Monday, November 18, 2024
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बिहार की भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिका (Bihar’s role in Quit India Movement)

 

पृष्ठ्भूमि 
 

क्रिप्स  मिशन के वापस लौटने के  उपरांत , गाँधी जी ने एक प्रस्ताव तैयार किया जिसमे अंग्रेजी से तुरंत भारत छोड़ने तथा जापानी आक्रमण होने पर भारतीयों से अहिंसक असहयोग का आव्हान किया गया था। महात्मा गाँधी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारा प्रस्तावित किया था।  कांग्रेस कार्यसमिति ने वर्धा की अपनी बैठक (14  जुलाई 1942 ) में संघर्ष के गाँधीवादी प्रस्ताव को अपनी स्वीकृति दे दी और इसके बाद ही भारत के अलग – अलग स्थानों में भारत छोड़ो आंदोलन ने अपनी रफ्तार पकड़ ली जिसमे भारत छोड़ो आंदोलन के मुख्या केंद्र थे  पूर्वी उतरप्रदेस, बिहार मिदनापुर, महाराष्ट्र एवं कर्नाटक क्षेत्र के लोगों ने अहम् भूमिका निभायी इस आंदोलन  में अगर भागीदारी की बात  करे तो छात्र, मजदूर एवं कृषक आंदोलन की रीढ थे, जबकि उच्च वर्ग एवं नोकरशाही आंदोलन में तटस्थ बनी रही इस आंदोलन में सरकार के प्रति निष्ठा रखने वाले तत्व/लोगो को आंदोलनकरियों ने देश द्रोही माना.  इसआंदोलन से यह स्पष्ट  हो गया की भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना काफी गहरी तक हो चुकी है 

 

अब सरकार को यह लगने लगी की भारतीयों की इच्छा के विरुद्ध भारत में और अधिक शासन करना संभव करना नहीं है 

 

 

 

 बिहार की भारत छोड़ो आंदोलन में भूमिका  (Bihar’s role in Quit India Movement)

अंग्रेजी का भारत छोड़ने संबंधी प्रस्ताव, गांधीजी सहित बड़े नेताओ की गिरफ्तारी, कोंग्रस तथा प्रांतीय कोंग्रस कमेटियों को उसकी शाखाओ सहित सभी अंगो को गैर कानूनी घोषित कर प्रतिबंध लगा दिए जाने से पुरे बिहार में उत्तेजना फैल गयी/इस उत्तेजक माहौल में जिलाधकारी डब्लू जी आर्चर स्वयं राजेन्द्र प्रसाद को गिरफ्तार करने सदाकत आश्रम पहुँच गया। राजेन्द्र प्रसाद अस्वस्थ थे फिर भी। उन्हें बांकीपुर जेल ले जाया गया। फूलने प्रसाद वर्मा, मथुरा प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह, कृष्ण वल्ल्भ सहाय, अनुग्रह नारायण सिंह सहित बिहार के सभी बड़े नेताओ को भी गिरफ्तार कर लिया गया गिरफ्तारी के विरोध में पटना, गया भागलपुर, रांची, छपरा, पूर्णिमा, मुजफ्फपुर, मुंगेर, चंपारण, हजारीबाग सहित गावँ कस्बो तक में हड़ताल रखी गयी। जनता की ओर से जुलूस निकाले गए। सरकारी कार्यालयों सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जाने लगा। भारत छोड़ो आंदोलन बिहार में कई चरणो से गुजरा। सभी चरण में जनता की समर्पित भागीदारी रही थी अगस्त क्रंति में बिहार के सभी वर्गो के सदस्यो ने आत्माहुति दी थी और आत्माहुति का लाक्षय देश के लिए सम्पूर्ण स्वतंत्रता को प्राप्त करना था।  

 

पटना में छात्रों में जबरदस्त प्रतिक्रिया हुई। राजेंद्र प्रसाद की गिरफ्तार की सुचना मिलते ही पटना के छात्रों में आक्रोश फेल गई और सभी ने एक जुलूस निकाला। जिसका प्रभाव स्कूलों और कॉलेजों पर भी पड़ा। आंदोलन से जुड़ी जितनी भी संस्थाएँ थी सभी को गैर क़ानूनी घोषित कर दी गई और उनपे प्रतिबन्द लगा दिया गया। आंदोलनकारियों के द्वारा जगह -जगह पर राष्ट्रिय झंडा फेहराय गय तथा सभाओं का आयोजन भी किया गया ताकि आंदोलन की रूप रेखा को तैयार की जा सके। आंदोलन के कारण तोड़फोड़, छात्रों और पुलिस की झड़प से स्थिति गंभीर होती चली गई। आंदोलन में जितने भी आंदोलनकारियों थे उनको आम लोगों के द्वारा प्रोत्साहन किया जा रहा है। पटना के आस-पास के उपनगरों दानापुर , मसौढ़ी, बख्तियारपुर, नौबतपुर, खगौल, बिट्टा, मनेर, विक्रमगंज के छात्र भी पटना पहुंचने लगे।  

 

पटना और उसके आस -पास के क्षेत्र से आए छात्रों ने 11 अगस्त , 1942 को अग्र प्रदर्शन करना शुरू कर दिया।  पटना मेडिकल कॉलेज परिसर तथा सिटी कोर्ट में राष्ट्रीय झंडा फहरा दिया।  छात्रों और पुलिस में कई स्थानों पर झड़प हुए।  सरकारी तंत्र को आंदोलनकारियों को रोकना मुश्किल – सा हो गया था। छात्रों का जुलुस सचिवालय की और बढ़ता गया। लाठी तथा गिरफ्तारी भी उन्हें रोक नहीं सकी। छात्र सचिवालय भवन पर राष्ट्रीय झंडा फहराने के लिए कृतसंकलप थे। दो बजे के करीब वे सचिवालय परिसर तक पहुंच भी गए। सवा दो बजे के लगभग पूर्वी फटाक पर राष्ट्रीय झंडा फहरा दिया।  सचिवालय भवन पर झंडा फहराने के लिए प्रयास करते रहे। इसीदौरान 6  छात्र गिरफ्तार भी हुए परन्तु उनके संकल्प को वे तोड़ नहीं पाए। परन्तु संध्या 4 :57  मिनट पुलिस ने जिलाधिकारी आर्थर के आदेश पर छात्रों पर गोली चलना शुरू कर  दिया। 7 छात्र घटना स्थल पर ही शहीद हो गए और लगभग 25  गंभीर रूप से घायल हो गए।

 

शहीद छात्रों  के नाम  इस  प्रकार है :-

 

1. शहीद उमाकांत प्रसाद सिंह 

उम्र – 19 वर्ष 

कक्षा-11

पिता – राम कुमार सिंह 

पत्नी – पतिराज कुंवार 

ग्राम – नरेन्द्रपुर, सारण 

 

2. शहीद रामानंद सिंह 

उम्र – 19 

कक्षा-11

पिता – लक्षण सिंह

माता – अन्नतिया देवी 

ग्राम – शाहदत नगर पतन 

 

3. शहीद सतीश प्रसाद झा 

उम्र – 19-20

कक्षा- 11

पिता – जगदीश प्रसाद झा , 

माता – त्रिपुरा देवी 

ग्राम – खण्ड़हरा, भागलपुर  

 

4. शहीद जगपति कुमार

उम्र – 19

कक्षा- बी. एन. कॉलेज, द्वितीय वार्षिक श्रेणी छात्र  

पिता –  सुखराज बहादुर 

माता – देवरानी कुंवर  

ग्राम – खराठी, औरंगाबाद 

 

 

5. शहीद देवीपद चौधरी 

उम्र – 19

कक्षा -मिलर हाई स्कूल  9वी छात्र 

पिता – देवेंद्र नाथ चौधरी,

माता – माता प्रमुदिनी 

ग्राम- जमालपुर 

इनके पिता आसाम से आकर पटना में बेस थे।  परिवार  सदस्य स्वतंत्रता सेनानी थे। स्वतंत्रतासंग्राम में चौधरी परिवार  योगदान पर देश सेवक पिता और शहीद पुत्र नामक पुस्तक तैयार की गई थी  

 

6. शहीद रामगोविन्द सिंह 

उम्र – 19

कक्षा – पुनपुन हाई स्कूल 11वी छात्र 

पिता – देवकी सिंह 

माता – राम कुंवर देवी, पत्नी – आशा कुंवर 

ग्राम – दशरथ, पटना  

 

7. शहीद राजेंद्र सिंह 

कक्षा – पटना हाई स्कूल के 11वी छात्र  

उम्र – 19

पिता – शिवनारायण  सिंह 

माता – जीरा  देवी 

पत्नी – सुरेश कुंवर 

ग्राम – बनवारी चक, सोनपुर , सारन 

 

 

11 अगस्त के सचिवालय घटना जो छात्रों के द्वारा किया गया था इस शहादत ने पूरे बिहार के लोगों में क्रांति की नयी लहार भर दी। यह आंदोलन का प्रभाव पुरे बिहार में फैलने लगा और इससे रेल, संचार, सरकार कार्यालय को नुकसान पहुंचने लगे। इससे पूरा बिहार बहोत ही ज्यादा समय तक प्रभावित रहा और पटना में सैनिक छावनी के रूप में तबदील कर दिया गया और जितने भी लोग वंहा से आते-जाते उन सभी से पहचान पत्र माँगा जाने लगा। 

 

समाचार पत्रों के सम्पादकों को गिरफ्तार

योगी , सर्चलाइट, राष्ट्रवाणी, नवशक्ति आदि समाचार – पत्र पर कई तरह  अंकुश लगा दिए गए और इन समाचार पत्रों के सम्पादकों मुरली अनोहर प्रसाद और ब्रज शंकर वर्मा को गिरफ्तार  कर लिया गया ओर देखते ही देखते पटना के आस-पास के उप नगरों – बिहटा, बख्तियारपुर, खगौल, मनेर, फतुआ, दानापुर, माँ मसौढ़ी, नौबतपुर, विक्रम आदि में भी पटना की तरह ही अनोलंकारियों उग्र आंदोलन किया। पुलिस अधिकारियों द्वारा आंदोलनकरियों पर गोली चलाई गई और गिरफ्तार किये गए।  

22 अगस्त, 1942  तक 353  आंदोलनकारियों को गिरफ्तार किया जा चूका था और इसके बाद कैदियों की संख्या बढ़ती जा रही थी क्योंकि सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया जा रहा था, पटना बिहार का केंद्र स्थल थी जहाँ अंदोलन को सुचारु रूप देने के लिए गुप्त स्थानो से आंदोलन को संचालन किया जा रहा और  इन संस्थाओं को संचालित किया जाता था। 

 

बिहार के अलग अलग जिलों में भारत चोरों आंदोलन का प्रभाव पड़ने लगा और आंदोलनकरियों की संख्या  भी बढ़ने लगी। 

 

 

 

 

 

बिहार के जिलों की भागीदारी :-

 

 

सारण 

 

भारत छोड़ो आंदोलन प्रारंभ होती ही संपूर्ण तिरहुत कमीशनरी  काबू से  हो गयी। महराजागंज, दिघवारा, मढ़ौड़ा, मसरख थाना के ग्राम अरना, माझी थाना के उदयपुर, मौरवा बाजार, सोनपुर, गरखा, थेपना आदि स्थानों में पुलिस की गोली से कई आंदोलनकारी मारे गए। आंदोलनकारियों  पर  सरकारी सिपाहियों द्वारा अत्याचार होने लगा फिर भी आन्दोलनकारियों ने दाउदपुर, छपरा,सोनपुर, महराजगंज, एकमा, मसरख, गरखा, दरौली, कटैया, शीतलपुर, गोपालगंज,मदौड़ा, बैकुण्ठपुर, बनियापुर, मैरवा, परसा, जीरादेई, दिघवारा, तपना आदि में सभाएँ जुलूस प्रदर्शन धरना करते रहे। सरकारी सम्पत्ती को आंदोलन के दौरान काफी नुकसान पंहुचा जा रहा था और स्थान – स्थान पर राष्ट्रीय झंडे फहराए जारहे थे आंदोलनकारियों द्वारा। 

 

 

 

 

 

 

 

मुजफ्फरपुर 

 

रोष की अभिव्यक्ति शुरू हो गई. कटरा , रामपुर, हरिपुर, मीनापुर, महनार, सकरा , पारु, देवारी , माती,छपरा, भगवानपुर, विद्दूपुर बाजार, धनौर, तेजोल,रेवाड़ी, अम्बा, बरुराज, माढ़ा, मेजरगंज, चिरौता आदि में पुलिस की गोली से काई आंदोलनकारी मर गए। संपूर्ण जिला में स्थिति गंभीर बनी रही। हाजीपुर जेल में आक्रमण क्र 79 कैदियों को छुड़ा लिए गए। कई पुलिस थानों पर आंदोलनकारियों का कब्जा हो गया।  कचहरी, थानों , जेल अहित सरकारी कार्यलयो में राष्ट्रीय झंडा फहराया गया। सरकारी दस्तावेजों को जलाया गया। कड़ी भंडारों को जलाया जाने लगा। ग्रीयर भूमिहार ब्राह्मण कॉलेज, जिला स्कुल, मारवाड़ी स्कुल, तिरहुत टेक्नीकल इंस्टीच्यूट के भवनों पर यूनियन जैक को हटाकर राष्ट्रिय झंडा फहराया गए।  तिलक मैदान में सभाये होते रहे थे 

 

 

 

 

 

चंपारण 

आंदोलन उग्र रुख को देखते हुए गुखाती कोठयों में रहने वाले अंग्रेजों को बेतिया, लोरिया  मोतिहारी ले आया गया। बेतिया के वकीलों एवं मुख्तारों कार्यालयों का बहिष्कार किया। केसरिया, धनहा, गोविंदगंज, ढाका, मधुबन, घोड़सहल, जोगापट्टी, रामनगर, लोरिया, शिकारपुर, बगहा और रक्सौल थानों पर आंदोलनकारियों का कब्जा हो गया। पंच पोखरिया, छौड़ादानो, मेहसी, बेतिया, मुर्तिया, ढाका पुलिस – सैनिक की गोली से कई आंदोलनकारी मारे  गोली कांड के बाद चम्पारण छात्रों ने उग्र रूप अखितयार कर लिया और सार्वजनिक सम्पतियों को काफी नुकसान पहुँचाया। 

 

 

 

 

 

 

दरभंगा 

 

आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया और दरभंगा मेडिकल कॉलेज और मिथिला कॉलेज  छात्रों पर 2 सप्ताह तक सड़कों तक निकलने पर रोक लगा दिया गया। दरभंगा, सिंहवारा, सकरी, बरुन पुल के समीप, रोसड़ा पल के समीप, मधुबनी, सरिसवपाही, हरिपुर, रवाजौली, फुलपरास, दल सिंह सराय, समस्तीपुर, गुमती, देवध, दिप (मधेपुर ) से कई आंदोलनकारी मारे गए। सरकारी कार्यालयों और सार्वजनिक क्षेत्रों को काफी नुकसान पहुंचाया गया। प्रतिक्रियास्वरूप सैनिकों ने कांग्रेस कार्यालयों, आंदोलनकारियों के घरों को आग लगा दिया। 

 

 

 

पूर्णियाँ  

 

पूर्णियाँ, किशनगंज, अतिहार, धरहरा, जोगबनी जानकीनगर, रुपौली, अररिया, फारबिसगंज सहित गाँव – कस्बों  छोड़ो आंदोलन प्रारंभ से ही तेजी में रही। मजदूरों कटिहार के रजिस्ट्री कार्यालय को लूट लिया और राष्ट्रिय झंडा वहाँ फहरा दिया।  इस कारन नेताओ को गिरफ्तार भी कर लिया गया।  कटिहार, धरहरा भभुआ, अररिया, रुपौली, धमदाहा आदि में पुलिस द्वारा चलाये गए गोलियों से काई आंदोलनकारी मारे गए और इसी के कारण थानों पर आक्रमण करने के लिए संतलो को तीर- धनुष्य के साथ प्रशिक्षित भी किया गया था।  25 अगस्त को पुरे जिले में धुर्व दिवस मनाया गया। और इसी समय पुलिसो के द्वारा गोलिया चली गयी  जिससे आंदोलनकारियों ने उत्तेजित होकर थानों को जला दिया जिसमें 14 लोग मारे गए पुलिस द्वारा दमन जारी रहा जिसके कारण जेल में बंद कैदियों ने दो सेलों को थोड़ दिया। 

 

 

 

 

मुंगेर 

 

भारत छोड़ो आंदोलन शुरू होते ही मुंगेर, जमालपुर, सूरजगढा, तारापुर, गोगरी, तेघड़ा, बेगुसराय, शेखपुरा, वासुदेवपुर, खड़गपुर, किउल, खगड़िया, महेशखूंट, कल्याणपुर, बरियारपुर, झाझा आदि सहित मुंगेर के जगह – जगह पर झंडे फहराये गए। आंदोलन का रुख देखते हुए घर और टेलीफोन एक्सचेंज किला में तब्दील कर दिया गया था। जिला की स्थिति काफी गंभीर हो चुकी थी पुलिस तथा अदर्ली भी भीतरी क्षेत्रों में नहीं जा सकते थे। बेगूसराय जेल से कैदिय भागने लगे थे, अंग्रेज सैनिको ने बदला लेने  के लिए कई नृशंस करवाई की। संचार की व्यवस्था को पूरी तरह अस्त – व्यस्त कर दिया। ‘ हिन्दुस्तान’ नमक सूचना-पत्र निकला गया। डाक पहुंचने के लिए विमानों का इस्तेमाल किया जाने लगा। विमान  पसराहा स्टेशन के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गाय। दो आंदोलनकारियों को पिट – पिट कर के मार डाला। इसीलिए रहीमपुर, चौथम, मानसी, मथुरापुर सहित इसके पास – पास के गाँव वालो से जुर्माना वसूला गया और स्थान – स्थान पर आंदोलन जारी रहा।   

 

 

 

 

 

भागलपुर 

 

विभिन्न स्थानों पर थाना, शराबखाना, सरकारी कार्यालयों,कचरियों पर आंदोलनकारियों के आक्रमण होते रहे।  पटना गोलीकांड के वजह से छात्रों में ज्यादा आक्रोश हो गये थे। स्टेशन, डाकघर, थाना, सरकारी भवन संस्थनों को आंदोलनकारियों द्वारा जलाया जा रहा था। नौगछिया नमक स्थान पर गोली चलने के ख़राब से आंदोलनकारियों विक्षुब्ध थे। पूरा इलाका आंदोलनकारियों छिन्न-भिन्न कर दिया गया। 15 अगस्त को भागलपुर में 2 बार आंदोलनकारियों पर गोली चली। 

 

आंदोलनकारी भगीरथ चौधरी और  पत्नी को छुड़ाने के प्रयत्न के समय तथा संध्या लाजपत पार्क पास गंभीर स्थिति को  हुए सभी शिक्षण संस्थाओं  बंद करवा दिया। 16 और 17 अगस्त को भागलपुर स्टेशन के  पास  तथा नाथनगर में  स्वयंसेवक मारे। चम्पारण में कर्फ्यू के लगे होने के बावजूद आंदोलनकारियों ने जुलूस निकला। 29 बंदियों की मृत्यु गोली चलने से हो गयी। इस घटना  बिहार में उत्तेजना फैल गई। बेलहर आदि आदि स्थानों में पुलिस की गोली से सेकड़ो लोगो की मृत्यु हो गई। 

 

 

 

गया

अरवल, पसौली, दाउदनगर, कुरथा तथा नबीनगर में पुलिस की गोली से कई आंदोलनकारी मारे गए। सैनिकों की टुकड़ी सोन नदी के पूर्वी भाग पदस्थापित कर दिया गया था। महिला स्वयंवको ने भी धरना – प्रदर्शन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वरसलिंगराज, चाकंद सहित कई स्टेशन जला दिए गए। गया के कॉटन और जुट मिल के मजदूरों ने हड़ताल रखी। टीआकृ  भीड़ ने पुलिस के चुंगन से कई आंदोलनकारियों छुड़ा लिया। गया के 150 लिपिकों ने इस्तीफा दे दिया। आंदोलन के दौरान अतरी, गोह, नबीनगर, कुटुम्बा, कुरथा अरवल, धोसी, गुरुआ, इमामगंज, डुमरिया, गोविंदपुर, कौआकोल, वारसलिंगज और पकडीवरांवा थाना से पुलिस हटा ली गई थी। पुलिस और सैनिकों के अत्याचार सहते हुए भी स्वयंसेवक आंदोलन कर रहे थे। 

 

 

 

 

 

 

शाहबाद

संपूर्ण शाहबाद में उग्र प्रदर्शन के साथ – साथ भारत छोड़ो आंदोलन  शुरुआत हुई थी जो इसी स्वभाव में आगे  में चलती रही।  जुलूस, प्रदर्शन, इश्तहार बांटना, सड़क, पुल रेलवे लाइन, तार काटना, थानों पर आक्रमण, सरकारी कार्यालयों पर आक्रमण आदि  क्षेत्रों की तरह यहाँ भी चलता रहा। 15 अगस्त  जेल फाटक तोड़ने के क्रम बक्सर गोली चली।  बक्सर जाने के क्रम में रास्ते में सैनिकों को बाधा पहुँचाने पर भी गोली चली जिसमें 17 व्यक्ति मारे गए। आरा, डुमरांव, सासाराम, भभुआ, पीरो, गलखरी, नावनगर, कोसनसराय, नवोदार, जोगरी, जमीरा, चण्डी, सहार में सैनिकों कई आंदोलनकरि मारे गए फिर भी आंदोलन जारी रहा।  

  

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