Saturday, July 27, 2024
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भारत छोड़ो आंदोलन में झारखण्ड की भुमिका (Jharkhand’s role in Quit India Movement ) by learnindia24hours

 

भारत छोड़ो आंदोलन में झारखण्ड की भुमिका 

 

अगस्त, को बंबई में अखिल भारतीय कोंग्रेस कमिटी की बैठक में ‘ भारत छोड़ो ‘ प्रस्ताव पारित किया गया जिसके बाद गाँधी जी  नेतृत्व में एक अहिसंक आंदोलन चलाने  का निर्णय लिया गया। जो भारत के स्वतंत्रता में बहोत की महत्वपूर्ण भुमिका को निभाया है, या कहे सकते है की शायद इसके बिना स्वतंत्रा की कल्पना करना भी सही नहीं होगी। 1942 ई. में महात्मा गाँधी ने भारत छोड़ो आंदोलन का प्रारंभ किया। उन्होंने यहाँ करो या मारो का  नारा भी दिया। ‘

झारखंड के लोग बड़े पैमाने पर इस आंदोलन में शामिल हुए।  अंदोलन के दौरान 14 अगस्त ई. राँची जिला स्कूल के निकट जुलूस रूप में निकले छात्रों को बंदी बना लिया गया।  भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान झारखंड में हड़तालें, जुलुस, प्रदर्शन आदि हुए। 

 

आवागमन और ढाँचार के साधनों को नष्ट कर दिया गया।  आंदोलन के क्रम में जानकी बाबू सहित राँची के कई नेताओ को बंदी बनाया गया। 

 

झारखण्ड में भी भारत छोड़ो आंदोलन लोगों ने बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया। आंदोलन के दौरान विभिन्न स्थानों पर सभाओं आयोजन, जुलुस प्रदर्शन, आवागमन व संचार साधनों को बाधा पहुँचने जैसी गतिविधियाँ संचालित की गयी। 

 

राँची

 

* अगस्त को रांची में हड़ताल रखा गया तथा 10 अगस्त, 1942 को नारायण चंद्र लाहिरी को राँची में गिरफ़्तार कर लिया गया। 

 

* 14 अगस्त, 1942   जिला स्कूल के पास जुलूस निकला रहे छात्रों को गिरफ्तार क़र लिया गया।  इसके अतिरिक्त राँची के प्रमुख नेता जानकी बाबू, गणपत खंडेलवाल, मथुरा प्रसाद सहित कई नेताओं को भी गिरफ़्तार किया गया। 

 

* 17 अगस्त, 1942  राँची में एक विशाल जनसभा का आयोजन अंग्रेज सैनिको ने खदेड़ दिया  कोंग्रेस कमिटी के कोषाध्यक्ष शिवनारायण मोदी को गिरफ्तार लिया गया। 

 

* 18 अगस्त, 1942 को तना भगतो ने विशुनपुर निकट एक थाने को जला दिया। 

 

* 22 अगस्त, 1942 राहे में हड़ताल आयोजित किया तथा इटकी व् टांगरबसली के बिच रेल पटरी को लोगों ने उखाड़ दिया।  अंग्रेजों ने 22  अगस्त को पी. सी. मित्रा को गिरफ्तार कर लिया।  

 

* 28 अगस्त, 1942  को राँची की बिजली काट दी गयी तथा 30 अगस्त, 1942  को बालकृष्ण विद्यालय के रजिस्टर जला दिया गये। 

 

* आंदोलन के दौरान नवंबर, 1942 तक रांची में 200 से अधिक लोगों को  गिरफ्तार कर लिया गया था।  

 

* जिसमें आंदोलन में सक्रीय भागीदारी निभाने वाले विमल दास गुप्ता, केशव दास गुप्ता, सत्यदेव साहू, किशोर भगत आदि शामिल थे। 

 

* आंदोलन के दौरान लोहरदगा के नदिया उच्च विद्यालय में छात्रों द्वारा राष्ट्रीय झण्डा फहराया गया था  गुमला में हड़ताल आयोजन व जुसूस प्रदर्शन किया गया। 

 

जमशेदपुर  महदूरों, दुकानदारों तथा आम लोगों ने 10 अगस्त. 1942 को हड़ताल का आयोजन किया। एम. के. घोष, एम. जॉन , ए. एन. बनर्जी, टी. पी. सिन्हा आदि बंदी बना लिए गए। चक्रधरपुर तथा चाईबासा में भी हड़तालें आयोजित की गई। टाटा नगर में तो 30 अगस्त 1942  को पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोलियां चलाई।  इस विरोध में जमशेदपुर पूर्ण हड़ताल रही। रामानंद तिवारी के नेतृत्व में पुलिस विरोह किया नेताओं से 33 पुलिसकर्मीयों को हजारीबाग जेल में भेज।   

