Saturday, July 27, 2024
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झारखण्ड की संस्कृति लोक वाध यंत्र (Jharkhand’s musical instruments)

                                              झारखण्ड  की संस्कृति लोक वाध  यंत्र 
झारखंड के वाद्य यंत्रों को हम झारखंड की संस्कृति के परिचायक कह सकते हैं। हमें झारखंड की संस्कृति की झलक इन वाद्य यंत्रों से दिख जाती है। झारखंड की संस्कृति का जब हम अध्ययन करते हैं तो हम यह देखते हैं कि झारखंड के निवासी गीत, गाने, नृत्य करने तथा संगीत के प्रेमी होते हैं तथा उनके द्वारा इन सभी में अनेकानेक वाद्य यंत्र का प्रयोग किया जाता है। झारखंड में जनजाति के वाद्य यंत्रों के बनावट पर अगर हमें ध्यान देते हैं तो हम यह देखते हैं कि इन्हे मुख्यता रूप से निम्नलिखित 4 श्रेणी में रूप से रखे गए हैं।
1 ) पहला वाद्य यंत्र:- किस वाद्ययंत्र में तार के सहयोग से ध्वनि निकाली जाती है। इस वाद्य यंत्र में लगे तार को बजाने वाला व्यक्ति अपनी अंगुलियों से लकड़ी से छोड़कर गीतों को गाते हुए आकर्षक आवाज उत्पन्न करता है। अगर हम प्रमुख तंतु वाद्य यंत्र की बात करें तो वह है सारंगी, मुआंग , तार तथा केंदरी है ।
2 ) सुसीर वाद्य :-  झारखंड की जनजाति द्वारा इसका प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है। इस वाद्य यंत्र  में बजाने वाला व्यक्ति अपने मुँह से तरह-तरह की ध्वनि निकालकर गीत  संगीत से लोगों को आनंदित करता है। इस वाद्य यंत्र के प्रमुख रूप है। बांसुरी जिसे जनजाति द्वारा आर्डवासी कहा जाता है। अन्य रूप से सिंगा , शंख, मदन, भेरी इत्यादि।
1) शंख, 2) सिंघा
3)अवन्द्ध वाद्य :- इन्हे ताल वाद्य भी कहा जाता है इस वाद्य यंत्र में चमड़े को प्रयोग कर के इसको बनाया जाता है तथा इसी चमड़े से आवाज निकाली जाती है  प्रमुख वाद्य  है:-  मंदार,नगाड़ा ,ढोल. ताशा,डमरू,खंजरी, कारहा,धंमशा इत्यादि। इन  वाद्यों को भी दो भागो में विभाजित किया जाता है पहला मुख्या वाद्य। दूसरा गोण  ताल  वाद्य। मुख्या ताल वाद्य की श्रेणी में आने वाले प्रमुख वाद्य है ढाक , मांदर ,ढोल वही गौण  ताल वाद्य श्रेणी में ताशा धमसा,गुंडि ,नागरा ,करहा प्रमुख है।  गौण  ताल वाद्य का प्रयोग लगभग सभी प्रकार के वाद्य यंत्र  में उनके साथ पुरक  वाद्य यन्त्र के रूप में बजने की परम्परा  देखने में आती है।

ढोल
4) धनवाध वाद्य :-  इस वाद्य  यंत्र  के निर्माण में धातु का प्रयोग मुख्य रूप से होता है वह भी कासा  धातु का इन धनवाध  के प्रमुख उधारण  है– झांझ , करताल , मंदिरा , झाल , घंटा, इत्यादि धनवाध यंत्र की विषेशता यह है की इसमें उत्पन्न ध्वनि काफी तीव्र होती है और इसकी गूंज काफी दूर तक जाती है
 अब हम अध्ययन की सरलता हेतु रहा झारखण्ड में प्रचलित विभिन्न  यत्रों  का अध्ययन निम्न प्रकार  करेंगे।
झाल
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