Saturday, July 27, 2024
HomeHomeबिरसा मुंडा की जीवन की सम्पूर्ण घटना, युद्ध और कार्य, All About...

बिरसा मुंडा की जीवन की सम्पूर्ण घटना, युद्ध और कार्य, All About Brisa Munda-learnindia24hours

बिरसा  मुंडा जीवन परिचय
इनका जन्म  15 नवम्बर 1874  को उलिहातू गाँव राँची में हुआ  था
इनके पिता का नाम सुगना मुंडा था तथा माता का नाम कदमी  मुंडा था
सुगना मुंडा लकरी मुंडा के पुत्र थे कदमी डाबर मुंडा की पुत्री थी
झारखण्ड के  आंदोलनकारियो में  भगवान्  की हैसियत रखने वाले ब्रिरसा मुंडा  महान क्रन्तिकारी थे जिन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के विद्रोह सशत्र  हिंसाक क्रांति का आरंभ किया था  अगर हम सरकारी दर्तावेजो का अध्ययन करते है तो हम देखते  इसमें बिरसा मुंडा का जन्म  गांव में दर्शाया गया है  कुछ बिद्वानों  का मानना था की बिरसा का जन्म हस्पतिवार में हुआ था  इसीलिए इनका नाम बिरसा रखा गया क्योकि मुंडारी भाषा में विरहस्पति को बिरसा कहा जाता है बिरसा मुंडा के जन्म  के संदर्भ में डॉक्टर पुरुषोत्तम कुमार का मानना है की बिरसा मुंडा जन्म का 1866 ईस्वी  में खटंगा  में हुआ था बिरसा मुंडा ने इसाई धर्म  को अपनाया  जिसके बाद उनका नाम मशीहा दास रखा गया था उनका नाम बृषा डेबिट रखा गया था बिरसा मुंडा क्रान्तिकारियो में मरांग गोमके नाम से जाने  जाते  थे बिरसा मुंडा 30 वर्ष की आयु में 1896 से 1897 ईस्वी  तक कारावास की सजा पाकर हजारीबाग जेल  में कैद थे
ननिहाल  —   बिरसा मुंडा का बाल्यकाल उनके नाना के घर अयुबहातु में बिताई। जोना नाम की महिला उनकी रिस्ते  मोशी लगती थी उन्हें खटंगा ले आईl   जहा उनका संपर्क ईसाई धर्म  के प्रचारक से हुआ  कुछ समय के बाद है अपने से बड़े जिनका नाम कोमता मुंडा था  उनके साथ वे रहने लगे वे गौड़बेड़ा के आनंद पांडा नाम के ब्राह्मण  के सम्पर्क में आये इसे ही बृषा मुंडा का राजनैतिक गुरु कहा जाता  है क्योंकि इन्ही ने रामायण और  महाभारत  कहानियो से  प्रेरित होकर  वे जंगल जाने लगे एक अच्छे निशानेबाज के रूप  में अपना को अस्थापित किया
प्राथमिक  शिक्षा —   बिरसा  मुंडा  अपने  शुरू की पढ़ाई  सलगा गांव के स्कूल से की थी  कुण्दी  बरटोली में बिरसा मुंडा का परिचय  एक जर्मन  पादरी
से हुआ तथा साथ वह बरजो आ गए जहा से उन्होंने प्राथमिक  शिक्षा प्राप्त की चाईबासा स्थित लूथेन मिसर में उन्होंने उच्च  शिक्षा की परीक्षा 1890 ईस्वी  में उत्तीण की  बाद  में  अपने माता पिता  में पास जो चालकद  में रह रहे थे वह  गए आज चालकद  बिरसा मुंडा के अनुयायियों का तीर्थ अस्थल  बन गया  है
धार्मिक परिवर्तन —  एक वेसनाव साधु के संपर्क  कारण बिरसा मुंडा ने यगोपवीत धारण करते हुए अपने को शाकाहारी   की उपासना करना प्रांरभ  कर दिया एक किदवंती है की पाटपुर में  बिरसा को भगवान् विष्णु के दर्शन हुए   बिरसा का विवाह सागरा नमक गांव में रहने एक लड़की से  हुई  जिसे  उन्होंने जेल से   आने के बाद    चरित्रहीन कहकर  छोड़ दिया था इसके उपरांत  जीवन   में अकेले ही रहे थे
 तुईला का  निर्माण एवं भगवान  प्राप्ति  —   बिरसा मुंडा को बांसुरी गठन काफी पसंद था उनहोंने गथान काफी  पसंद था  उन्होंने लूकी से एक तार वाला वाद्य  यंत्र बनाया था  जिसे तुईल कहह गया 15  नवम्बर को  बिरसा मुंडा के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है 1895 ईस्वी में  बिरसा मुंडा को पैगम्बर प्राप्त हुई और वे  बिरसा मुंडा से   बिरसा भगवान् के रूप में विख्यात हो गए  बिरसामुंडा द्वारा बराये गए धर्म को बिरसाइत  कहकर पुकारा गया  बिरसा मुंडा ने एक  आंदोलन उलगुलान की सफलता के  लिए उलगुलान सेना बनाई थी जिसमे उनका सहयोग दोनका  मुंडा तथ गया मुंडा ने साथ दिया था
झारखण्ड की संस्कृति लोक वाध यंत्र Jharkhand’s Musical Instruments, Jharkhand Musical Tools, Jharkhand Geet.