 

 

पलामू में आंदोलन काफी उबाल पर था।  आंदोलन के दौरान अनेक लोगों को बंदी बनाया गया जिसमे महावीर वर्मा, यदुवंश सहाय, गौरी शंकर औझा, राजेश्वरी दास, देवराज तिवारी आदि प्रमुख थे। आंदोलनकारियों द्वारा रामकड़ा, रंका, पेश्का, भवनाथपुर आदि में शराब की भट्टियों को आग लगा दी गई। 

 

सिंहभूम 

 

10 अगस्त, 1942 को जमशेदपुर में पूर्ण हड़ताल रखा गया। 14 एवं 16 अगस्त को चक्रधरपुर एवं चाईबासा में ही हड़ताल का आयोजन किया गया। 

 

15 अगस्त, 1942 को जमशेदपुर के प्रमुख नेता एम. के. घोष, एन. एन. बनर्जी, त्रेता सिंह सहित कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। 17 अगस्त को यहाँ एम. डी. मदन को गिरफ्तार किया गया। 

 

30 अगस्त, 1942 की रात को कई लोगों को गिरफ्तार करने के साथ -साथ लोगों पर गोलियाँ चलायी गयी, जिसके विरोध में 31 अगस्त, 1942 को पूर्ण हड़ताल का आयोजन किया गया। 

 

रामानंद तिवारी के नेतृत्व में सिपाहियों ने जमशेदपुर में विद्रोह किया तथा इन्होंने जमशेदपुर में 60 सदस्यों की ‘ इन्क्लाबी सिपाही दल ‘ का गठन किया।  ब्रिटिश सरकार ने कई लोगों व विद्रोह करने वाले 33 पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करके हजारीबाग जेल भेज दिया। 

 

3 से 11 सितंबर, 1942 तक रामचंद्र पालीवाल तथा नैयर के नेतृत्व में सफाईकर्मियों ने हड़ताल की। 

 

15 सितंबर, 1942 को मुसाबनी में सी. पी. राजू कमलानंद व बस्टिन सहित कई मजदूर नेताओं को बंदी बना लिया गया। 

 

 

17 सितंबर, 1942 को घाटशिला में मद्रासी व उड़िया मजदूरों द्वारा जुलुस निकला गया। 

 

 

डाल्टेनगंज  प्रमुख डाकघर में आग लगाने के बाद तोड़ – फोड़ की गई।  आंदोलनकारियों द्वारा आवागमन ठप्प करने के पलामू का संपर्क बाहरी प्रदेशों से टूट गया। पलामू में पुलिस की गोली और लाठी के प्रहारों से 11 लोगों   जाने चली गई।  सरकार ने प्रमुख आंदोलनकारियो में यदुवंश सहाय, गणेश प्रसाद वर्मा, इत्यादि अन्य नेताओं को बंदी बना दिया गया। भरतमाल, नारायण तथा रामेश्वर तिवारी को 6  माह की सजा मिली. जपला सीमेंट फैक्ट्री के मिथिलेश कुमार सिन्हा को बंदी बना लिया गया। 

 

 

मानभूम 

 

9 अगस्त, 1942 को मानभूम क्षेत्र के नेता विभूति भूषण दासगुप्ता, वीर रघवाचार्य तथा पुर्णेन्दु भूषण मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया। 

10 अगस्त, 1942 को पी. सी. बोस, बैजनाथ प्रसाद व मुकुटधारी सिंह समेत कई नेताओं  गिरफ्तार कर  लिया गया। 

13 अगस्त, 1942 को अतुल चंद्र घोष को तथा 16 अगस्त, 1942 को समरेंद्र मोहन राय सहित कई लोगों को गिरफ्तार किया गया। 

 

 

इस आंदोलन  दौरान मानभूम क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन, सभाओ का आयोजन, जुलुस प्रदर्शन, यातायात व संचार साधनों को अवरुद्ध करने जैसी गतिविधियाँ आंदोलनकारियों द्वारा की गयी। सरकार द्वारा स्थिति को नियंत्रित करने हेतु कतरास, झरिया व धनबाद में कर्फ्यू लगाने का निर्णय भी लिया गया। 

 

हजारीबाग 

 

भारत छोड़ो आंदोलन के प्रारंभ होते ही 10 अगस्त, 1942 को हजारीबाग के नेता राम नारायण सिंह सुखलाल सिंह को बंदी लिया गया।  इन दोनों को हजारीबाग जेल में रखा गया था। 

 

11  अगस्त को हजारीबाग में सरस्वती देवी के नेतृत्व में एक जुलुस निकाला गया।  सरस्वती देवी को अंग्रेजी द्वारा गिफ्तार कर लिया गया। 

 

इस आंदोलन के दौरान सरस्वती देवी की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की उनके गिरफ्तारी के बाद विद्यार्थियों ने 12 अगस्त, 1942 को हजारीबाग से भागलपुर जेल ले  धावा बोलकर उन्हें पुलिस के हिरासत से मुक्त करा लिया।  परन्तु 14 अगस्त, 1942 को एक जनसभा को संबोधित करने के दौरान पुनः गिरफ्तार की गयी। 

 

14 अगस्त को हजारीबाग के उपयुक्त कार्यालय पर से यूनियन जैक उतारकर राष्ट्रीय झंडा फहराया गया। 

 

 

इस आंदोलन के दौरान जयप्रकाश नारायण 9 नवम्बर, 1942  को हजारीबाग सेंट्रल जेल से अपने पांच साथियों ( शालिग्राम सिंह, गुलाबी सोनार, रामानन्द मिश्र, सुरज नारायण सिंह तथा योगेंद्र शुक्ल ), कृष्ण बल्ल्भ सहाय तथा  सुखलाल सिंह को भागलपुर जेल स्थान्तरित कर दिया गया।  

 

संथाल परगना 

 

11 अगस्त, 1942 को विनोदानन्द झा के नेतृत्व में देवघर में जुलुस निकला गया।  पुलिस ने इन्हे भिखना पहाड़ी  गिफ्तार करके भागलपुर केंद्रीय कारागार भेज दिया। 

 

13 अगस्त,  को गोड्ड़ा कचहरी पर राष्ट्रिय झंडा फराया गया। 

 

13 – 14 अगस्त,  1942 को आंदोलनकारियों विभिन्न स्थानों आवागमन व संचार संधानो को नष्ट कर दिया तथा सरकारी भवनों को नुक्सान पहुँचाया।  इसके बाद भारत सुरक्षा अधिनियम  तहत मोतीलाल केजरीवाल, रामजीवन व हिम्मत सिंह सहित कई नेताओं गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया। 

 

इस आंदोलन के दौरान देवघर के सरवण  में आंदोलनकारियों द्वारा समानान्तर सरकार बनायीं गयी | दुमका में जांबवती देवी एवं प्रेमा देवी के नेतृत्त्व में 19 अगस्त, 1942  को विशाल जुलूस का आयोजन किया गया | दुमका में कृष्णा प्रसाद ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया तथा इसके नेतृत्व में यहां ‘ पहाड़िया जत्था ‘  का गठन किया गया | यह पहाड़ी जत्था 5 भागो में विभाजित था | 

 

21 अगस्त, 1942 को गोड्ड़ा जेल से लगभग 60 कैदी भाग गए | इस आंदोलन  के दौरान प्रफुल्ल चंद्र पटनायक ने पहाड़िया सरदारों के सहयोग से आदिवासियों को बड़ी संख्या में आंदोलन में  शामिल किया | इन्होने गोडडा, पाकुड़ व दुमका के बीच स्थित डांगपारा को अपना मुख्यालय बनाया 

 

प्रफुल्ल चंद्र पटनायक से प्रभावित होकर एक परिवार का एकमात्र पुरुष  सदस्य बादलमल पहाड़ी नामक एक युवा इस आंदोलन में शामिल हो गया | उसे पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया तथा गोड्ड़ा जेल में दी गयी यातनाओ के करण उसकी मृत्यु हो गयी | 

 

25 अगस्त 1942 को संथाल एवं पहाड़ी जनजातियों अलुवेर स्थित डाक बंगला तथा वन विभाग के भवनों को जला दिया, जिसके बाद सरकार द्वारा विभिंन स्थानों पर सैनिको को भेजा गया इस आंदोलन के दौरान अंग्रेजी सरकार ने प्रफुल्ल चंद्र पटनायक और उनके तीन साथियो के ऊपर 200 रूपये का इनाम घोषित किया था | 7 नवंबर, 1942 को प्रफुल्ल चंद्र पटनायक को गिरफ्तार करके अगले दिन राज़ महल जेल भेज दिया गया | इन्हे 16 वर्ष कैद की सजा सुनायी गयी थी। 

 

इस आंदोलन के दौरान संथाल परगना में लगभग 900 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। 

 

इस आंदोलन के दौरान हरिराम गुटगुनिया ने देवघर से ‘ साइक्लोस्टाइल बुलेटिन ‘ नमक पत्रिका का प्रकाशन किया गया। 

 

 

इस आंदोलन के दौरान वाचस्पति त्रिपाठी गिरफ्तार होने वाले संभवतः अंतिम नेता थे।  इनकी गिरफ्तारी 22 अगस्त, 1943  को की गयी थी। 

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