Saturday, July 27, 2024
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कुतुबुद्दीन ऐबक

 

उत्तर भारत में तुर्क शासन की स्थापना 1192 ईस्वी में तराइन के द्वितीय युद्ध के बाद आरम्भ हुई।  इस युद्ध में मोहम्मद गोरी ने चाहमान राजा पृथ्वीराज तृतीय को पराजित किया था। यह युद्ध निर्णायक सिद्ध हुआ और इससे तुर्को की उत्तर भारत विजय का मार्ग प्रशस्त हो गया।  इस पराजय से पृथ्वीराज की शक्ति पूर्ण  नष्ट हो गयी और इसके बाद वह तुर्को से संघर्ष नहीं कर सका। मोहम्मद गोरी ने हँसी, कुहराम,सरस्वती पर अधिकार करके उन्हें तुर्क सैनिक क्रेन्द्र बना दिया।  संम्भवतः मुहम्मद गोरी  चाहमान  राज्य का शासन अपने हाथों नहीं  चाहता था, इसलिए पृथ्वीराज के एक पुत्र को अधीनस्थ राजा के रूप में गद्दी पर बिठा दिया गया।  मुहम्मद गोरी ने अपने विश्वासपात्र सेनापति कुतुबद्दीन के सेनापतित्व  तुर्क सेना दिल्ली के पास इंद्रप्रस्थ में नियुक्त कर दी।  कुछ समय बाद कुतुबद्दीन ने दिल्ली और अजमेर पर अधिकार करके तुर्को का प्रत्यक्ष शासन स्थापित कर दिया।  इस प्रकार दिल्ली सल्तनत को स्थापित किया गया। 

 

दास राजवंश 

 

दिल्ली सल्तनत की स्थापना और संरक्षण में प्रथम योगदान मामलुक सुल्तानों का था जिसे सुविधा की दृष्टि से दास राजवंश कहा जाता है। यह महत्वपूर्ण है की यह एक वंश नहीं था बल्कि इसमें तीन वंश थे जिसके संथापक कुतुबद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश और बलबन थे। 1206 ईस्वी से 1451 ईस्वी के काल के  शासक तुर्क थे।  केवल 1451 ईस्वी  से 1526 ईस्वी  तक राज्य करने वाला लोदी वंश अफगान या पठान था। 

 

 


कुतुबुद्दीन ऐबक प्राम्भिक जीवन 

 

भारत में तुर्क राज्य का संस्थापक कुतुबुद्दीन ऐबक को मन जाता है जो तुर्किस्तान का निवासी था। बाल्यकाल में उसे गुलाम बनाकर निशापुर के काजी फखरुद्दीन को बेच दिया गया था।  कुतुबुद्दीन तीक्षण  बुद्धि का प्रतिभासम्पन्न बालक था।  काजी के पुत्रों के साथ उसने विद्या अध्ययन किया तथा घुड़सवारी तथा सैनिक प्रशिक्षण प्राप्त किया।  काजी की मृत्यु के बाद उसके पुत्रों ने कुतुबुद्दीन को एक सौदागर के हाथों बेच दिया।   सौदागर ने गजनी ले जाकर उसे मुहम्मद गोरी को बेच दिया।  उसकी योग्यता तथा कार्यकुशलता  मुहम्मद गोरी प्रभावित हुआ और उसे उच्च पदों पर नियुक्त किया गया। मुहम्मद गोरी ने उसे अध्यक्ष ( आमिरअखुर ) नियुक्त किया तराइन के द्वितीय युद्ध के  नेउसे अपने भारतीय साम्रज्य का शासक नियुक्त किया।  कुतुबुद्दीन ने इंद्रप्रस्थ को  क्रेन्द्र बनाया और तुर्क साम्राज्य के प्रशासन, संरक्षण तथा विस्तार का कार्य किया। 

 

कुतुबुद्दीन ऐबक की उपलबधियाँ 

 

कुतुबुद्दीन ने 1192  ईस्वी से 1206 
ईस्वी तक मुहम्मद गोरी के प्रतिनिधि के रूप में कार्य। किया   में उसकी मुख्य उपलबधियाँ सल्तनत को सुरक्षित रखना और विस्तृत करना था। 
1206 
ईस्वी से 1210 
ईस्वी तक उसने उसकी स्वतंत्र शासक के रूप में शान  दिल्ली सल्तनत को गजनी साम्राज्य से पृथक करके उसकी स्वतंत्रता सत्ता। इस काल की सबसे  महत्वपूर्ण उपलब्धि यही थी। 

 

मुहम्मद गोरी के प्रतिनिधि  :— तराइन के युद्ध विजय प्राप्त  मुहम्मद गोरी अपने  कुतुबुद्दीन को भारत में उसने कुतुबुद्दीन को सैनिक और प्रशासनिक अधिकार प्रदान  किये थे। 

 

1206  ईस्वी में सिंहासन पर बैठने से पहले तुर्क साम्रज्य समस्त उत्तर भारत में स्थापित हो चूका था।  इस उपलब्धि में कुतुबुद्दीन का महत्वपूर्ण योगदान था। 

 