बिरसा मुंडा आंदोलन — बिरसा मुंडा आंदोलन के प्रथम चरण का जब हम अध्ययन करते है तो यह हम देखते है की  बिरसा मुंडा के आंदोलन के प्रथम चरण में नेता के रूप में सीमा मुंडा ने महत्वापूर्ण  भूमिका निभाई थी उलगुलान का शाब्दिक अर्थ होता है महासंग्राम बिरसा मुंडा अपने अनुयायियों पर खीर जाली विस्दा का छिड़काव करते थे बिरसा मुंडा को लोग धरतीआबा  के नाम्नाम से भी पुकारते थे जिदका अर्थ होता है धरती का पुत्र  सच तो यह होता है शर्तो का पुत्र सच तो यह है कि बिरसा मुंडा  के बताये गए शर में मुंडा, धर्म  हिन्दू, इसाई इन  सभी धर्म  के तत्व विद्यमान थे
बिरसा मुंडा क्र मनुष्य  के विकास के नीव में तीन बाटे मुख्य रूप से शामिल थी पहला इसाई धर्म दूसरा वैषणव धर्म तीसरा सरदारी आंदोलन का तातपर्य है सरदारी आंदोलन का तत्प्रय है संदरी आंदोलन में  बिरसा मुंडा प्रांरभ  से ही शामिल होते रहे तथा  उन्हें अपनी नेता के रूप में सरदार मानाने भी लगे थे
प्रसिद्ध इतिहासर ऐ सी राय  ने अपनी पुस्तक थे (The Munda’s and their country ) में एक किद्वंती लेख किया है जिसमे  बताया है की 1885 मई को आसमान से   बिजली गिरी जिसके फलस्वरूप बिरसा मुंडा के  सकल सूरत में आमूलचूल परिवर्तन हो गए और इस घटना के समय उन्हें ईश्वर  का संदेस भी प्राप्त  हुआ
बिरसा मुंडा अनेक धार्मिक आडम्बरो एवं अंधविस्वास के खिलाफ थे  उनका यह मानना थे की सिंग बोंगा ही एकमात्र देवता है जिन्होंने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का निर्माण किया है उनहोने कहा है की भूत  प्रेत पर विस्वास  नहीं करना चाहिए न ही बलि नहीं देनी  चाहिए  बिरसा मुंडा ने लोगो को मंसाहारी भोजन तथा  हड़िया के त्याग  के लिए प्रेरित किया उन्होंने कहा की मानव सेवा ही परम धर्म है  बिरसा मुंडा के सदा सरल जियां और उच्च विचार रखने तथा परोपकार करने के कारण  जनसाधारण उनके तरफ सहज ही आकर्षित हो गए लोग बड़ी संख्या में उनको स्पर्श करने मात्र  से बीमार लोग ठीक  हो जाते थे सरदार भी ईसाई धर्म को त्याग कर  बिरसा मुंडा के अनुयायी बनाने लगे ,अगर हम  बिरसा मुंडा के धार्मिक विचारधारा  मुंडाओं के पुर्जागरण  लिए प्रेरम आहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी बिरसा मुंडा के अनुयायियों ने उन्हें भगवान् का दर्जा प्रदान क्र दिया तथ उन्हें ईस्वर समझने  लगे बिरसा मुंडामें अनुयाययि अपने आपको बिरसाइत कहने लगे थे बिरसा मुंडा के धार्मिक प्रवचन में शोषण मुक्त सामाजिक व्यवस्ता की आकल्ट की हटी थी जिसके समाज के हर एक  वर्ग, के  मनुष्या  को आत्मा सम्मान से जीने का अधिकार होता थे बिरसा मुंडाअपने अनुयायों  को  हिंसा का  त्याग पशुबलि कर यगोपवित्र धारण करते हुए ह्रदय  की शुद्धता  पर ध्यान देने का उपदेस दिया बिरसा मुंडा ने न सिर्फ मुंडा समाज के लोगो को पुनः मुंडा धर्म में वापस लेने का प्रयास किया
