दिल्ली दरबार और राजधानी परिवर्तन 1911

दिल्ली दरबार और राजधानी परिवर्तन  1911

 

दिल्ली दरबार और राजधानी परिवर्तन 

दिसंबर, 1911 में ब्रिटिश सम्राठ जॉर्ज पंचम और महारानी मैरी के भारत आगमन पर उनके स्वागत हेतु दिल्ली में एक  भव्य कार्यक्रम/समाहरो  का आयोजन किया गया था। जिसे दिल्ली दरबार के नाम से जाना जाता है परन्तु इससे  भी बड़ा कारण और महत्वपूर्ण कारण दिल्ली दरबार में ही सम्राट का यह घोषणा था की बंगाल विभाजन को रद्द घोषित करना और साथ ही बिहार और उड़ीसा को बंगाल  से अलग या विभाजन करने की बात भी हुई थी।

दिल्ली दरबार और राजधानी परिवर्तन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है, जो ब्रिटिश शासन के दौरान हुई थी। 12 दिसंबर 1911 को, किंग जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में यह घोषणा की कि भारत की राजधानी कलकत्ता (अब कोलकाता) से दिल्ली स्थानांतरित की जाएगी।

 

 

 

दिल्ली दरबार

दिल्ली दरबार एक औपचारिक सभा थी, जो ब्रिटिश सम्राट या सम्राज्ञी के भारत आगमन के अवसर पर आयोजित की जाती थी। यह तीन बार आयोजित किया गया था:

  1. 1877 में, महारानी विक्टोरिया को भारत की महारानी घोषित करने के लिए।
  2. 1903 में, किंग एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के अवसर पर।
  3. 1911 में, किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी की भारत यात्रा के समय।

दिल्ली दरबार और राजधानी परिवर्तन की घटनाओं के समय (1911) में ब्रिटिश भारत में विभिन्न प्रांतों और रियासतों का पुनर्गठन और गठन हुआ था। इस समय ब्रिटिश सरकार ने कई प्रशासनिक सुधार किए, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

1911 के दौरान और आसपास के प्रांतों का गठन

  1. बिहार और उड़ीसा का गठन:
    • 1912 में बंगाल प्रेसीडेंसी से बिहार और उड़ीसा को अलग कर एक नया प्रांत बनाया गया। यह कदम बंगाल विभाजन (1905) के बाद बंगाल के पुनर्गठन का हिस्सा था।
  2. असाम का पुनर्गठन:
    • असाम को 1912 में पुनर्गठित किया गया और इसे एक नया प्रांत घोषित किया गया। इसे पहले बंगाल प्रेसीडेंसी के तहत प्रबंधित किया जा रहा था।
  3. दिल्ली का नया प्रशासनिक दर्जा:
    • राजधानी परिवर्तन के साथ, दिल्ली को एक नया प्रशासनिक दर्जा दिया गया। इसे पंजाब प्रांत से अलग कर एक नया केंद्र शासित क्षेत्र बनाया गया।

A historical scene depicting the Delhi Durbar of 1911 and the announcement of the capital shift from Calcutta to Delhi. The scene is grand, with King George V and Queen Mary seated on a decorated stage, adorned with royal regalia. The British officials and Indian dignitaries, dressed in traditional and colonial attire, are present in the audience. The surroundings include opulent decorations, large tents, and flags. In the background, a large crowd of onlookers can be seen, representing the diverse population of India. The atmosphere is ceremonial, capturing the grandeur and significance of the event.

अन्य महत्वपूर्ण प्रशासनिक परिवर्तन

  1. बंगाल विभाजन का पुनर्निर्धारण (1911):
    • 1911 में ब्रिटिश सरकार ने बंगाल विभाजन को रद्द कर दिया, जिसे 1905 में लॉर्ड कर्ज़न ने लागू किया था। इसके बाद बंगाल को फिर से एकीकृत किया गया, और असाम को अलग प्रांत बनाया गया।
  2. संयुक्त प्रांत:
    • 1902 में संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) का गठन किया गया था। इसे उत्तर-पश्चिमी प्रांत और अवध को मिलाकर बनाया गया था।

