Saturday, July 27, 2024
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#Biography of Major Somnath Sharma #मेजर सोमनाथ शर्मा की जीवनी। – learnindia24hours

 

                                मेजर सोमनाथ

                         

जन्म:- 31 जनवरी 1923

मृत्यु:- 3 नवंबर 1947

पिता:- अमरनाथ शर्मा

 

मेजर सोमनाथ का जन्म 31 जनवरी 1923 को जम्मू में हुआ था। उनके पिता का नाम अमरनाथ शर्मा था और वे सेना में डॉक्टर थे और आर्मी
मेडिकल सर्विस के डायरेक्टर जनरल के पद से सेवामुक्त हुए थे।

मेजर सोमनाथ की शुरुआत की स्कूली
शिक्षा अलग-अलग जगह होती रही, जहाँ उनके पिता की पोस्टिंग होती थी। मेजर सोमनाथ
बचपन से ही खेल कूद और एथलेटिक्स में रुचि रखते थे।मेजर सोमनाथ ने शेरवुड कॉलेज नैनीताल और प्रिंस ऑफ वेल्स रेल अकादमी देहरादून
से अपने शिक्षा प्राप्त की थी

सोमनाथ शर्मा की नियुक्ति 22 फरवरी, 1942 को ब्रिटिश भारतीय सेना की
उन्नीसवीं हैदराबाद रेजिमेन्ट की आठवीं बटालियन में हुई (जो कि बाद में भारतीय
सेना के चौथी बटालियन, कुमाऊं रेजिमेंट के नाम से जानी जाने लगी) । उनका फौजी
कार्यकाल दूसरे विश्व युद्ध के दौरान शुरू हुआ और वे मलाया के पास के रण में भेज
दिये गये। पहले ही दौर में उन्होंने अपने पराक्रम के तेवर दिखाए और वे इसके बाद एक
विशिष्ट सैनिक के रूप में पहचाने जाने लगे। 1942 में सेना में रहते हुए कुमाऊं रेजिमेंट से उन्हें कमीशन
प्राप्त हुआ था। अपने सैन्य कैरियर के दौरान, श्री सोमनाथ शर्मा, अपने कैप्टन के॰
डी॰ वासुदेव जी की वीरता से काफी प्रभावित थे। कैप्टन वासुदेव जी ने आठवीं बटालियन
के साथ भी काम किया, जिसमें उन्होंने मलय अभियान में हिस्सा लिया था, जिसके दौरान
उन्होंने जापानी आक्रमण से सैकड़ों सैनिकों की जान बचाई एवं उनका नेतृत्व किया।

22 अक्टूबर, 1947 को जब
पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर आक्रमण किया तब हॉकी खेलते हुए बांया हाथ टूट जाने
की वजह से सोमनाथ इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें जब पता चला कि चार
कुमाऊं युद्ध के लिए कश्मीर जा रही है, तो उन्होंने उसका हिस्सा बनने की जिद शुरु
कर दी। सीनियर अधिकारियों ने हैरानी जताते हुए कहा कि सोमनाथ तुम्हारे हाथ में
प्लास्टर चढ़ा हुआ है, ऐसे में तुम्हारा जंग में जाना ठीक नहीं है। सीनियर अधिकारी
अपनी जगह सही थें, पर सोमनाथ कहाँ मानने वाले थे।
अंतत: उन्हें
सोमनाथ को अनुमति देनी ही पड़ी। अनुमति मिलते ही वे एयरपोर्ट पहुंचे और अपनी
डेल्टा कंपनी में शामिल हो गए। सोमनाथ शर्मा इसी कुमाऊं
रेजिमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कं
पनी के कंपनी कमांडर थे।

3 नवम्बर 1947 को
मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी को कश्मीर घाटी के बदगाम मोर्चे पर जाने का हुकुम
दिया गया। उन्होंने दिन के 11 बजे तक अपनी टुकड़ी तैनात कर दी। तभी दुश्मन की
क़रीब 500 लोगों की सेना ने उनकी टुकड़ी को तीनों
तरफ से घेरकर हमला किया और भारी गोला बारी से सोमनाथ के सैनिक हताहत होने लगे।
अपनी दक्षता का परिचय देते हुए सोमनाथ ने अपने सैनिकों के साथ गोलियां बरसाते हुए
दुश्मन को बढ़ने से रोके रखा। इस दौरान उन्होंने खुद को दुश्मन की गोली बारी के
बीच बराबर खतरे में डाला और कपड़े की पट्टियों की मदद से हवाई जहाज को ठीक लक्ष्य
की ओर पहुँचने में मदद की।
इस दौरान, सोमनाथ के बहुत से सैनिक वीरगति को
प्राप्त हो चुके थे और सैनिकों की कमी महसूस की जा रही थी। सोमनाथ का बायाँ हाथ
चोट खाया हुआ था और उस पर प्लास्टर बंधा था। इसके बावजूद सोमनाथ खुद मैग्जीन में
गोलियां भरकर बंदूक धारी सैनिकों को देते जा रहे थे। तभी एक मोर्टार का निशाना ठीक
वहीं पर लगा, जहाँ सोमनाथ मौजूद थे और इस विस्फोट में भारत का यह वीर जवान शहीद हो
गया। इस मुकाबले में सोमनाथ अपने कई साथियों के साथ शहीद जरूर हो गए, लेकिन
उन्होंने दुश्मन को आगे नहीं बढ़ने दिया। आखिरकार भारतीय सेना नवम्बर का महीना
आते-आते दुश्मनों को घाटी से खदेड़ने में कामयाब रही।
मेजर सोमनाथ
शर्मा को इस युद्ध में उनके रणकौशल के लिए मरणोपरान्त उन्हें प्रथम परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।

 

 

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