मुण्डा शासन व्यवस्था —  बिरसा मुंडा, मुंडा समाज में प्राचीन समय  से चले आ रहे भूत प्रेत एवं आत्मा के अस्तित्व पर विश्वास रखने की परंपरा के विरुद्ध थे । इस कारण मुंडा लोगों ने बिरसा मुंडा के धार्मिक विचारों को का खंडन किया और उन्हें समझने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि अगर देवी देवताओं और आत्माओं को  बलि नहीं दी गई तो कोई भारी विपत्ति  समाज पर आ जाएगी। यही कारण है कि जब बिरसा मुंडा के गांव में चेचक की बीमारी फैल गई तो लोगों ने बिरसा मुंडा को ही इसका जिम्मेदार मानते हुए उसे गांव से बाहर निकाल दिया। परंतु जब मुंडा को उसको उनके माता-पिता के चेचक होने के बारे में पता चला तो वह गांव पुनः वापस आ गए। ना सिर्फ उन्होंने अपने माता-पिता की बल्कि गांव के सभी बीमार लोग व्यक्तियों की तन मन से सेवा की जिसके कारण लोगों में उनका आदर बढ़ गया। वह इस बात को समझ गए कि बिरसा मुंडा सिर्फ आचरण की बात ही नहीं करते बल्कि स्वयं भी उसका उदाहरण प्रस्तुत करने में पीछे नहीं हटते.
मुचिआ  चलकद   —  में भी जब 1895 ईसवी में ऐसे ही माहामारी हुई तब बिरसा मुंडा वहां भी पहुंच गए तथा तन मन धन से लोगों की सेवा करने लगे। लोग ठीक हो करके इसे चमत्कार का रूप मानने लगे और बिरसा मुंडा को शक्ति से संपूर्ण व्यक्ति मानने  लगे। बिरसा मुंडा ने अपने धार्मिक सामाजिक आंदोलन को लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी सोमा मुंडा को दी।
1 अक्टूबर 1894 को अंग्रेज को लगान  नहीं देने का निर्णय लिया गया क्योंकि 1894ईसवी में बारिश नहीं होने से छोटानागपुर में भयंकर अकाल पड़ा था। 1895 ईसवी में बिरसा मुंडा ने अपने धार्मिक उपदेशों के द्वारा लोगों को ब्रिटिश शासन के विरोध करना शुरू कर दिया था। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक सशस्त्र विद्रोह प्रारंभ कर दिया। 1895 ईसवी में चले राजस्व वसूली से जनसाधारण को माफ करने के लिए एक आंदोलन चला। इस आंदोलन के नेतृत्व से बिरसा मुंडा ने अपने धार्मिक अनुयायियों एवं जनसाधारण को धार्मिक आधार पर एकत्र करने एवं संघर्ष करने वाले सेना के रूप में ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध  उतार दिया। इस सरकारी राजस्व को  ब्रिटिश सरकार ने माफ करने के लिए बिरसा मुंडा से चाईबासा तक का दौरा किया, जहां उन्होंने घोषणा की कि सरकार खत्म हो। हो गया है अब!  अब जंगल जीवन पर आदिवासी जनसमुदाय राज करेंगे। ब्रिटिश हुकूमत द्वारा बिरसा मुंडा के इस बढ़ते प्रभाव से आतंकित होकर बिरसा मुंडा और उसके साथियों के विरुद्ध धारा 353 और धारा 505 के तहत वारंट निर्गत कर दिया गया जी आर के मेयर्स  पुलिस  उपाधीक्षक ने 10 सिपाही लेकर तथा मरहू के एगिलकन मीशन के रेवरेंड लिस्ट तथा बाबू जगमोहन सिंह जो बस गांव के जमींदार थे को लेकर बिरसा मुंडा के घर पहुंचे। उन्होंने 24 अगस्त 1895 को पहली बार गिरफ्तार कर लिया गया। बिरसा मुंडा पर  जनसाधारण को ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध भड़काने का आरोप लगाते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 353 तथा तीन 505 के अंतर्गत कानूनी कार्रवाई की गई मुंडा तथा उसके साथ रहने वालों 15  अनुयायियों को 2 वर्ष की सजा दी गई।बिरसा मुंडा पर ₹50 का जुर्माना लगाया गया। जुर्मान न चुकाने पर  6 महीने की सजा बढ़ा दी जाये  दे का प्रावधान किया गया। सजा सुनाने के बाद बिरसा मुंडा को 19 नवंबर1895 को रांची जेल से हजारीबाग जेल भेजा गया।