स्वतंत्रता के बाद के राज्यों का गठन

हालांकि, स्वतंत्रता से पहले ही कुछ प्रमुख राज्यों का गठन हो चुका था, लेकिन 1947 के बाद भारत के स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राज्यों का पुनर्गठन अधिक व्यापक पैमाने पर हुआ। राज्यों के गठन और पुनर्गठन की कुछ प्रमुख घटनाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. 1950 का संविधान लागू होना:
    • भारतीय संविधान लागू होने के साथ ही भारतीय संघ में विभिन्न रियासतों और प्रांतों का एकीकरण हुआ और राज्यों का पुनर्गठन किया गया।
  2. 1956 का राज्यों का पुनर्गठन अधिनियम:
    • भाषा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के लिए 1956 में राज्यों का पुनर्गठन अधिनियम पारित किया गया। इसके परिणामस्वरूप कई नए राज्यों का गठन हुआ और मौजूदा राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन किया गया।
  3. आंध्र प्रदेश का गठन (1953):
    • आंध्र प्रदेश को मद्रास राज्य से अलग कर भारत का पहला भाषायी राज्य बनाया गया।
  4. गुजरात और महाराष्ट्र का गठन (1960):
    • बॉम्बे राज्य को भाषायी आधार पर विभाजित कर गुजरात और महाराष्ट्र राज्य बनाए गए।
  5. हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का गठन (1966):
    • पंजाब राज्य को विभाजित कर हरियाणा और हिमाचल प्रदेश का गठन किया गया।
  6. उत्तराखंड, झारखंड और छत्तीसगढ़ का गठन (2000):
    • उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड, बिहार से झारखंड और मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ का गठन किया गया।

ये महत्वपूर्ण घटनाएँ भारतीय प्रशासनिक संरचना के विकास और राज्यों के गठन में महत्वपूर्ण रही हैं। ब्रिटिश शासन के दौरान और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के पुनर्गठन ने भारतीय उपमहाद्वीप को वर्तमान स्वरूप दिया।

 

राजधानी परिवर्तन

1911 के दिल्ली दरबार में, किंग जॉर्ज पंचम ने घोषणा की कि भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित की जाएगी। इसके पीछे कई कारण थे:

  1. भौगोलिक स्थिति: दिल्ली भारत के केंद्र में स्थित है, जिससे इसे प्रशासनिक दृष्टि से अधिक उपयुक्त माना गया।
  2. ऐतिहासिक महत्व: दिल्ली का ऐतिहासिक महत्व और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी इस निर्णय में एक महत्वपूर्ण कारक था।
  3. राजनीतिक और प्रशासनिक कारण: ब्रिटिश प्रशासन के लिए दिल्ली से शासन करना अधिक सुविधाजनक और प्रभावी माना गया।

परिणाम

1911 में राजधानी परिवर्तन की घोषणा के बाद, नई दिल्ली का निर्माण कार्य शुरू हुआ, जिसमें प्रसिद्ध ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नई दिल्ली को विशेष रूप से एक आधुनिक प्रशासनिक केंद्र के रूप में डिजाइन किया गया था। 1931 में, नई दिल्ली को आधिकारिक तौर पर भारत की राजधानी घोषित किया गया।

यह राजधानी परिवर्तन ब्रिटिश शासन के दौरान एक महत्वपूर्ण प्रशासनिक और राजनीतिक कदम था, जिसने भारत के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।

नई दिल्ली का निर्माण

1911 में राजधानी परिवर्तन की घोषणा के बाद, नई दिल्ली के निर्माण का कार्य बड़े पैमाने पर शुरू हुआ। इस कार्य को पूरा करने के लिए ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर को चुना गया। इन दोनों आर्किटेक्ट्स ने मिलकर नई दिल्ली की रूपरेखा तैयार की और इसे एक आधुनिक प्रशासनिक केंद्र के रूप में विकसित किया।

राजधानी परिवर्तन का प्रभाव

भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित करने का कई महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा:

  1. प्रशासनिक सुधार: दिल्ली का भौगोलिक और प्रशासनिक महत्व बढ़ गया। नई दिल्ली को एक संगठित और सुव्यवस्थित प्रशासनिक केंद्र के रूप में विकसित किया गया, जिसने प्रशासनिक कार्यों को अधिक कुशलता से संचालित करने में सहायता की।
  2. राजनीतिक महत्व: दिल्ली ने भारतीय राजनीति में एक प्रमुख स्थान प्राप्त किया। यहाँ पर केंद्रीय सरकार के प्रमुख संस्थान स्थित हैं, जिससे इसे भारतीय राजनीति का केंद्र बना दिया।
  3. आर्थिक विकास: नई दिल्ली के निर्माण और विकास ने शहर की आर्थिक स्थिति को भी मजबूत किया। इसमें नए रोजगार के अवसर उत्पन्न हुए और शहर की आधारभूत संरचना में सुधार हुआ।

