#Biography of Karpoori Thakur # कर्पूरी ठाकुर की जीवनी। – learnindia24hours

 

                     कर्पूरी ठाकुर

 

जन्म 24 जनवरी 1924
बिहार समस्तीपुर

पिता श्री गोकुल
ठाकुर

माता रामदुलारी
देवी

मृत्यु 17 फरवरी 1988

 

कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को बिहार के समस्तीपुर के पितौझिया
(जिसे  कर्पूरीग्राम) गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री गोकुल ठाकुर तथा माता का नाम श्रीमती रामदुलारी देवी था। इनके पिता गांव के सीमांत किसान थे
तथा अपने पारंपरिक पेशा नाई का काम करते थे।
उन्होंने अपना
पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से पूरा किया। स्वतंत्रता
के बाद इन्होंने अप
अबने गांव में शिक्षक का कार्य
किया।

ये बहुत ही सरल हृदय के राजनेता माने
जाते थे। सामाजिक रूप से पिछड़ी किन्तु सेवा भाव के महान लक्ष्य को चरितार्थ करती
नाई जाति में जन्म लेने वाले इस महानायक ने राजनीति को भी जन सेवा की भावना के साथ
जिया। उनकी सेवा भावना के कारण ही उन्हें जन नायक कहा जाता था उन्होंने पिछड़ों को
27 प्रतिशत आरक्षण दिया।

वह एक वक्ता भी थे आजादी के समय पटना
की कृष्णा टॉकीज हॉल में छात्रों की सभा को संबोधित करते हुए एक क्रांतिकारी भाषण
दिया कि “हमारे देश की आबादी इतनी अधिक है कि केवल थूक फेंक देने से अंग्रेजी राज
बह जाएगा” इस भाषण के कारण उन्हें दण्ड भी झेलनी पड़ी थी।

लोकनायक जयप्रकाशनारायण
एवं डॉ राम मनोहर लोहिया
इनके राजनीतक गुरु
थे। कर्पूरी ठाकुर जी लालू प्रसाद यादव, नितीश कुमार, राम
विलास पासवान और सुशील कुमार मोदी के राजनीतिक गुरु थे
। बिहार में पिछड़ा
वर्ग के लोगों को सरकारी नौकरी में आरक्षण की व्यवस्था
1977
में की । 1977 में कर्पुरी ठाकुर ने बिहार के वरिष्ठतम नेता सत्येन्द्र नारायण सिन्हा से नेतापद का चुनाव जीता और
राज्य के दो बार मुख्यमंत्री एवं एक बार उपमुख्यमंत्री बने। 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार
विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे

जब करोड़ो रुपयों के घोटाले में आए
दिन नेताओं के नाम उछल रहे हों, कर्पूरी ठाकुर जैसे नेता एक मकान तक उनके नाम नहीं
था ना तो पटना में, और ना ही अपने पैतृक घर में वो एक इंच जमीन जोड़ पाए।

कर्पूरी ठाकुर जब पहली बार
उपमुख्यमंत्री बने या फिर मुख्यमंत्री बने तो अपने बेटे रामनाथ को पत्र लिखना नहीं
भूले। इस पत्र में  था, की तुम किसी से
प्रभावित नहीं होना। कोई लोभ लालच देगा, तो उस लोभ में मत आना। मेरी बदनामी होगी।

उत्तर प्रदेश के नेता
हेमवती नंदन बहुगुणा
ने अपने संस्मरण में लिखा कि कर्पूरी ठाकुर की
आर्थिक तंगी को देखते हुए देवीलाल ने पटना में अपने एक हरियाणवी मित्र से कहा था-
कर्पूरीजी कभी आपसे पांच-दस हज़ार रुपये मांगें तो आप उन्हें दे देना, वह मेरे ऊपर
आपका कर्ज रहेगा। बाद में देवीलाल ने अपने मित्र से कई बार पूछा- भई कर्पूरीजी ने
कुछ मांगा। हर बार मित्र का जवाब होता- नहीं साहब, वे तो कुछ मांगते ही नहीं।

एक बार उप मुख्यमंत्री और
दो बार मुख्यमंत्री
रहने के बावजूद कर्पूरी ठाकुर रिक्शे से ही चलते थे. क्योंकि उनकी जायज आय कार खरीदने
और उसका खर्च वहन करने की अनुमति नहीं देती

कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद
हेमवंती नंदन बहुगुणा उनके गांव गए थे. बहुगुणा जी कर्पूरी ठाकुर की पुश्तैनी
झोपड़ी देख कर रो पड़े थे ।

कर्पूरी ठाकुर का प्रसिद्ध नारा था..
“अधिकार चाहो तो लड़ना सीखो पग पग पर अड़ना सीखो जीना है तो मरना सीखो”

विषम से विषम परिस्थितियों में भी
शिष्टाचार और मर्यादा की लक्ष्मण रेखाओं का उन्होंने कभी भी उल्लंघन नहीं किया।

 वे सरकार बनाने के लिए लचीला रूख अपना कर किसी
भी दल से गठबंधन कर सरकार बना लेते थे, लेकिन अगर मन मुताबिक काम नहीं हुआ तो
गठबंधन तोड़कर निकल भी जाते थे। यही वजह है कि उनके दोस्त और दुश्मन दोनों को ही
उनके राजनीतिक फ़ैसलों के बारे में अनिश्चितता बनी रहती थी। 

कर्पूरी ठाकुर की मृत्यु 64 साल की उम्र में 17 फरवरी 1988 को दिल का दौरा
पड़ने से हुई थी।

 

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