इमाद–उद–दीन मुहम्मद
बिन क़ासिम बिन युसुफ़
सकाफ़ी वो पहला अरबी और मुस्लिम था जिसने भारत पर अकर्मण किया। सिन्धपर मुहम्मद – बिन – कासिम के द्वारा आक्रमण भारतीय इतिहास की एक रोमांचक घटना है। मुहम्मद – बिन – कासिम एक कुशल सेनानायक, साहसी और जवान था। उसकी सैनिक शक्ति महान थी।उसकी सेना में 6000 सीरियन अश्वारोही , 6000 ऊँट और 3000 सामान ढोने वाले बारब्ली ऊँट थे। कुल मिलाकर सैनिक की संख्या पंद्रह हजार थी। मकरान पहुँची तो, वहाँ शासक मुहम्मद हारून ने उसे कुछ अपनी बेहतरीन सेना दी। इसके अलावे उसने पाँच बलिस्ते भी दी ये मशीनें तोप तरह थी और पत्थर फेंकती थी। प्रत्येक मशीन संचालित करने पाँच सौ व्यक्तियों जरूरत थी। आगे चलकर सिन्ध की सिमा समीप अब्दुल अस्वद जहाँ के नेतृत्व बहोत से अरब भी इस सेना में सम्मिलित हो गए। रास्ते साथ जाट एवं बौद्ध जातियों लोग भी मिल गये, क्योंकि राजा दाहिर सख्त वरोधी थे।
मोहम्मद कासिम
द्वारा किये
गए युद्ध
और विजय
:-
देवल का युद्ध :- 711 ईस्वी मुहम्मद – बिन – कासिम अपनी सेना के साथ मकरान से सिंध के प्रसिद्ध बंदरगाह देवल पहुंचा। देवल का शासक , जो राजा दाहिर का भतीजा था , केवल 4000 सैनिकों के साथ उसका मुकाबला करने के लिए निकला , परन्तु पराजित हुआ। अरबों बलिस्तो पत्थर फेकना शुरू किया। उसी समय देवल प्रसिद्ध मंदिर एक ब्राह्मण ने कासिम को यह सुचना दी की मंदिर पर लाल पताका जब तक फहराता रहेगा, तब तक नगर विजय असंभव है। सुचना का कासिम ने भरपूर लाभ उठाया झंडे को धराशयी दिया। इस घटना से देवल नगर के रक्षक सैनिक हतोत्साहित हो गए। कासिम ने नगर प्रवेश क्र कत्लेआम शुरू किया; लूट – पाट का बाजार गर्म हो गया। तीन दिनों तक यह स्तिथि बनी रही। शायद सत्रह साल से ऊपर के सभी स्त्री एवं पुरुषों को मौत का घाट उतार दिया गया। लोगो को जबरन इस्लाम धर्म को अंगीकार करने के लिए कहा गया। उन्हें गुलाम बना लिया गया। इस घटना की सुचना कासिम ने हज्जाज को देते हुए लिखा – “राजा दाहिर के भतीजे, उसके योद्धाओ एवं प्रमुख अधिकारियों को आपके पास भेज दिया गया है और काफिरों को इस्लाम में दीक्षित कर लिया गया है या मार दिए गया है। मूर्ति पूजा के लिए बनाये गए मंदिरों के स्थान पर अब मस्जिदें बना दी गयी है। अब उसमे निश्चित समय पर नमाज पढ़ी जा सकती है “देवल पर प्रभुत्व स्थपित क्र कासिम ने, जगार के रक्षार्थ छोड़कर, उसने निरुन की और प्रस्थान किया।
निरुन विजय ; देवल के बाद मुहममहद – बिन – कासिम ने हैदराबाद (जो अब पाकिस्तान में है ) के समीप स्थित निरुन दुर्ग पर अधिकार कर लिया। वह लगातार सात दिनों तक यात्रा करके निरुन पहुंचा था।दाहिर का लड़का जयसिंह ने उसके निरुन पहुंचने पर शहर छोड़ दिया।चूँकि यह शहर बौद्धों के हाथ में था, अन्तः कासिम ने बिना किसी प्रतिरोध के निरुन और अधिकार कायम कर लिया।
सेहवान ; निरुन से प्रस्थान कर कासिम सेहवान पहुंचा। सेहवान का शासक दाहिर का चचेरा भाई बझारा था। वह बड़ा भीरु था और उसने बिना युद्ध लड़े आत्मसमर्पण कर दिया। जगार के व्यापारी और पुरोहिरतो ने उसका साथ नहीं दिया फलतः उसे नगर छोरडकर भाग जाना पड़ा। अन्ततः जाट उसके समक्ष टिक नहीं सके और उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा।
सीसम : सेहवान में बौद्ध मठ पर अधिकार ज़माने के बाद कासिम ने जाटों की राजधानी सीसम की और प्रस्थान किया। यहाँ उसे जाटों के भीषण विरोध का सामना करना पड़ा।अन्ततः जाट उसके समक्ष टिक नहीं सके और उन्हें आत्मसमर्पण करना पड़ा।
रावर : मुहम्मद – बिन – कासिम का सबसे महान लक्ष्य सिंध के राजा दाहिर को शिकस्त देना था। दाहिर लेकर ब्राह्मणवाद में मोर्चा बंधे तैयार था। मौसम की खराबी के चलते कासिम को सीसम से निरुन वापस लौटना पड़ा। दाहिर के साथ प्रत्यक्ष संघर्ष सबसे बड़ी बाधा सिंधु नदी खड़ा कर रही थी। उसने सिंघु पार करने के लीए नौकाओं निर्माण करवाया तथा मोक़ाह नामक एक देशद्रोही सहायता से सिंधु नदी को पार करके राजा दाहिर पर आक्रमण कर दिया। राजा दाहिर इस अप्रत्याशित आक्रमण से विचलित हो गया।उसके होश गुम हो गए लेकिन युद्ध का अंतिम परिणाम कासिम के पक्ष में रहा। युद्ध में दाहिर ने वीरगति प्राप्त की। उसकी सेना में भगदड़ मच गई। उसकी पत्नी ने पन्द्रह हजार सैनिकों को लेकर आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन इससे कोई खास फायदा नहीं हुआ। लेकिन इससे कोई खास फायदा नहीं हुआ। किले एवं नगर में भयंकर रक्तपात हुए दाहिर का सारा खजाना लूट लिया गया।