स्वतंत्रता के बाद का दिल्ली

1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, दिल्ली भारत की राजधानी के रूप में बनी रही। स्वतंत्रता के बाद, दिल्ली ने कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और सांस्कृतिक घटनाओं का साक्षी बना। इसमें 1950 में गणतंत्र दिवस समारोह की शुरुआत और 1982 के एशियाई खेल शामिल हैं।

वर्तमान में, नई दिल्ली भारतीय प्रशासन का केंद्र है और यहाँ पर राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न केंद्रीय मंत्रालयों के कार्यालय स्थित हैं। यह शहर भारतीय लोकतंत्र और प्रशासन का प्रतीक है और देश की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है।

 

दिल्ली दरबार और राजधानी परिवर्तन की घटनाओं में कुछ प्रमुख भारतीय शामिल थे, जिन्होंने इन घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं। यहाँ कुछ प्रमुख भारतीय और उनकी भूमिकाएँ दी गई हैं:

1877 का दिल्ली दरबार

  1. सर सैयद अहमद खान:
    • उन्होंने भारतीय मुस्लिम समुदाय के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए इस दरबार का उपयोग किया। वे अलीगढ़ आंदोलन के संस्थापक थे और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  2. आर.सी. दत्त:
    • आर.सी. दत्त एक प्रमुख भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी और इतिहासकार थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक लेखन किया और इस दरबार में भारतीय मुद्दों को उठाने में सक्रिय थे।

1903 का दिल्ली दरबार

  1. बाल गंगाधर तिलक:
    • तिलक इस दरबार के दौरान सक्रिय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे। उन्होंने भारतीयों के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए जोरदार आवाज उठाई।
  2. गोपाल कृष्ण गोखले:
    • गोखले एक महत्वपूर्ण भारतीय समाज सुधारक और स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और इस दरबार के दौरान भारतीय मुद्दों को उठाने में सक्रिय थे।

1911 का दिल्ली दरबार

  1. मदन मोहन मालवीय:
    • मालवीय एक प्रमुख भारतीय नेता और शिक्षाविद थे। उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की और भारतीयों की शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
  2. महात्मा गांधी:
    • गांधी जी इस समय दक्षिण अफ्रीका में थे, लेकिन वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भविष्य के नेता के रूप में उभर रहे थे। उन्होंने बाद में भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अहिंसा और सत्याग्रह की नींव रखी।

राजधानी परिवर्तन (1911) के दौरान

  1. सर तेज बहादुर सप्रू:
    • सर तेज बहादुर सप्रू एक प्रमुख भारतीय वकील और राजनीतिज्ञ थे। उन्होंने भारतीय मुद्दों पर ब्रिटिश सरकार से संवाद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  2. मोतिलाल नेहरू:
    • मोतिलाल नेहरू भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे पंडित जवाहरलाल नेहरू के पिता थे।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और बाद में

  1. पंडित जवाहरलाल नेहरू:
    • नेहरू भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। उन्होंने दिल्ली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  2. सरदार वल्लभभाई पटेल:
    • पटेल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे और स्वतंत्र भारत के पहले गृह मंत्री बने। उन्होंने भारतीय रियासतों का एकीकरण किया और राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया।
  3. डॉ. भीमराव अंबेडकर:
    • अंबेडकर भारतीय संविधान के निर्माता थे और भारतीय समाज सुधारक थे। उन्होंने दलितों और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर काम किया।
  4. महात्मा गांधी:
    • गांधी जी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने दिल्ली में विभिन्न आंदोलनों का नेतृत्व किया।

इन भारतीय नेताओं और उनके योगदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और दिल्ली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके योगदानों ने भारतीय समाज, राजनीति और प्रशासन को दिशा दी।

संक्षेप में

दिल्ली दरबार और राजधानी परिवर्तन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ थे। इसने न केवल भारत की प्रशासनिक संरचना को प्रभावित किया, बल्कि दिल्ली को भारतीय संस्कृति और राजनीति के केंद्र के रूप में स्थापित किया। नई दिल्ली का निर्माण और उसका विकास भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है, जिसने देश की दिशा और दशा को आकार दिया। 

 

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