठा सरदार ही मराठों की एकता बनाए रख सके। आपसी सवार्थो की टकराहट एवं प्रतिद्वदिता ने उन्हों अपने दुश्मन से मदद लेने को भी बाध्य किया। ऐसी स्तिथि में संगठित होकर वे अंग्रेजो का मुकाबला नहीं कर पाए। अंग्रेजो ने उनकी इस फुट का लाभ उठाया।
उच्च आदर्शों का परित्याग :- शिवजी ने चारित्रिक दल, साहस, स्याम, कर्मठता इत्यादि के आधार पर महाराष्ट्र के लोगो को एक रास्त और मरता जाती के रूप में संगठित किया था। उनके आदर्श अत्यंत ही उच्च थे और वे उसका पालन ईमानदारी से करते थे। दुर्भाग्यवश बाद के मराठा सरदार इन आदर्शो को छोड़कर भोग – विलास, षड्यंत्र और स्वार्थो में डूब गए। इसका बुरा प्रभाव जनसाधारण पर भी पड़ा। प्रशसनिक व्यवस्था ढीली पड़ जाने से जनता को अत्याचारों और मुसीबतो का सामना करना पड़ा। फलतः जनता उदासीन और निष्क्रिय हो गई। कोई भी राष्ट्र जनसमर्थन के अभाव में नहीं टिक सकता है। यही बात मराठों के साथ भी हुई।
देशी शक्तियों के सहयोग अभाव :- मराठो की निति के चलते उन्हों तत्कालीन देशी शक्तियों का मुसीबत के समय सहयोग नहीं मिल सका। मराठों ने मैसूर के शसको ( हैदरअली और टीपू ) एवं हैदराबाद के निजाम को आवश्यकता पड़ने पर मदद नहीं देकर भरी भूल की। अगर, मराठों ने इन्हे सहायता दी होती तो सम्भवतः आंग्ल – मराठा यद्ध के समय मैसूर के शसकों एवं निजाम ने मराठो का भी साथ दीया होता। वैसी स्तिथि में अंग्रेजों की हालत पतली हो गई होती। परन्तु , मराठों की अदूरदर्शिता एवं नासमझी ने उन्हें देशी शक्तियों के सहयोग से वंचित रखा। फ्रांसीसियों की भी मदद मराठे प्राप्त करने में असफल रहे। ऐसी स्तिथि में अंग्रेजो के समक्ष उनका टिकना असंभव ही था।
राजपूत रियासतों के साथ शत्रुता :- राजपूत 18 वी शताब्दी में भी भारतीय राजनीती की एक प्रमुख शक्ति थे। प्रारंभिक मराठा शासको ने उनके महत्व को समझकर उन्हें सदैव अपना मित्र बनाए रखा था। लेकिन बालाजी विस्वनाथ के समय से इस निति में परिवर्तन आ गया मराठा सरदारों ने राजपूत राज्यों को जी भरकर लुटा – खसोटा भी गया। फलतः राजपूत भी मराठो के दुश्मन बन बैठे। वे मराठो को सहयोग नहीं दे सके बल्कि उल्टे उनके विरुध्द अंग्रेजो की ही सहायता की।
सैनिक दुर्बलता :- मराठों के पतन के लिए उन्ही दोषपूर्ण सैन व्यवस्था भी उत्तरदायी थी। मराठो ने छापामार रणनीति को छोड़कर यरोपीय पद्द्ति अपना तो ली थी, परन्तु इसमें वे अभी दक्ष नहीं हो सके थे। उनके अस्त्र –शस्त्र एवं युद्ध – निति अंग्रेजों के मुकाबले कमजोर पड़ गई। यद्यपि , फ्रांसीसियों नव उनकी सेना को आधुनिक स्वरुप देने का प्रयास किया था, तथापि उनमे अब तक भी पूर्णता नहीं आ गई थी। मराठो ने समुद्री बेड़े के विकास में भी त्तपरता नहीं दिखाई थी। फलस्वरूप, वे युद्द में अंग्रेजो के सामने टिक नहीं पाए।
गुप्तचर व्यवस्था का अभाव :- सैनिक दुर्बलता के साथ ही मराठों की गुप्तचर व्यवस्था भी कमजोर कमजोर थी। उन्हें अंग्रेजो की सैनिक कार्रवाइयों का पता नहीं लग पाता था। इसके विपरीत, अंग्रेज – मराठों की प्रत्येक सैनिक गतिविधि से यह तक की उनकी सेना की संख्या और अस्त्र – शस्त्र के विषय में भी पूरी जानकारी रखकर उसी अनुरूप योजनाएँ थे। ऐसी स्तिथि में मराठो की हार निश्चित थी।
दुर्बल अर्थव्यवस्था :- मराठा राज्यों की दुर्बलता का एक प्रधान कारण यह था कि मराठों ने अपनी अर्थव्यवस्था सिदृढ़ करने का उपाय कभी नहीं किया। उन्होंने कृषि उधोग य व्यापर के विकास की तरफ समुचित ध्यान नहीं दिया। फलतः राज्य के सामने सदैव आर्थिक कठिनाईयों बनी रही। उन्हें सदैव लूटपाट एवं जबरदस्ती वसूले गए करो पर ही आश्रित रहना पड़ा। परिणामस्वरूप एक तरफ तो वे लोगों की सहानुभूति एवं सद्धभावना खो बैठे तथा दुसरी तरफ धन की कमी से सेना और प्रशासन की समुचित व्यवस्था नहीं कर पाए।
अन्य कारण :- इनके अतिरिक्त अन्य कारणों ने भी मराठों के पतन में सहयोग दिए। उनके सामने अंग्रेजों की तरह साम्रज्य कायम करने का उदेश्य भी नहीं था। वे सुरक्षात्मक युद्ध ही लड़ रहे थे। उन्हें यथेष्ट भौगोलिक ज्ञान भी था. ऐसे परिस्थितियाँ उनके लिए जानलेवा सिद्ध हुई और शीघ्र ही वे पतन के गर्त में चले गए।
महलवाड़ी व्यवस्था क्या है ?/ What is Mahalwari and Ryotwari system?————-
रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या है ?/What is Rayotwari System? ————————