जलियावाला बाग हत्याकांड :1919
1919 के जलियावाला बाग हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। यह घटना 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर, पंजाब में हुई थी, जब ब्रिटिश सेना के सैनिकों ने भारतीय जनता के खिलाफ हिंसा की।
रौलेट एक्ट के तहत पंजाब के लोकप्रिय नेता डॉo सत्यपाल और डॉo सैफुद्दीन किचलू की गिरफ़्तारी हुई थी जिसके विरोध में ब्रिटिश का दमन करने के लिए 10 अप्रैल 1919 को अमृतसर में शांतिपूर्ण जुलुस निकाली गयी, 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अमृतसर में जलियावाला बाग़ में दोनों नेताओं के गिरफ्तारी के विरोद्ध एक शांतिपूर्ण सभा का आयोजन किया गया था। सभास्थल के चारों तरफ ऊँची- ऊँची दीवारें थी, केवल एक दरवाजा 7.5 फिट चौड़ा था और उसी समय अंग्रेजी गवर्नर जनरल रैगिनैल्ड एडवर्ड हैरी डायर ने बिना पूर्व चेतावनी के सभास्थल में गोली बारी का आदेश दे दिया, जिसमें 1000 लोग मारे गए, सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 10 मिनट में हुई गोलीबारी में 379 व्यक्ति मारे गए और 1200 घायल हो गए।
जलियावाला बाग हत्याकांड की मुख्य बातें :-
- समारोह का कारण – हत्याकांड का मुख्य कारण था रॉलेट एक्ट 1919, जिसमें ब्रिटिश सरकार को विशेष परिस्थितियों में बिना किसी याचिका के लोगों को जेल में डालने की अनुमति दी गई थी। इसके खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए लोग एकत्रित हुए थे।
- ब्रिटिश निर्वासित भारतीय नेता – आम लोगों का आक्रोश बढ़ते चले थे और वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता माहात्मा गांधी, बाल गंगादर तिलक और अन्यों के मार्गदर्शन में आ गए थे।
- जलियावाला बाग में समारोह – इस संदर्भ में, एक बड़े गांधीधी कार्यक्रम का आयोजन किया गया था, जिसमें लोग अमृतसर के जलियावाला बाग में एकत्रित हुए।
- हत्याकांड – ब्रिटिश सेना के जनरल डायर ने बिना किसी स्पष्ट सूचना के समारोह में आए लोगों पर आग और गोलियों की बरसात की। इसके परिणामस्वरूप कई लोग मरे और कई लोग घायल हो गए।
- प्रतिक्रिया और परिणाम – यह हत्याकांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया दिशा देने का काम करती है, जिससे ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ और भारतीय जनता के बीच सहमति में वृद्धि हुई।
जलियावाला बाग हत्याकांड ने ब्रिटिश साम्राज्य के प्रति भारतीयों के आक्रोश को भड़काया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में महत्वपूर्ण उद्घाटन किया।
भारतीय लोगों पर इस घटना का प्रभाव :-
इस घटना के कारण राष्ट्रिय की चेतना जो सूई हुई थी उसे झारंजोर कर रख दिया था। जिसके पश्चात्य दीनबंधु सीo एफo एण्ड्रूज ने इस हत्याकाण्ड को ‘ जानबूझकर की गयी क्रूरता हत्या ‘ की संज्ञा दी जिसके कारण रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इस हत्याकाण्ड के विरोध में नाइट की उपाधि को लौटा दिया, महात्मा गाँधी ने कैसर-ए -हिन्द की उपाधि त्याग दी जो उन्हें बोअर युद्ध के दौरान अंग्रेजों ने दिया था, वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकरन नायर ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।
- जलियावाला बाग़ हत्याकांड की जाँच हेतु ब्रिटिश सरकार ने हंटर कमीशन का गठन किया :-
इस कमीशन में सी. एच. सीतलवाड़ पंडित, जगत नारायण एवं सुलतान अहमद खान भारतीय सदस्य थे। कमीशन ने वर्ष 1920 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसमे दुर्घटना के लिए सरकार को दोषी नहीं बताया गया, कहा गया की उपद्रव क्रांति का रूप ग्रहण कर लेते है, अंतः मार्शल लॉ अनिवार्य था तथा भीड़ की अधिकता को देखते हुए गोली चलना पूर्णतः न्यायोचित था। चौतरफा दबाव पड़ने के कारण सरकार ने हण्टर कमिटी का गठन किया, हण्टर कमिटी ने जनरल डायर के कर्तव्यों को उचित ठहराया परन्तु दवाब के कारण जनरल डायर को बर्खास्त कर दिया गया।
- ब्रिटेन अखबारों/हॉउस और कॉमन्स में जनरल डायर को ब्रिटिश साम्राज्य का रक्षक वह शेर कहा तथा उसे सरकार ने उसकी सेवाओं के लिए उसे ‘ मान की तलवार/Sword Honour ‘ और 2600 पॉण्ड की धनराशि भी प्रदान की।
- हण्टर कमीशन की रिपोर्ट को गांधीजी ने ‘ पाने दर पन्ने निर्लज्ज लीपा पोती की संज्ञा दी, कोंग्रस ने जलियावाला बाग़ हत्याकाण्ड विरोद्ध मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में समिति गठित की।
- इस समिति के अन्य सदस्य थे – मोती लाल नेहरू, महात्मा गाँधी, सीo आरo दास, तैय्यब जी और जयकर थे। कांग्रेस जाँच सिमित में रिपोर्ट डायर की निन्दा करते हुए उस पर विवेक हिन और भावावेश में होकर कदम उठाने का आरोप लगाया।
- जलियावाला बाग हत्याकाण्ड के समय पंजाब में चमनदीप के नेतृत्व में डंडा फौज अस्तित्व में आयी।
- डंडाफोज के पोस्टर पर लिखा होता था – ” अरे हिन्दू – मुसलमान और सिख भाइयों आओ डंडा फौज में शामिल होकर अंग्रेज बन्दरो के खिलाफ बहादुरी से लड़ो यह गाँधी की आज्ञा है।