ब्रिटिश हुकूमत ने बिरसा मुंडा और उसकी सेना के विरुद्ध या घोषणा कर दी कि जो कोई भी मानकी मुंडा या  बिरसा मुंडा के बारे में जानकारी देगा या उसे गिरफ्तार करवाने में मदद पहुंच आएगा। उसे नगद रुपए 500 का पुरस्कार दिया जाएगा। साथ ही साथ उसके गांव के लगान की भी पूरी जीवन  लगान को  माफ कर दी जाएगी। अधिकांश विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि बिरसा मुंडा द्वारा ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध सशस्त्र आंदोलन की उलगुलान  है। कहा जाता है कि ब्रिटिश हुकूमत पर हमला करने के लिए बिरसा मुंडा ने  का जत्यो  का निर्माण किया था। बिरसा मुंडा की  सेना ने ना सिर्फ अंग्रेजों को बल्कि उन महाजनों और जमींदारों को भी अपना निशाना बनाया जो ब्रिटिश हुकूमत का साथ देते थे।
ऐसा अनुमान है कि इस लड़ाई में लगभग 200 मुंडाओं  की मौत हो गई थी। इस युद्ध में ऐसा कहा जाता है कि एक महिला जिसका नाम मानकी मुंडा था जो कि अब अद्भुत वीरता के साथ में इस आंदोलन  में लड़ी थी। मानकी  मुंडा जो की गया मुंडा की पत्नी थी  इस युद्ध में ब्रिटिश हुकूमत को काफी सफलता मिली थी। 300 मुंडाओं को बंदी बना लिया गया है तथा बिरसा मुंडा के प्रबल समर्थक मंझिया  मुंडा और डाका मुंडा ने 28 जनवरी 1900 ईस्वी  को ब्रिटिश हुकूमत के आगे सिर झुकाते हुए अपने 32 सहयोगियों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था। गया मुंडा को भी अंग्रेजों ने झटकी  मैं उसके घर पर घेराबंदी कर मार दिया था। ऐसा कहा जाता है कि 3 मार्च 1900 ईस्वी को  बनगाव के जगमोहन सिंह के वफादार  वीर सिंह  मेहली विश्वासघात करते हुए बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करवा दिया। विद्वानों का मत है कि 1900 ईस्वी  मे चक्रधरपुर के जंगल में बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया गया था। बिरसा मुंडा ने अपने समर्थकों को तीन भागों में विभक्त किया था। गुरु,पुराणक,नानक गुरु  में शामिल समर्थक सबसे अधिक विश्वास पात्र थे, जिनसे  से बिरसा मुंडा विचार─ विमर्श करते थे।  में पुराणक उसके समर्थक शामिल थे जो मुख्य रूप से बिरसा आंदोलन को संचालित करते थे। जनसाधारण तक आंदोलन को पहुंचाने का कार्य नानक पर था बिरसा मुंडा के विद्रोह के प्रतिक का झण्डा लाल रंग वह सफेद रंग का  था जिसमे सफ़ेद रंग मुंडा राज्य का प्रतीक वह लाल रंग ब्रिटिश हुकूमत के खत्म क प्रतिक था
बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर रांची लाया गया तथा उन पर मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे की सुनवाई के लिए एन.एस केट्स  की नियुक्ति की गई। कहां जाता है कि अंग्रेज द्वारा जलियाबाग हत्याकांड की तरह गोलियां डोंबारी की पहाड़ियां पर बरसाई गई आयुक्त ने सरगुजा, उदयपुर, जसपुर, रंगपुर तथा बुनाई के राजाओं को पत्र लिखकर बिरसा मुंडा को पकड़ने में मदद मांगी थी। बिरसा मुंडा के विरुद्ध आयुक्त फॉबर्स ने ऑफ कैप्टेन सेन  महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस आंदोलन में ब्रिटिश महारानी के पुतले को जलाया गया था, जिसे मंदोदरी कहा गया। इस आंदोलन में ब्रिटिश हुकूमत ने माना था कि खूंटी का थानेदार मृत्युंजय नाथ लाल ने अपनी नौकरी सही ढंग से नहीं निभाई है।