सिंहासनारोहण :– कुतुबुद्दीन के राजीरोहण का आधार निर्वाचन था।  जब मुहम्मद गोरी की मृत्यु  समाचार ज्ञात हुआ, लाहौर  अधिकारियो तथा जागरिको  कुतुबुद्दीन को राज्यारोहण के लिए आमंत्रित किया। वाह दिल्ली से लाहौर पहुँचा, जहाँ 24 जून 1206 ईस्वी को गद्दी पर बैठा।  उसने केवलमालिकतथासिपहसालारकी उपाधियाँ  धारण की इसका कारन सम्भवतः यह था की वैधानिक दृष्टि से  वह गुलाम था।  उसे औपचारिक रूप से दासता से मुकत 1208 ईस्वी में प्राप्त हुई जब मुहम्मद गोरी के उत्तर्राधिकारी गियासुद्दीन ने गौर से राजचिन्ह भेजे और सुलतान की उपाधि प्रदान की। 

 

कुतुबुद्दीन के समक्ष समस्यायें 

 

1. एल्दौज तथा कुबाचा :-मुहम्मद गोरी की आकस्मिक मृत्यु के  उत्तराधिकारी की समस्या उत्पन्न गई थी।  गोरी की मृत्यु के समय कुबाचा मुल्तान और सिंध  स्वतंत्र शासक बन गया।  इस समय एल्दौज ने , जो कुबाचा के समान ही मुहम्मद गोरी का गुलाम था, गजनी पर अधिकार कर  लिया।  कुतुबद्दीन के प्रबल प्रतिद्वंदी थे।  गजनी पर कब्ज़ा करने के कारन एल्दौज  भारत में तुर्क राज्य पर दवा।  किया कुतुबुद्दीन के समक्ष सबसे बड़ी समस्या   विरोध करना और दिल्ली की स्वतंत्रता  रक्षा करना था। 


2. ख्वारिजम शाह की महत्वकांक्षा:कुतुबुद्दीन के दूसरे संकट ख्वारिजम के शाह  महत्वकांक्षा से था।  मध्य एशिया के राज्य ख्वारिजम के सुलतान की दृष्टि  गजनी और दिल्ली पर थी। अतः कुतुबउद्दीन का कार्य शाह  विस्तारवादी आकांक्षा का विरोध करना था। 


3. राजपूत राजाओं का विरोध :- अनेक राजपूत राज्यों को तुर्कों ने  जीता।  इन राज्यों में अधिकांश ऐसे  तुर्को  दासता अस्वीकार करके स्वतंत्रता प्राप्त करने का प्रयास कर रहे थे।  अनेक क्षेत्रों तुर्को का नियंत्रण शिथिल हो गया था। कुतुबुद्दीन के समक्ष यह आंतरिक समस्या थी। 


4. बंगाल की समस्या :—बख्तियार खिलजी की मृत्यु के पश्चात्य बिहार और बंगाल में अव्यवस्था फैल गई थी और प्रदेशो का दिल्ली  सम्बन्ध टूटने का संकट उत्पन्न हो गया था। इसका मुख्य कारण खिलजी सरदारों की आपसी शत्रुता और द्वेष था। 


5. उत्तरपश्चिम सिमा की सुरक्षा : कुतुबुद्दीन के समक्ष एक मुख्य गंम्भीर समस्या उत्तरपश्चिम सीमा की रक्षा करना था।  सिमा पर एल्दौज तथा ख्वारिजम के शाह के आक्रमण की आशंका बानी रहती थी।  अतः सिमा सुरक्षा के के लिए सैनिक सतर्कता आवश्यक थी। 

 

कुतुबुद्दीन के संघर्ष  

 

1) एल्दौज से संघर्ष : कुतुबुद्दीन  सर्वप्रथम ताजुद्दीन एल्दौज का सामना पड़ा।  गोरी  मृत्यु के पश्चात्य यल्दौज ने भी अपनी स्वतंत्रता  घोषणा क्र तथा  स्वतंत्र शासक।   कालांतर  एल्दोज को गजनी  पड़ा, जिसका लाभ उठाते  ऐबक गजनी पहुंचा तथा 1208 
ईस्वी में उस पर अधिकार क्र लिया।   शासन को गजनी की  पसंद नहीं किया,अतः शीग्र ही ऐबक को गजनी छोड़ना पड़ा। ऐबक के गजनी से लोट आने पर यल्दौज  पुनः गजनी पर  लिया।  यद्यपि ऐबक गजनी में यल्दौज की सत्ता  समाप्त कर सका, किन्तु उसको भारत पर भी अधिकार ऐबक ने नहीं करने दिया। 

 

 

2) राजपूत राज्यों के प्रति निति :–  उत्तरपश्चिमी में संकट के कारन कुतुबुद्दीन राजपूत राज्यों के प्रति कोई कार्यवाही नहीं कर सका तथा नविन प्रदेशो को जितने की निति भी  त्याग दी। उसने नवीन प्रदेशो को जितने की अपेक्षा जीते हुए प्रदेशों  की सुरक्षा और संगठन पर ध्यान दिया।  वह  आवश्यक था की मुईजी आमिर  प्रभुसत्ता को माने, अतः उसने समझौते की निति अपनायी और राजनितिक ढांचे को मजबूत बनाया। 

