जयशंकर प्रसाद
जन्म:- 30 जनवरी 1890 (काशी उत्तर प्रदेश) मृत्यु:- 15 नवम्बर 1937 पिता:- बाबू देवीप्रसाद दादा:- बाबू शिवरतन भाई:- शम्भूरत्न पत्नी:- विंध्यावासिनी , कमला देवी बेटा:- रत्नशंकर
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को काशी के सरायगोवर्धन में हुआ था. उनके पिता का नाम बाबू
देवीप्रसाद जी था । उनका जन्म काशी के प्रतिष्टित वैश्य
परिवार में हुआ था । जयशंकर के दादाजी बाबू शिवरतन
दान देने की वजह से पूरे काशी में जाने जाते थे । शिव रत्न साहु एक विशेष
प्रकार की सुरती (तम्बाकू) बनाने के कारण ‘सुँघनी साहु’
के नाम से विख्यात थे। जयशंकर प्रसाद के माता पिता भगवान शिव के उपासक थे
। पुत्र प्राप्ति के लिए इनके माता-पिता
ने शिव की प्रार्थना की झारखंड के बैजनाथ मंदिर से लेकर उज्जैन के महाकाल के मंदिर
तक आराधना के बाद इन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई बचपन में
जयशंकर को झारखंडी का कर पुकारा जाता था और इनका नामकरण भी बैजनाथ धाम में
ही हुआ था।
ये आपनी मा के साथ अमरकण्टक पर्वत श्रेणियों के बीच , नर्मदा में
नाव के द्वारा भी इन्होंने यात्रा की। यात्रा से लौटने के पश्चात् प्रसाद जी के पिता का स्वर्गवास हो गया। पिता की मृत्यु के चार
वर्ष पश्चात् इनकी माता भी इन्हें संसार में अकेला
छोड़कर चल बसीं।
प्रसाद जी के पालन-पोषण और शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध उनके बड़ भााई शम्भूरत्न जी ने किया। इनकी शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई मगर इनका पढ़ाई में मन नहीं लगा तो
इनके बड़े भाई ने इनकी शिक्षा का प्रबंध घर पर ही कर दिया। इस तरह इनकी प्रारम्भिक
शिक्षा घर पर ही हुयी । बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया,
जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। दीनबंधु ब्रह्मचारी जैसे विद्वान् इनके संस्कृत के
अध्यापक थे। घर के वातावरण के कारण साहित्य और कला के प्रति उनमें प्रारंभ से ही
रुचि थी और कहा जाता है कि नौ वर्ष की उम्र में ही
उन्होंने ‘कलाधर’ के नाम से व्रजभाषा में एक सवैया
लिखकर ‘रसमय सिद्ध’ को दिखाया था। उन्होंने वेद, इतिहास, पुराण तथा साहित्य
शास्त्र का अत्यंत गंभीर अध्ययन किया था।
प्रसाद जी को प्रारंभ से ही साहित्य के प्रति अनुराग था। वे प्राय
साहित्यिक पुस्तकें पढ़ा करते थे और अवसर मिलने पर कविता भी किया करते थे। पहल तो
इनके भाई इनकी काव्य-रचना में बाधा उालते रहे, परन्तु जब इन्होंने देखा कि
प्रसाद जी का मन काव्य-रचना में अधिक लगता है, तब इन्होंने इसकी पूरी स्वतंत्रता
इन्हें दे दी।
किशोरावस्था तक पहुँचते पहुँचते इनके बड़े भाई का भी देहांत (1906) हो
गया था। बेहद ही कम उम्र ने घर के सभी बड़ों की मृत्यु हो जाने के बाद ये व्यापार
को संभल नहीं पाया और धीरे-धीरे पूरा व्यापार चौपट हो गया। 1930 आते-आते जयशंकर
प्रसाद पर 1 लाख रूपए का कर्ज हो गया था।
जिसके बाद व्यापार में उन्होंने कड़ी मेहनत और परिश्रम करके अपने
हालात पुनः अच्छे किये और अपने साहित्य की और अग्रसर हो गए।
जयशंकर प्रसाद के वैवाहिक जीवन में भी काफी
संघर्ष था उनकी भाभी ने विंध्यावासिनी से उनका विवाह करवाया मगर नियति को
कुछ और ही मंजूर था वर्ष 1916 में विंध्यावासिनी भी टीबी
की बीमारी के चलते चल बसी। जिसके बाद उन्होंने अकेले रहने का मन बना लिया लेकिन
भाभी की जिद के चलते उनका दूसरा विवाह कमला देवी से
करवाया गया जिससे उनको वर्ष 1922 में पुत्ररत्न की
प्राप्ति हुयी. उन्होने पुत्र का नाम रत्नशंकर रखा।
1936 को हिंदी साहित्य के महान लेखक जयशंकर
प्रसाद को टीबी की बीमारी ने घेर लिया जिसके बाद वह कमजोर होते चले गए। इस दौरान उन्होंने अपने जीवन की सबसे मशहूर
रचना “कामायनी” को लिखा। जो कि हिंदी
साहित्य की अमर कृति मानी जाती हैं। कामायनी में जीवन से जुड़े हर भाव दुःख, सुख, वैराग सभी शामिल थे। जो कि
मानवता की हर अनुभूति महसूस करवाती हैं।
15 नवम्बर 1937 की सुबह सुबह जयशंकर प्रसाद ने अपनी आखरी सांसे ली और दुनिया को अलविदा कह दिया।
जीवन के अंतिम क्षण में भी वह अपनी एक रचना “इरावती” पर काम कर रहे थे जो कभी पूरी ना हो सकी।
जयशंकर प्रसाद के प्रमुख काव्य
कानन कुसुम,
महाराणा का महत्त्व, झरना, लहर, कामायनी, प्रेम-पथिक, करुणालय, आदि
जयशंकर प्रसाद का प्रमुख कहानी
छाया,
आकाशदीप, अंधी, इंद्रजाल, प्रतिध्वनी
जयशंकर प्रसाद के प्रमुख उपन्यास
कंकाल,
तितली, इरावती
जयशंकर प्रसाद के प्रमुख नाटक
सज्जन,
प्रायश्चित, राज्यश्री, कल्याणी परिणय, कामना, जन्मेजय का नागयज्ञ, विशाख,
स्कंदगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, एक घूंट
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