Monday, December 23, 2024
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1971 का बांग्लादेश स्वतंत्रा संग्राम

 

1971 का बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम, जिसे बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है जिसने दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति को हमेशा के लिए बदल दिया। यह संघर्ष बांग्लादेश के स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) और पश्चिमी पाकिस्तान (अब पाकिस्तान) के बीच हुआ था। इस संघर्ष की शुरुआत और अंत, इसके प्रमुख घटनाक्रम और परिणामों पर विस्तार से चर्चा करें:

पृष्ठभूमि

पूर्वी पाकिस्तान की स्थिति

  • भाषाई और सांस्कृतिक विभाजन: पाकिस्तान 1947 में स्वतंत्रता के बाद दो हिस्सों में विभाजित था: पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान। दोनों के बीच सांस्कृतिक, भाषाई और राजनीतिक अंतर थे। पश्चिमी पाकिस्तान में उर्दू और पंजाबी भाषाओं का बोलबाला था, जबकि पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में बंगाली भाषा प्रमुख थी।
  • राजनीतिक उपेक्षा: पूर्वी पाकिस्तान के लोग राजनीतिक और आर्थिक उपेक्षा के शिकार थे। अधिकांश सरकारी पदों और संसाधनों पर पश्चिमी पाकिस्तान का नियंत्रण था।

1970 के आम चुनाव

  • अवामी लीग की जीत: 1970 के आम चुनावों में, शेख मुजीबुर रहमान की अवामी लीग ने पूर्वी पाकिस्तान में भारी बहुमत से जीत हासिल की, जिससे उन्हें पाकिस्तान की राष्ट्रीय असेंबली में बहुमत मिला। लेकिन पश्चिमी पाकिस्तान की सरकार और राष्ट्रपति याह्या खान ने सत्ता हस्तांतरण से इनकार कर दिया।

स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत

25 मार्च 1971: ऑपरेशन सर्चलाइट

  • दमनकारी कार्रवाई: 25 मार्च 1971 को, पाकिस्तानी सेना ने ढाका में ऑपरेशन सर्चलाइट शुरू किया, जिसका उद्देश्य पूर्वी पाकिस्तान में विद्रोह को कुचलना था। इस अभियान में हजारों लोग मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए।
  • शेख मुजीबुर रहमान की गिरफ्तारी: पाकिस्तानी सेना ने शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया, लेकिन इससे विद्रोह और तेज हो गया। शेख मुजीब ने 26 मार्च 1971 को बांग्लादेश की स्वतंत्रता की घोषणा की।

स्वतंत्रता संग्राम की घटनाएँ

मुक्ति बाहिनी का गठन

  • मुक्ति वाहिनी: स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, बांग्लादेश के विद्रोहियों ने मुक्ति बाहिनी (स्वतंत्रता सेना) का गठन किया। इसमें बंगाली सैनिक, छात्र, किसान और अन्य नागरिक शामिल थे जिन्होंने गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया।
  • भारत का समर्थन: भारत ने मुक्ति बाहिनी को समर्थन और प्रशिक्षण प्रदान किया। भारत ने शरणार्थियों के लिए राहत शिविर भी स्थापित किए, जो लाखों की संख्या में भारत आ रहे थे।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका: अमेरिका, चीन और अन्य देशों की प्रतिक्रियाएँ विभाजित थीं। सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया, जबकि अमेरिका ने पाकिस्तान का समर्थन किया।
  • मानवीय संकट: पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर निंदा हुई। मीडिया रिपोर्ट्स और प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों ने दुनिया भर में पाकिस्तान के खिलाफ जनमत तैयार किया।

युद्ध और स्वतंत्रता

भारत का हस्तक्षेप

  • भारतपाकिस्तान युद्ध: 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने भारत पर हवाई हमले किए, जिसके जवाब में भारत ने पूर्ण पैमाने पर युद्ध शुरू किया। भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में तेजी से प्रगति की।
  • तेजी से विजय: भारतीय सेना और मुक्ति बाहिनी ने मिलकर 13 दिनों के भीतर पाकिस्तानी सेना को पराजित किया। 16 दिसंबर 1971 को ढाका में पाकिस्तानी सेना के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाजी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने आत्मसमर्पण किया।

परिणाम और प्रभाव

बांग्लादेश की स्वतंत्रता

  • स्वतंत्र बांग्लादेश: 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। शेख मुजीबुर रहमान देश के पहले राष्ट्रपति बने।
  • नवीन राष्ट्र की चुनौतियाँ: स्वतंत्रता के बाद, बांग्लादेश को कई आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। पुनर्निर्माण और विकास के प्रयास तेज हुए।

क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव

  • भारतपाकिस्तान संबंध: इस युद्ध के बाद भारत और पाकिस्तान के संबंध अत्यधिक तनावपूर्ण हो गए। 1972 में शिमला समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों ने कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से हल करने का संकल्प लिया।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभाव: इस युद्ध ने वैश्विक मंच पर मानवीय हस्तक्षेप और आत्मनिर्णय के अधिकार के मुद्दों को बल दिया। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भी परिवर्तन आए।

निष्कर्ष

1971 का बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम एक निर्णायक संघर्ष था जिसने दक्षिण एशिया की भू-राजनीतिक स्थिति को हमेशा के लिए बदल दिया। बांग्लादेश की स्वतंत्रता ने न केवल एक नए राष्ट्र का उदय किया बल्कि क्षेत्र में स्थायित्व और विकास के नए अवसर भी प्रदान किए। इस संघर्ष ने स्वतंत्रता, आत्मनिर्णय और मानवीय अधिकारों के प्रति वैश्विक दृष्टिकोण को भी प्रभावित किया।

 

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