बिरसा मुंडा के विरुद्ध अंग्रेजी हुकूमत की सुनवाई पूरी होने से पहले ही कहा जाता है कि 9 जून 1900 ईस्वी  को बिरसा मुंडा की  मौत हो गई थी। अंग्रेजो  द्वारा बिरसा  मुंडा और उसके अनुयायियों तथा मुंडा समाज के ऊपर जो जुलम किये गए उसके  कलकत्ता  प्रकासित  होव आने इंग्लिशमें,पायोनियर तथ स्टेटमें में खबर छपी  सुरेंद्र नाथ बनर्जी इ काउंसिल मे ब्रिटिश हुकूमत की घृणा आचरण से सभी को अवगत करवाया।
बिरसा मुंडा ने एक ऐसा आंदोलन को जन्म दिया था जिस ने ना सिर्फ तत्कालीन बल्कि दूरगामी परिणाम भी देखने में आते हैं। 581 लोगों पर मुकदमा चला 13 लोगों की मृत्यु जेल में ही हो गई। 134 लोगों को सजा दे दी जिसमें 2  को फांसी तथा 40 को आजीवन कारावास और 6 को 7 वर्ष से 14 वर्ष की जेल की सजा सुनाई गई थी। डोका  मुंडा और मझियां मुंडा को देश से निकाल निकाल देने की सजा दी गई थी। सानेर मुंडा को फांसी की सजा दी गई थी। जो गया मुंडा का पुत्र था। टेकरी की बहादुरी का को राजा खान बहादुर खान की उपाधि दी गई थी। ठाकुर छात्रधारी सिंह, भवानी, बरस राय तथा बसंत सिंह की वार्षिक मालगुजारी में छूट दी गई थी।
25 मार्च 1900 ईस्वी  को बिरसा मुंडा के आंदोलन के बारे में स्टेटमेंट लेख छपा था। ब्रिटिश सरकार ने आंदोलनकारियों को पकड़ने में मदद करने के लिए तमाड़ में 17 तथा खूंटी में  33 मुंडा  को पुरस्कृत किया था। मुकदमे की सुनवाई के दौरान जैकाब  ने अभियुक्त  के वकील के रूप में भाग लिया था। जैकब सरदार आंदोलन  समर्थक थे । उच्च न्यायालय ने डोका  मुंडा के मृत्युदंड को  आजीवन कारावास में बदल दिया था।
यहां या ध्यान रखने की बात है कि बिरसा मुंडा सर्वप्रथम हजारीबाग जेल में रखे गए थे तथा दूसरी बार रांची जेल में रखे गए थे। बिरसा  मुंडा जिस जेल में रखा गया था उस जेल के अध्यक्ष का नाम कैप्टन एआ रएसएस बिरसा मुंडा के मौत की जांच क्रेवन ने  की थी। बिरसा मुंडा  आंदोलन के परिणाम स्वरुप छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 11 नवंबर, 1908 ईस्वी  को लागू हुआ। भारत सरकार ने 1889  ईसवी में बिरसा मुंडा पर डाक टिकट जारी किया तथा सांसद में उनका चित्र लगाया  गया। भारत सरकार द्वारा संसद के मैदान में 28 अगस्त 1998 को उसकी मूर्ति लगाई गई थी। रांची के एयरपोर्ट का नाम बिरसा मुंडा के नाम पर रखा गया। एयरपोर्ट रांची कोकर के निकट बिरसा मुंडा लो समाधी है जो नदी के डिस्टलरी पल के बगल में है बिरसा  मुंडा गिरफ्तारी के समय रांची के उपायुक्त  स्ट्रीट फिल्ड थे बरिसा मुण्डा आंदोलन के कारण ही बाद में ब्रिटिश सर्कार ने प्रारब्ध मई लिस्टर से तथ उसके उन्हके बाद जॉन रीद के द्वारा रांची जिले के जमीन  की मापी और बंदोबस्ती कराई 1908 ईस्वी में गुमला और 1905 ईस्वी में खुटी अनुमंडल बनाये गये
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments