प्रश्न:— प्रथम विश्वायुद्ध के परिणामो का वर्णन।
उत्तर :– लगभग 4 साल 15 हफ्ता लगातार चलने वाला या विश्व युद्ध जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ 11 नवंबर 1918 ईस्वी को समाप्त हुआ। इस युद्ध में मित्र राष्ट्रों को अमेरिका द्वारा दी गई सैनिक सहायता ने निर्णायक भूमिका निभाई थी। अमेरिका के राष्ट्रपति विल्सन ने यह नारा दिया था कि जर्मनी को हराकर संसार को लोकतांत्रिक के लिए सुरक्षित बचाया है। उसका यह भी कहना था कि अमेरिका जर्मनी की जनता से नहीं अपितु उसके अत्याचारी शासक से लड़ रहा है। विलशन युद्ध के उपरांत अपने 14 सूत्री सिद्धांत के आधार पर ऐसे सुंदर संसार का निर्माण करना चाहता था, जहां राष्ट्र संघ की देखरेख में शांति एवं न्याय की स्थापना हो किंतु प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम तथा बाद की घटनाएं विल्सन के मनोनुकूल नहीं हुआ।
परिणाम :–
प्रथम विश्व युद्ध के मुख्य परिणाम निम्नलिखित प्रकार होते हैं।
1 ) जनधन का विनाश:– i)विश्व युद्ध में इतिहासकारों ने अनुमान लगाया है कि कम से कम 80 लाख सैनिक मारे गए थे तथा 60 लाख से अधिक लोग अपंग हुए। इस प्रकार भयंकर नरसंहार की घटना ने विश्व में आबादी तथा स्त्री पुरुष के संतुलन को विकृत कर दिया था।
ii) नरसंहार के अतिरिक्त अर्थशास्त्रियों के अनुसार इस महायुद्ध में 58,500 करोड रुपए खर्च में प्रतिदिन औसतन खर्च ₹40 करोड़ था। अंतिम दिनों में यह राशि ₹80 करोड़ प्रतिदिन पहुंच गई थी। वित्त असंतुलन के कारण जीवनोंपयोगी चीजों की कीमतें आसमान छूने लगी। पैदावार की 4 साल की कमी ने आवश्यक वस्तुओं का अभाव पैदा कर दिया था। मुद्रा का अवमूल्यन हो ना लगा जिसके व्यापक जिससे व्यापार में अव्यवस्था फैल गई।
2 )उद्योग धंधों में हास्य :– युद्ध के अवसर पर युद्ध सामग्री के अतिरिक्त अन्य उत्पादन नगण्य हो गए थे। युद्ध के विनाश में अनेक फैक्ट्री मकान एवं कर खाने को ध्वस्त कर दिया था। सबसे अधिक क्षति फ्रांस, इंग्लैंड, सर्विया, रुमानिया बेल्जियम को उठानी पड़ी थी। बाहर से कच्चा माल आने तथा तैयार माल जाने में बाधाएं उत्पन्न हो गई थी। जर्मनी एवं आस्ट्रेलिया इस दृष्टि से सर्वाधिक प्रभावित थे।
3) गणराज्य की स्थापना :– विश्वयुद्ध के पूर्व फ्रांस स्विट्जरलैंड और पुर्तगाल ऐसे युद्ध- संगलन देश थे , जहां गणतंत्र की स्थापना थी, किंतु इस युद्ध की समाप्ति के साथ लोकतंत्र की मांग तेजी से बढ़ी और अनेक देश क्रमशः लोकतंत्र प्रणाली अपनाने लगे। निरंकुश शासकों का अंत हुआरूस से जारशजी का विनाश हुआ। ऑस्ट्रीया, हंगरी, बुलगारी, में राजवंश का अंत हुआ। जर्मनी का भी गौरवशाली राजवंश सदा के लिए समाप्त हो गया। एक दशक के भीतर तुर्की से भी निरंकुश शासक का खात्मा हुआ। इस प्रकार रूस, जर्मनी, पोलैंड, आस्ट्रेलिया, लिथुआनिया, लौटाविया, फिनलैंड, युक्रोनिया आदि देश में गणतंत्र शासन-व्यवस्था की स्थापना हुई।
4 ) अधिनायकवाद का विकास:– युद्ध के दुष्परिणाम स्वरूप अधिनायक वादी प्रवृत्ति विकास हुई। राज्य वंश के पतन के पश्चात जब गणतंत्रिया ने पैर जमाना शुरू किया तो प्रायः राजनेताओं की भूमिका अधिनायक वादी हो गई। गणतंत्र में अपने विरोधी नेताओं को कुचलने तथा शक्ति – संचय की प्रवृत्ति से प्रभावित इन राजनेताओं ने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए हर हत्याकांड अपनाएं। देश के इन गद्दारों ने भलाई सुरक्षा उन्नति के नाम पर असीमित अधिकारों का प्रयोग करना शुरू कर दिया था। इस तरह इटली, स्पेन, जर्मनी, रूस आदि देशों में राजनीतिक दलों का शासन स्थापित हो गया। इस प्रवृत्ति ने क्रमशः विकशित होकर फासीवाद का रूप ग्रहण कर लिया जिसने मुसोलिनी तथा हिटलर का मार्ग प्रशस्त या।
5 ) राष्ट्रियता सिद्धांत को बल :– इस महायुद्ध से विश्व में राष्ट्रियता के सिद्धांत को काफी शक्ति मिली और वह वसार्य की संधि के आधार पर यूरोप में 8 नए राज्यों का निर्माण हुआ। फिर भी कुछ ऐसे देश से जिन्हें जिन्हें इन सिद्धांतों का लाभ नहीं मिला। जैसे इंग्लैंड के अधीनस्थ देश, भारत, आयरलैंड और मिश्र तथा अफ्रीका में बड़े-बड़े देशों के अनेक उपनिवेश।
6 ) नए देशों का शक्ति के रूप में उदय:– विश्व युद्ध ने तत्कालीन अनेक शक्तिशाली कहे जाने वाले देशों को धन एवं शक्ति से जर्जर कर दिया था तथा वह अपनी विभिन्न योजनाओं द्वारा पूर्ण निर्माण में लगे हुए थे। अमेरिका के इस युद्ध में प्रत्यक्ष भागीदारी नहीं थी। अत्तावर युद्ध के दुष्प्रभाव से प्रभावित नहीं हुआ। उसके सभी साधन सुरक्षित रहें तथा व प्रगति पथ पर कर्मशः बढ़ते हुए विश्व का सबसे अधिक शक्तिशाली देश बन गया। एशिया में इसी प्रकार जापान ने प्रगति की तथा अमेरिका के पश्चात पूर्वी एशिया में जापान की आर्थिक एवं सैन्य शक्ति सदृढ़ हो गई। इस प्रकार कुछ नए देश इस युद्ध में स्वरूप उभरकर सामने आए।
7 ) राजनीतिक एवं सामाजिक प्रभाव:– इस युद्ध उपरांत राजनीतिक में सर्वहारा वर्ग का महत्व बड़ा। युद्ध के समय मजदूरों ने जी तोड़ मेहनत की थी तथा हर देश ने उनकी शक्ति का एहसास किया। इस रूप में जगह-जगह पर अंतरराष्ट्रीय मजदूर संगठन बनने लगे। महिलाएं जो समाज में अब तक अपेक्षित थी, महत्वपूर्ण हो गई जिससे उनका महत्व बढ़ गया। कल करखाने कार्यालयो में महिलाएं आगे बढ़कर काम करने लगी। महिलाओं ने विभिन्न संगठनों द्वारा अपने अधिकारों की मांग की। काले गोरे का भेद भी बहुत सीमा तक मिट गया।
8) नवीन आविष्कार:– इस विश्वयुद्ध का एक उपयोगी पक्ष यह है कि चिकित्सकीय क्षेत्र में अनेक लाभकारी अविष्कार हुए चुकी इस युद्ध में तरह-तरह की जहरीली गैसों का प्रयोग किया था तथा इसे रासायनिको का भी युद्ध कहा जाता है। रसायनिक शास्त्रीयो ने अपने ज्ञान एवं अनुभव का लाभ कर नई उपयोगी औषधियों की खोज में अपना समय लगाया और सफल हुए शल्क चिकित्सा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सफलता प्राप्त हुई।
9 ) पराजित राष्ट्रीय का शोषण:– विश्व युद्ध का सारा दायित्व जर्मनी पर लादा गया तथा उसे दोषी ठहराया गया। वर्साय संधि के द्वारा इस नाम पर की पुनः संसार में युद्ध ना छिड़ जाए और इस प्रकार जर्मनी को पूरी तरह से दबाया गया। उसके समराज के लगभग छठे भाग को मित्र राष्ट्रों ने आपस में बांट लिया और 1500 करोड़ का जुर्माना लगाया गया। इसके अतिरिक्त यह भी निश्चित किया गया कि जर्मनी 10 वर्षों तक 60 लाख टन कोयला प्रतिवर्ष इटली, बेल्जियम ,फ़्रंस को देता रहेगा। जर्मनी के युद्धपोत सुरंगो पनडुब्बियों पर मित्रराष्ट्रीयो का अधिकार हो गाया और इस संधि द्वारा उसकी नौ -शक्तियों को समाप्त कर दी गई।
इस विश्वयुद्ध का घातक प्रभाव संसार की आर्थिक राजनीतिक सामाजिक व्यवस्था पर भी पड़ी। यदपि राजतंर का तो अंत हुआ है किंतु कतिपय यूरोप देशों के शक्तिशाली होने के उपनिवेश के शोषण का मार्ग भी प्रशस्त हुआ। वर्साय की संधि द्वारा। ध्वनि को इस प्रकार दबाया गया था जो संभावित और सहज नहीं था तथा जर्मनी राष्ट्रीय संधि के बोझ को उतार फेंकने के लिए वर्यग थी की झलक द्वितीय युद्ध में साफ दिखाई पड़ती है।
प्रथम विश्वयुद्ध 4 वर्ष 3 महीने 11 दिन तक चला ऐसा युद्ध इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। इतनी अधिक सैनिक संख्या में कभी भी किसी युद्ध में भाग नहीं लिया था। पहले विश्व युद्ध में 11 लाख भारतीय सैनिक लड़े; 75 हजार शहीद हुए, इनमें 50% पंजाब प्रांत से थे30 राज्यों के 65,000,000 सैनिक ने प्रत्यक्ष रूप से इस में भाग लिया। इसमें 13,000,000 व्यक्ति युद्ध भूमि में अपने प्राणों से हाथ धो बैठे। अर्थात प्रत्येक पांच व्यक्ति में से एक व्यक्ति मारा गया। लगभग 22,000,000 हजार लाख सैनिक घायल हुए, जिसमें 7,00,000 स्थाई रूप से अपाहिज या अपंग हो गए। दुनिया के इतिहास में या अब हुई युद्ध 1790 में 1813 ईसवी में तथा अर्थात 123 वर्षों में विश्व के विभिन्न भागों में जो प्रमुख युद्ध हुए थे उसमें मरने वाले सैनिकों की दुगनी संख्या से भी अधिक 1914 ईसवी से 1918ईस्वी तक के युद्ध में मारे जाने वाले लोगों की संख्या थी।
इस युद्ध में दोनों पक्षों को मिला करके 186,000,000 डॉलर खर्च करने पड़े थे। इसमें अतिरिक्त युद्ध में 39,000,000,000डॉलर मूल्य की संपत्ति नष्ट हो गई। इतनी बड़ी आर्थिक विनाश लीला पहले कभी नहीं हुई थी। वर्षो तक यूरोप में जनता एवं विश्व के प्राणी आर्थिक संकट के दौर से गुजरे।
राजनीतिक दृष्टि से यूरोप की प्राचीन राजवंश ऑस्ट्रीया का हेप्सवर्ग , प्रशा या जर्मनी का होहेनत्सोलंर और रूस का रोम राजवंश समाप्त हो गया। इसके अलावा छोटे-छोटे जर्मनी एवं बुल्गारिया के कई राजवंश का भी समापन हुआ। निरकुंश एकतंत्र एवं प्रजातंत्र की विजय विस्वायुष का परिणाम मन है सकता है राष्ट्रीय आत्मनिर्भरया का सिद्धांत विजयी हुआ। युद्ध के बूद समाजवादी बिचारधारा को बल। मार्क्सवादी समाजवाद का प्रभाव बढ़ाने लगा।
विनाशकरि शास्त्रों के प्रयोग के कारण हवाई जहाजों , पनडुब्बियों एवं विषैले गैसों ने सैनिक एवं असैनिक नागरिको को जो क्षति पहुंचाई बाह मानव जाती के इतिहास में एक दर्दनाक घटना के रूप में स्मरणीय रहेगा।
पहले विश्व युद्ध मे भारतीय सैनिक