 

 

3) बंगाल के खिलजियों का दमन : बख्तियार खिलजी की मृत्यु (1206 ईस्वी ) के बाद एक खिलजी सरदार अली मर्दान ने स्वयं को बंगालबिहार  स्वतंत्र शासक घोषित क्र दिया।  लेकिन खिलजियों के दुरसरे वर्ग ने अली मर्दान को बंदी बना लिया। अली मर्दान किसी तरह बंदीगृह से भागकर कुतुबुद्दीन के पास पहुंचा और प्रार्थना की कि ऐबक बंगाल के मामले में हस्तक्षेप करे और वहाँ  जागीरों  वितरण फिर से किया जाये।  इस बिछा  ऐबक  प्रतिनिधि कैमाज रूमी  खिलजी सरदारों को बाध्य किया की वे ऐबक सत्ता स्वीकार करे।  इसके बाद ऐबक ने अली मर्दान को बंगाल का गवर्नर बना दिया। 

 

4) कुबाचा से समझौता :– नसीरुद्दीन कुबाचा ऐबक का दामाद था। 1206 ईस्वी में मुहम्मद गोरी की मृत्यु के पश्चात्य कुबाचा ने ऐबक की प्र्भुस्त्ता को स्वीकार क्र लिया था।  इससे एल्दौज रुष्ट जो गया और उसने  मुल्तान पर आक्रमण कर  दिया।  कुबाचा सिंध की और भाग गया। ऐबक ने एल्दौज का सामना किया  पराजित कर  किरमान भगा दिया। इसके बाद ऐबक ने कुबाचा को मुल्तान और सिंध  का गवर्नर नियुक्त कर दिया, इस विवेकपूर्ण निति से कुबाचा उसका समर्थक बना रहा। 


मृत्यु :– 1210 ईस्वी में पोलो खेलते समय घोड़े गिर जाने  क़ुतुबुद्दीन की मृत्यु हो गई।  चार वर्ष के अल्प  शासन काल में उसने तुर्क साम्राज्य को बुद्धिमतापूर्वक सुरक्षित रखा। यद्यपि उसने सिक्के जारी नहीं किये थे परन्तु वह दिल्ली सल्तनत का संस्थापक था। (कुतुबमीनार की नींव रखी थी।)

 

मूल्यांकन 

क़ुतुबुद्दीन ऐबक भारत में इस्लामी साम्राज्य का संस्थापक था। वह एक सफल एवं महान सेनानायक। था  उसने कूटनीति का प्रदर्शन करते हुए वैवाहिक सम्बन्धों की सहायता  स्थिति को महबूत बनाने का प्रयास किया।  डॉक्टर श्रीवास्तव  प्रशंसा करते  लिखा है, ” वह एक प्रतिभागशाली सैनिक था और हीन  तथा दरिद्र अवस्था से उठकर शक्ति तथा यश के शिखर पर पहुंच गया।………….उसकी सबसे बड़ी सफलता यह थी की उसने गजनी  सम्बन्ध विच्छेद करके भारत को उसके प्रभुत्व मुक्त क्र दिया।मिन्हाज ने भी उसकी प्रशंसा की है।  उसके शब्दों में, “ऐबक उच्चा भावनाओं  ओतप्रीत एवं विशाल ह्रदय सम्राट था।हबीब  ने  ऐबक के चरित्र पर प्रकाश डालते हुए लिखा है
उसकी महानता का  सर्वोत्त्तम गुण है की यद्यपि भारत  जीवनचार्य अनवरत सैनिक गतिविधियों में बीती, किन्तु उसने जो चाप जनसाधारण के  छोड़ी वाह विनाश और विध्वंश की नहीं थी, अपितु  उदारता की। थी 
ऐबक अत्यंत  शासक था।  फ़रिश्ता ने लिखा है की जब जनसाधारण  व्यक्ति असीमित दान की प्रशंसा करते थे तो वाह उसेअपने समय  ऐबककहते थे।  

मिनहाज ऐबक की दानशीलता की प्रशंसा करता है।  वह कहता  ऐबकलाखबख्सकहा जाता था वाह विद्वानों की आश्रयदाता भी था।  फखमुदब्बिर और  निजामी  में  उन्होंने अपनी ग्रंथ ऐबक को समर्पित किये थे।  वह कला का भी संरक्षक था। उसने पाने समय में कुवातउलइस्लाम और अढ़ाई दिन का झोपड़ा, दो मस्जिदों का निर्माण कराया था। 

क़ुतुबुद्दीन ऐबक  ने 1199  में कुतुब मीनार की नीव रखी थी और यह नमाज अदा  करने की पुकार लगाने के लिए बनाई गई थी तथा इसकी पहली मंजिला बनाई गई थी, जिसके बाद उसके उत्तरवर्ती तथा दामाद शम्स उद्दीन इल्तुतमिश ( ए डी 1211 -36 ) ने तीन और मंजिले इस पर जोड़ी। 


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