ब्राह्मणवाद : रावर को अपने अधिकार में क्र लेने के बाद कासिम ब्राह्मणवाद की और बढ़ा। दाहिर के पुत्र के साथ जयसिंह ने उसका सामना बड़ी ही वीरता के साथ की, लेकिन जब उसने देखा कि कासिम की सेना के सामने उसका नहीं चलने वाला है, तो उसने चित्तूर में शरण लिया और ब्राह्मणवाद का प्रभाव कायम हो गया। अपार सम्पत्ति के साथ – साथ दाहिर की दूसरी पत्नी रानी लाडी और उसकी पुत्रियाँ सूर्य देवी और परमाला देवी बन्दी बना ली गयी कासिम के चरणों में डाल दी गयी। कासिम ने उन्हें उपहार के रूप में खलीफा की सेवी में भेजी दिया।
अरोर : अब कासिम अपना ध्यान अरोर की ओर लगाया, जहाँ दाहिर के कुछ सैनिक एकत्रित हो गये थे। वहाँ का शासक दाहिर का एक अन्य पुत्र था। उसने कासिम की सेना से टक्कर लेने की कोशिश की लेकिन, उसकी सेना कासिम की सेना के सामने बहुत से तक टिक नहीं पायी। आरोर विजय ने पुरे सिन्ध पर अरबों का आधिपत्य स्थापित कर दिया।
मुल्तान : मुल्तान सिन्ध के ऊपरी भाग है एक प्रमुख नगर था। इस पर आक्रमण करने एवं अपना अधिपत्य कायम करने कासिम व्यग्र था। रास्ते में आने प्रतिकूल शक्तियों का वीरतापूर्वक सामना करते हुए, वह मुल्तान के द्वार पर जा धमका। मुल्तान के एक देशद्रोही ने उसकी मदद की। मुल्तान के किले में एक जलधारा जाती थी, इसका राज कासिम को मालूम हो गया। लसीम ने इस जलधारा के स्रोत को बन्द कर दिया और मुल्तान के सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए विवश कर दिया। उसके बाद वहाँ भीषण रक्तपात एवं लूटपाट का बाजार गर्म हो गया। अनेक स्त्रियों, बच्चों को गुलाम बना लिया गया लोगों को इस्लाम धर्म स्वीकार करने अन्यथा जजिया क्र देने को बाध्य किया गया। सिर्फ मुल्तान से ही कासिम को इतना धन – सम्पति की प्राप्ति हुई कि उसने इस नगर का नाम स्वर्णनगरी रख दिया। इस विजय ने उसके हिम्मत को और बढ़ा दिया वह अपने को सम्पूर्ण भारत का एकछत्र शसक बनने का ख्वाब देखने लगा। अपने इस स्वप्न को साकार करने के लीएभेजा। लेकिन इस अभियान के सफल होने से पूर्व हिकसिम को मौत का घाट उतार दिया गया और अरबों को सिंध एवं मुल्तान से संतोष कर लेना पड़ा।
मुहम्मद – बिन – कासिम की हत्या : मुहम्मद – बिन – कासिम के सम्बन्ध में कई कहानियां प्रचलित है। चचनामा और मीर मासूम के अनुसार दाहिर की पुत्रिया सूर्य देवी और परमला देवी को जब खलीफा की सेवा में प्रस्तुत किया गया तो, उन्होंने यह शिकायत की कि मुहम्मद – बिन – कासिम को बैल की कच्ची खाल में बन्द कर भेजने का आदेश दिया। आज्ञाकारी सेवक की तरह मुहम्मद – बिन – कासिम ने खलीफा की आज्ञा का अक्षरश: पालन किया और जब उसका शव खलीफा ने अपनी गलती का प्रतिशोध करने का उदेश्य से दाहिर की पुत्रियों को घोड़े की पूंछ से बांधकर उन्हें जान से मर डालने का आदेश दिया। यह रोमांचकारी कथा अविश्वसनीय – लगती है मुहम्मद – बिन – कासिम की मृत्यु राजनितिक कारणों से ज्यादा अनुप्रेरित थी। 715 ईस्वी में खलीफा वाहिद के निधन के पश्चात उसका भाई सुलेमान खलीफा बना। सुलेमान हज्जाज और उसके रिश्तेदारों से खफा था। मुहम्मद – बिन – कासिम हज्जाज का चचेरा भाई और दमाद था। हज्जाज की मृत्यु के पश्चात उसके सगे – सम्बन्धियों को कड़े दण्ड दिये गये। स्वाभाविक रूप से मुहम्मद – बिन – कासिम को भी सुलेमान का कोपभाजन बनना पड़ा। उसे अपदस्थ कर याजीद को सिंध का सूबेदार बहाल किया गया। याजीद के द्वारा उसे कैदकर मेसोपोटामिया भेज दिया गया, जहाँ उसका अंत में वध कर दिया गया।
जन्म – 31 दिसम्बर 95वा
ताइफ़, अरबी
प्रायद्वीप
देहांत – 14
जुलाई 715 31 दिसम्बर 95वा
ताइफ़, अरबी
प्रायद्वीप
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